दिल टूटने का जाम मुझसे उठया ना गया एक ही किस्सा था मेरा वो भी मुझसे सुनाया ना गया
रहमतों का दिया दर पे जलता गया.बहार का खुदा माना नहीं, घर का मुझसे मनाया ना गया.
चौकट पे आकर गुनाह कर भी सर झुकते गये.
पर पिंजरे का पंछी किसी से भी उड़ाया ना गया
राश ना आया लहजा यहां फितरती फितूरो का.
लफ्जों में रखके शहद जहर पिलाया ना गया
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