साँझ🕊️   ("साँझ" यदुवंशी)
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Joined 20 July 2021


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22 SEP AT 18:20

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20 SEP AT 20:30

खोई हुई थी जाने कहां मैं
ढूँढा मुझको इस जहाँ में,
कैसे कहूँ मैं, कौन है वो
मेरे भीतर का बस मौन है वो।

जिसने मेरी रूह को जगाया
मुझसे ही मुझको मिलवाया,
मत पूछो कितना खास है वो
मेरे भीतर की बस सांस है वो।

दिखी जिसमें मेरी परछाई
मिलकर उससे तृप्ति पाई,
क्या कहूँ कैसा हमदम है वो
मेरे भीतर का बस ब्रह्म है वो।

ध्यान में मुझको साधकर
फिर अनुभूति में बांध कर,
मत पूछो जो उसने कही,
ये कहानी फिर सही।

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18 SEP AT 20:57

तुम प्रेम करना मुझे मृत्यु की तरह

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17 SEP AT 20:16


सजा पलकों पे ज़रा ख़्वाब सलीके से,
चुका तू ज़िंदगी का हिसाब सलीके से।
कोई कैसा भी क्यूँ न सवाल पूछ ले,
बस देना सीखो तुम ज़वाब सलीके से।

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14 SEP AT 20:06

मेरे हिन्द की भाषा हिन्दी है, क्यूँ तू इसे बिसराए,
ये नैतिकता की कुंजी है, क्यूँ ना समझ तुझे आए।

हिंदी में अपनापन कितना, है मीठी भाषा हिंदी की,
अंबर में ज्यूँ चमके चंदा, ये चमके माँ की बिंदी सी।
सहज, सरल और मधुर भावपूर्ण, मन को जो छू जाए,
नैतिकता की कुंजी है ये, क्यूँ ना समझ तुझे आए।

हर शिशु के मुँह से निकले पहला स्वर माँ हिंदी का,
आप और तुम का भेद बताए, गरिमामय शब्द हिंदी का।
आधे वर्ण को ये सहारा देकर पूर्ण समर्थ कर जाए,
नैतिकता की कुंजी है ये, क्यूँ न समझ तुझे आए।

मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा सबकी साथी हिंदी थी,
वेद पुराणों का ज्ञान कराया वो सहज सरल माँ हिन्दी थी।
देववाणी संस्कृत से जन्मी, जो अपना मान बढ़ाए,
नैतिकता की कुंजी है ये, क्यूँ ना समझ तुझे आए।

है मातृभाषा हिंदी देश की, क्यूँ तू इसे झुठलाए,
नैतिकता की कुंजी है ये, क्यूँ ना समझ तुझे आए।

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12 SEP AT 23:23

न जाने किसकी याद में वो जागता है रात भर,
खोया-खोया चाँद, जमीं पे झांकता है रात भर,
भटकता रहता है अकेले, खुद अंधेरों में मगर,
जमाने भर को वो रौशनी बांटता है रात भर!

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10 SEP AT 13:17

रंग सारे भर कर देख लिए हर इक मुसव्विर ने,

मेरी आँखों की उदासी छुपाई न गयी तस्वीर में।

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9 SEP AT 23:45

मैं प्रेम धार हूँ गंगा की, प्राण काशी का कहलाऊं,
तू मणिकर्णिका घाट प्रिय,मैं मुक्ति तुझमें ही पाऊं।

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7 SEP AT 19:28

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6 SEP AT 17:11

ख्वाइशों पर जब ताले लग जाते हैं,
ज़हन पे जंग,दिलों पर जाले लग जाते हैं।

इसीलिए तो दिल तेरी फरमाइश कर बैठा।

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