हकुमते होने लगी ज़ब दिल पे सौदे बंटबारे की.
हमने बदलती नजर देखी यहाँ हर एक तारे की.
यूँ तो कुछ भी नहीं रहा मैं ताउम्र भर तेरे लिये.
कस्ति डूबी मुकामों पे हसल बदली नजारे की
मेरा गांव अब लहजा बदल के मिलता है मुझे.
जैसे दरिया ने औकात नापली किसी किनारे की
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हर दुआ कबूल नहीं होती और हर मिट्टी धूल नहीं होती.
बेवफा भी वफ़ा ढूंढ़ते है पर हर बात यहाँ असूल नहीं होती.
नियत खोटी नफा नुकसान देखे हर डोर यहाँ मकबूल नहीं होती
मकबूल : सर्वप्रिय-
1:
जीत कर भी जो मुस्कराया नहीं
सोचो किनती बार हारा होगा.
2:
ना तुझे लिख पाया ना एजाज ही लिख पाया
दरिया के पास बैठ लहरों का ना मिजाज लिख पाया.
एजाज - अद्भुत प्रकृति.
3:
वक़्त ने यहां जंजीरे बांध रखी है
सबके हिस्से की तक़दीरे बांध रखी है.
सच्चाई की सोच को भी धीमक लग गयी
जिन्होंने खुदा के नाम की गले में तस्बीरे बांध रखी है.
4:
आदत छोड़ी नहीं आदत ने मेरी
बढ़ी तकलीफ दी मुझे मोहब्बत ने तेरी.
लफ्ज़ लबारिश लगे तुझे दिल से निकले मेरे
हस्ती हर दिन सुखती गयी बारिश से मेरी
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हुआ ज़िक्र फिर से वो ख्याल नहीं आया. तेरे
बाद इस दिल को किसी से मलाल नहीं आया.
मौसम के जैसे यहां लहजे बदल जाते है. पर
नादान दिल में ऐसा कभी सबाल नहीं आया.
कबीले कस्बे से मोहब्बत बगाबत करा देती है.
खामोश दरिया है अब फिर से बवाल नहीं आया-
1:
एहसान से बढ़ा कोई उधार नहीं देखा
सादगी से बढ़ा कोई किरदार नहीं देखा.
2:
गहरी चोट के ज़ख्म भर जाते है. पर कुछ
अपनों के दीये घाब ज़िन्दगी भर घाब ही रहते है.
3:
रोटी के टुकड़े का भी सम्मान रखते है.
एहसान इंसान नहीं बेज़ुबान याद रखते है.
तस्बी फेर के भी लोग अज्ञान रखते है
बिना पढ़े भी वो अदब का ज्ञान रखते है.
4:
गलती माफ़ की जाती है आदतें नहीं.-
दर्द की गहराईयों का मर्ज लिखा है.
मैंने एक पन्ने पे बाप का फर्ज लिखा है.
बेटे गांव को छोड़ शहर के हो गये.
राह देखती दराजों का दर्ज लिखा है.
सोच से अपाहिज दर्द पढ़ नहीं पाते.
तीर्थ में नहा के भी ना उरते वो कर्ज लिखा है.
दुआ मांग मांग के माँगा था जिसे वो जनाजे
पे भी ना आया ऐसी औलादो को गर्द लिखा है
दराजों - drawers
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दिल लगा के भी सकूँ मत नहीं आता
मौत का पत्ते पे कभी खत नहीं आता
आता जाता इंसान बोझा ढोने के लिये
उसी का बोझा उसी के काम नहीं आता.
आँख का आँसू किसी मायने में नहीं आता.
गम को नापने का कोई पैमाना नहीं आता.
हुआ गुनाह कबूल तो सजा मुकर्रर तय है.
खुद के खिलाफ फैसला सुनाने नहीं आता.
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गुनाह पे करबाई की मोहर सड्डी पड़ी है.
तजुर्बो से देख तिजोरियां खरी पड़ी है.
इंसाफ के तराजू पे दाग रिस्बत के लगे है.
नियत अहद की ज़िन्दा होकर मरी पड़ी है.
खिलाफ निकले लफ्जो में अदब नहीं देखा.
मकर सी फितरत दोखे से जड़ी पड़ी है
समंदर से भरे लहजे सदा खामोश रहते है.
नदी नालों के शोर से दुनिया भरी पड़ी है.-
आशिकी का खुमार बेकार है तेरे आगे.
सब कुछ फीका है मेरी सरकार के आगे.
जिस दिल में दस्तक हो जाये तेरे नाम की.
उसका दिल नहीं लगता किसी दरवार के आगे
लोग जशन में है दिल दुखा कर किसी का.
ऐसी रीत जीत फीकी है तेरी हार के आगे.-