QUOTES ON #अंतर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस

#अंतर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस quotes

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8 MAR 2021 AT 3:46

धरती पर जीवन से पूर्व ही, अपने गर्भ में जीवन पालने वाली स्त्री को किसी एक दिवस पर विशेष व्यवहार कर उसकी महत्ता कम नहीं करूंगा.. बस इतना कहना चाहूँगा कि इस असीमित ब्रह्मांड के एकमात्र जीवन वाले ग्रह पर आप जननी हैं, आप के ही अस्तित्व पर आधारित यह जीवन पाकर हम भी धन्य हैं; तो आपके स्त्रीत्व का उत्सव तो हमारी हर श्वास मनाती है।
आप सभी स्त्रियों को मेरा सादर प्रणाम ☺️☺️🙏🙏

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8 MAR 2021 AT 7:26

माता, भगीनी ,पत्नी ,पुत्री सभी में नारी को बांटा है
इनके बिना जीवन कैसा हो, ये ख्याल क्या आता है?
यदि एक दिन ही महत्व देना हो तो समय न अपना व्यर्थ करो
दे सको तो जीवन सारा दो, हमें बस सम्मान ही प्यारा है |

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8 MAR 2022 AT 12:39

समस्त स्त्री जाति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं..🌹🍫🌹











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8 MAR 2019 AT 8:38

यूँ ही नहीं गूँजती किलकारियाँ ,
घर आँगन के हर कोने में..
जान हथेली में रखनी पड़ती है ,
माँ को माँ होने में..

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8 MAR 2021 AT 17:19

सोच रही हूँ
आज मैं भी लिखूँ...
अपने लिए कुछ
पर क्या लिखूँ...
लिखी जा चुकी हैं
सहस्त्रों रचनाएँ मेरे ऊपर
और आगे भी
लिखी जाती रहेंगी ...
वैसे लिखना क्यों है?
अपने दुःख-दर्द और
अपने अस्तित्व और पहचान
से हूँ मैं भली भाँति परिचित...
और जो हैं हमारे दर्द की वजह
वो भी तो हैं अच्छे से वाकिफ...
फिर भी कुछ लिखूँ क्या?
अपनी कला दिखाने के लिए ही सही
ताकि मैं कहला सकूँ
एक अच्छी लेखिका...
अरे! हाँ, सही विचार है
लेकिन इस समाज के लिए
सबसे पहले तो "मैं हूँ एक स्त्री "...
यही है मेरी असली 'पहचान'
और यही रह जाएगी शायद हमेशा...


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8 MAR 2018 AT 21:06

तेज आंच पर कुकर की सीटी
धीमी आंच पर दूध उबलता,
ऑफिस में ज़रूरी मीटिंग,
सहकर्मी के भाई का टीका,
साड़ी,चूड़ी,बिंदी की मैचिंग,
बिजली-पानी के बिल और
फोन पर बैंकिंग,
घर के सारे स्विच ऑफ,
गाड़ी की चाबी,दरवाज़े का ताला,
सब कुछ ठीक निपटता है तो
जैसे कविता हो जाती है,
कभी-कभी आपा-धापी में
एक-आध पंक्ति खो जाती है
फिर भी रचने का सुख देती है,
विश्वास दिला जाती है,
दो हैं दृश्य किंतु हमारी अनेक
अदृश्य भुजा हैं,
हम ही इस युग की
लक्ष्मी हैं, सरस्वती हैं, दुर्गा हैं....

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जर्रे जर्रे मैं फैली है हवस ही हवस ।।

कैसे कहें मुबारक हो महिला दिवस।

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10 AUG 2017 AT 22:41

तेरे माथे की ये बिंदिया खूब सजती है
इसको तू ढ़ाल बना लेती तो अच्छा था

तेरा ये आँचल तुझ पर खूब जंचता है
इसका तू परचम लहराती तो अच्छा था

तेरी पायल की छन-छन दिलों के तार छेड़ती है
इसकी तू रणदुदुम्भी बजाती तो अच्छा था

तेरे माथे का सिन्दूर जुल्फों को सजाता है
उन्हें गर रक्त से नहलाती तो अच्छा था

तेरी आँखों में काजल जैसे काले बादल
इनसे तू अंगारे बरसाती तो अच्छा था

कलाइयों के कंगन कई रंगों से सजे हैं
इनको तू सुदर्शन बनाती तो अच्छा था

तेरे हाथों में मेहँदी तेरे प्यार की महक देती है
इन्हीं हाथों से खुनी होली खेलती तो अच्छा था

तेरे गजरे की खूशबू से सारा समां महक उठता है
इसको तू तलवार बनाती तो अच्छा था

तेरे होंठो की लाली गुलाब की दो पंखुड़ियां हैं
इनसे तू शोले दहकाती तो अच्छा था

गले में ये मोतियों की माला रूप को चार चाँद लगाती है
इसको तू पापियों के नर मुण्डों से सजाती तो अच्छा था

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8 MAR 2020 AT 1:57

'नारी की नियति'(आज)

अब फुर्सत की गुल्लक तोड़ी है,
कुछ पल छुपाये रक्खे थे।
अपने हिस्से के सिक्कों से,
कुछ शौक बचाये रक्खे थे।
अपने पैरों की ज़मीन से,
आकाश का रास्ता बनाना है।
जीना है अपने वजूद को,
लेकिन....
हर फ़र्ज़ को साथ निभाना है!

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8 MAR 2018 AT 14:35

चपल, चंचल नीर सी
गहरे सागर धीर सी
रणचंडी दुर्गा वीर सी
ढाल,कृपाण, शमशीर सी
माँ,बहन,भार्या के पिर सी
मावा, रबड़ी, खीर सी
धरा,आकाश, जागीर सी
बरखा बंसंत तासिर सी
सिपाही,नृप, वज़ीर सी
बदलते हुए तक़दीर सी
गर्भ में पलते शरीर सी
हे नारी, दुर्गा, लक्ष्मी
तुझे में अदना इंसान
क्या परिभाषित करूँ !

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