भूतकाल तो बीत गया, फिर विगत काल में क्या जीना!
कड़वी यादों की भारी गठरी, लेकर चलना फिर गिरना।
हर बार लगा ऐसा क्या हुआ, मुझको ही क्यों मिली सजा!
इस किन्तु परन्तु की जंग में, हम भूल गए आज जीना।
बीते कल की है ठेस लगी, आते कल की भी फ़िक्र हुई।
बस बीत गया और रीत गया, जो वर्तमान है गुज़र रहा।
इतिहास बाँच लो देख-परख, बीती बातों पर युद्ध हुए।
जंग छिड़ी धरती बिखरी , माताओं की गोदी उजड़ी!
माथे का सिन्दूर गया, बहनों का भाई क्यों रूठ गया!
जब-जब विगत को छोड़ चले, भूले समझ झूठा सपना!
तब-तब सृष्टि मुस्काई है, फिर समय ने प्रीत निभाई है।
ब्रह्मांड चला तेरा सखा बने, रब ने किस्मत पलटाई है…।-
हुस्न परदे में हो तो और भी हसीन लगता है!
वर्ना गुस्ताखियों से इश्क़ भी कुछ बच के चलता है।-
ऐ बारिश न थमना अभी, मेरा दिलबर जो आया है!
मेरे अधूरे ख़्वाबों को जैसे, गुलाबी कर दिखाया है..!-
तेरे सँग चलने की,
कुछ ऐसी ख़ुमारी है!
यह प्रेम दंश जानां,
हर ज़हर पे भारी है...!-
सभी के आपसी प्यार के कारण इस कानन को जंगल में मंगल की उपमा दी जा सकती थी। उनका संसार परहित पर आधारित था। फिर एक दिन एक बाहरी सियार ने प्रवेश किया लेकिन खाल उसने बाघ की ओढ़ रखी थी। उसने ऐलान किया कि खुद को बचाना है तो मुझे अन्य जानवरों के ठिकाने बताने होंगे। बस फिर क्या था आत्मरक्षा हित सभी परस्पर शत्रु हो गए, सुंदर संसार तबाह हो गया। अब वहाँ सिर्फ कौओं, गिद्धों और सियारों का बोलबाला था।
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एक पैर में बाजे पायल,
एक पैर में क्यों जकड़न!
हँसने पर पाबंदी क्यूँ है,
लबों पे शोख गुलाबी रंग!
बरसाती आँखें बतलातीं .
ज़ुल्मों का लंबा मौसम!
बोलूँ तो बवाल हैं कहते,
चुप्पी पर कितने लांछन!
मैं कैसी आधी दुनिया हूँ,
न ही मुक्ति न बंधन.....!!-
वो मुलाक़ातों का सिलसिला, बीच बढ़ता सा फासला।
क्यूँ था इक हंगाम पे टिका, यादों को भी रहा गिला...!-
तुम पर ख़ुद से ज़्यादा भरोसा किया है
ये जानते भी-
शमा ने हवाओं से सौदा किया है...।-
अधूरापन ही लाज़िम है ज़िन्दगी के लिए,
मुक़म्मल हो गए तो खाक़ में मिल जाएँगे!
ख़्वाहिशों सँग चलता रहे साँसो का सफ़र,
सब पा कर भी तो यहीं छोड़ जाएँगे....।
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