Ankur Thakar   (Ankur Thakar)
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Joined 9 August 2020


Joined 9 August 2020
5 OCT AT 12:22

People selling their self respect just for Few cents.

No One is best Here everyone one is wrost. They Just waiting their Turn.

I Have a story for everyone A to Z.

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24 SEP AT 11:44

हर कोई अपने हिसाब से बोलता रहा मुझे.
मेरे हिसाब से किसी ने बोला ही नहीं.

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24 AUG AT 15:37

दिल टूटने का जाम मुझसे उठया ना गया एक ही किस्सा था मेरा वो भी मुझसे सुनाया ना गया

रहमतों का दिया दर पे जलता गया.बहार का खुदा माना नहीं, घर का मुझसे मनाया ना गया.

चौकट पे आकर गुनाह कर भी सर झुकते गये.
पर पिंजरे का पंछी किसी से भी उड़ाया ना गया

राश ना आया लहजा यहां फितरती फितूरो का.
लफ्जों में रखके शहद जहर पिलाया ना गया

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21 JUL AT 12:24

वफा की तिजोरीयों में अब ताले हो गये
मानो जैसे महलों में लगे जाले हो गये

नये दौर की नजर बदल गई मेहनत की
दूध के लिफाफे मानो जैसे गवाले हो गये.

संस्कृति लुप्त हो रही है मेरे देश की अब.
छोटे लिबास छोटी सोच के लोग हवाले हो गये

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16 JUN AT 10:49

मुद्दत हुई खबर आये हुए, हम आज
भी इंतज़ार में है सब्र लगाये हुए.

इश्क ने असल में अल्फाज बदल दीये.
कई साल हो गये खुद से नजर मिलाये हुए.

खुदा तेरी बंदिश से फासले हो ही गये
दर बद्र घूमते हम खुद को गवाये हुए.

तेरे गुनाह की क्या सजा मुकर्रर करूं.
दुनिया से परे गये सब रिश्ते निभाये हुए.

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28 APR AT 15:43

1:
जुमले की दौड़ में हम हिस्सा नहीं लेते
सुनाया हुआ किसी का किस्सा नहीं लेते.

2:
निगाहों के जैसी बदलती अख़बार देखी है
बहुत करीब से मैंने ये दुनिया बेकार देखी है.

मतलब के वक़्त प्यार की भरमार देखी है
निकल जाते ही जहर बेचती सरकार देखी है.

3:
रुतबे रुबाबों को देख के होली लगती है.
अब यहाँ ख़िताबों की भी बोली लगती है.

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8 APR AT 10:55

शायरी में भी लफ्जों का कारोबार देखा.
तारीफ के बदले तरीफ का ब्यापार देखा.

दिल को छू ले बातों से फर्क नहीं पड़ता.
झूठी तबियत का शरगिर्द ये संसार देखा.

हालातों की ज़मीं में ना नमी का श्रृंगार देखा
लतीफों में एक ही वाह वाही का कगार देखा.

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17 MAR AT 12:10

हुकम ए- गुलाम के लफ्ज महान नहीं होते
टूटी तलबारो के हिस्से म्यान नहीं होते.

मेरा हकीम हाल अब लफ्जों से पूछता है.
उजड़े औधों के कभी खास ध्यान नहीं होते.

इल्म-ए -उजाला विकता दुकानों में देखा है
ज्ञान बेचने वाले सभी को ज्ञान नहीं होते.

दलीले बदलने से हक़ीक़त नहीं बदलती .
हर बार गबाही के ब्यान में ब्यान नहीं होते.

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24 FEB AT 12:39


वक़्त सही होता तो फकत लिखता
तेरे इश्क को सुखा दरख्त लिखता.

पतझड़ गुजरी और तुम बहार में हो.
तेरे साथ को मैं टुटा तख़्त लिखता

तबज्जो मिल ना पायी खलल को मेरी
तेरे गुजरे वक़्त को कैसे वक़्त लिखता.

रिश्ते झूठे निभाने नहीं जलाने वाकी है.
बेवफा जुबाँ के कैसे उसूल सख्त लिखता.

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28 JAN AT 11:05

आदाब मियां क्या सवाल लिखते हो.
इश्क को खता बेवफा को हलाल लिखते हो.

होता भाई मेरा तो दिल ए गम खोल देता
फिर किसके लिये तुम ये मलाल लिखते हो.

नफे के नेबले नुक्सान का सौदा नहीं करते.
जो समझ ना आये क्यों वो कमाल लिखते हो.

लफ्जो की मिठास का जहर उतरता नहीं.
तुम खुदा के शोर को भी ववाल लिखते हो.

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