Ankur Thakar   (Ankur Thakar)
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Joined 9 August 2020


Joined 9 August 2020
4 FEB AT 15:08

दिल लगा के भी सकूँ मत नहीं आता
मौत का पत्ते पे कभी खत नहीं आता

आता जाता इंसान बोझा ढोने के लिये
उसी का बोझा उसी के काम नहीं आता.

आँख का आँसू किसी मायने में नहीं आता.
गम को नापने का कोई पैमाना नहीं आता.

हुआ गुनाह कबूल तो सजा मुकर्रर तय है.
खुद के खिलाफ फैसला सुनाने नहीं आता.

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1 JAN AT 9:07

Don't hate People
Respect them who deserve only.

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14 DEC 2024 AT 17:19

गुनाह पे करबाई की मोहर सड्डी पड़ी है.
तजुर्बो से देख तिजोरियां खरी पड़ी है.

इंसाफ के तराजू पे दाग रिस्बत के लगे है.
नियत अहद की ज़िन्दा होकर मरी पड़ी है.

खिलाफ निकले लफ्जो में अदब नहीं देखा.
मकर सी फितरत दोखे से जड़ी पड़ी है

समंदर से भरे लहजे सदा खामोश रहते है.
नदी नालों के शोर से दुनिया भरी पड़ी है.

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10 NOV 2024 AT 12:03

आशिकी का खुमार बेकार है तेरे आगे.
सब कुछ फीका है मेरी सरकार के आगे.

जिस दिल में दस्तक हो जाये तेरे नाम की.
उसका दिल नहीं लगता किसी दरवार के आगे

लोग जशन में है दिल दुखा कर किसी का.
ऐसी रीत जीत फीकी है तेरी हार के आगे.

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5 OCT 2024 AT 12:22

People selling their self respect just for Few cents.

No One is best Here everyone one is wrost. They Just waiting their Turn.

I Have a story for everyone A to Z.

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24 SEP 2024 AT 11:44

हर कोई अपने हिसाब से बोलता रहा मुझे.
मेरे हिसाब से किसी ने बोला ही नहीं.

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24 AUG 2024 AT 15:37

दिल टूटने का जाम मुझसे उठया ना गया एक ही किस्सा था मेरा वो भी मुझसे सुनाया ना गया

रहमतों का दिया दर पे जलता गया.बहार का खुदा माना नहीं, घर का मुझसे मनाया ना गया.

चौकट पे आकर गुनाह कर भी सर झुकते गये.
पर पिंजरे का पंछी किसी से भी उड़ाया ना गया

राश ना आया लहजा यहां फितरती फितूरो का.
लफ्जों में रखके शहद जहर पिलाया ना गया

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21 JUL 2024 AT 12:24

वफा की तिजोरीयों में अब ताले हो गये
मानो जैसे महलों में लगे जाले हो गये

नये दौर की नजर बदल गई मेहनत की
दूध के लिफाफे मानो जैसे गवाले हो गये.

संस्कृति लुप्त हो रही है मेरे देश की अब.
छोटे लिबास छोटी सोच के लोग हवाले हो गये

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16 JUN 2024 AT 10:49

मुद्दत हुई खबर आये हुए, हम आज
भी इंतज़ार में है सब्र लगाये हुए.

इश्क ने असल में अल्फाज बदल दीये.
कई साल हो गये खुद से नजर मिलाये हुए.

खुदा तेरी बंदिश से फासले हो ही गये
दर बद्र घूमते हम खुद को गवाये हुए.

तेरे गुनाह की क्या सजा मुकर्रर करूं.
दुनिया से परे गये सब रिश्ते निभाये हुए.

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28 APR 2024 AT 15:43

1:
जुमले की दौड़ में हम हिस्सा नहीं लेते
सुनाया हुआ किसी का किस्सा नहीं लेते.

2:
निगाहों के जैसी बदलती अख़बार देखी है
बहुत करीब से मैंने ये दुनिया बेकार देखी है.

मतलब के वक़्त प्यार की भरमार देखी है
निकल जाते ही जहर बेचती सरकार देखी है.

3:
रुतबे रुबाबों को देख के होली लगती है.
अब यहाँ ख़िताबों की भी बोली लगती है.

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