हुआ यूं कि मैंने
तुम्हें देने को
बोया प्यार
उसको सींचा, इतना सींचा
कि इस पागलपन से सड़ गया प्यार।
फिर मैंने मोहब्बत की बेल लगाई
उसको सहारा दिया, बांधा, इतना बांधा
कि बंदिशों में घुट, मर गई मोहब्बत।
अंततः मैंने उगाया इश्क़
इश्क़ अभी छोटा था
कि उसको खा गए शक के कीड़े।
प्यार, इश्क़, मोहब्बत
पूरी तरह जी नहीं पाते।
यहां होना तो ये था कि
मुझे बोना था तुम्हें,
सींचना था तुम्हें
जगह और सहारा देना था
फिर फैलती तुम्हारी बेलें
फिर तुम देते मुझे प्रेम
और मेरी मेहनत सफल हो जाती।
- सुप्रिया मिश्रा
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