Pallavi _Barnwal010   (avi✍️)
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Joined 14 December 2020


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16 FEB AT 22:28

गली - गली फिरती थी
लड़की थी बावली सी
न आँख में काजल
न होठों पे लाली
वो होली हो चाहें दिवाली
अठखेलियों में तकरार हुई
नैना मिलके चार हुईं
आंखें हैं झील सी
मुस्कुराहट में भी राग है
 कहके वो यूं गुज़र गया....
लड़की की सृष्टि और दृष्टि
दोनों को था रोक गया
  अब दृग में सुरमा, होठों पे सुर्खी..!!
लगता है हो ही गई बावली
प्रेम–प्रीति में मतवाली।।

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29 AUG 2023 AT 9:44

माना रोशनी नही है खुद की..
फिर भी जीवन को रौशन कर जाता है।
शायरों से शायरी करवाता है!
मितवा वादों में इन्हें ही तोड़ के लाता है..
हाथों में मित के अपनें इन्हें सजाके,
ख्वाबों में जन्नत की सैर कराता है।
गुजरे अपनों की याद दिल में बसाकर!!
खुद को उनका दर्पण बनाता है..
कहा–अनकहा सब इनसे कहकर,
यूं ही नहीं दिल हल्का हो जाता है।

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1 JAN 2023 AT 1:27

सुस्वागतम।

सुस्वागतम।।

रुकिए रुकिए, ठहरिए जरा😀

आपको नए साल की ढेरों बधाईयां।
आपके जीवन में खुशियों की सौगात आए।।
*Happy new year*

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19 DEC 2022 AT 23:24

आज़ आपको कुछ बात बताती हूँ। आज एक कहानी अपने अंदाज़ में सुनाती हूँ। एक छोटी सी बच्ची की ये कहानी थी, जिसने अपने आज के पन्नों पर आने वाले कल की भविष्य की कलम से लिखी एक कहानी थी। बड़े होने का शौक बहुत था पर मतलबी दुनियाँ से बेगानी थी। परियों की कहानियाँ उसे लगती बड़ी रूहानी थी। छोटे छोटे ख्वाबों से उसने भरे ज़हन के पिटारे थे। जो लगते उसको जान से ज्यादा प्यारे थे। उन ख्वाबों की मालाएं पिरोए वह बच्ची एक दिन बड़ी हो गयी। वो नन्हीं सी परियां भी न जाने कितनी दूर हो गयीं। अब जब भी उन ख्वाबों पे अपनी निगाहें फेरती है, वो बचपन खुद में एक सुंदर ख्वाब था यह सोच के खूब वो हंसती है। समझ गयी है अब वो जो सपने उसने सजाये थे परियों जैसे वो भी बचपन की मासुमियत् मे पल रहे........।खैर छोड़ो उन बातों को अब ये सारे बातें हो चली पुरानी है। नये सिरे से लिखने को चली अपनी एक नई कहानी है। समझ गयी है शायद वो बचपना ही ज्यादा प्यारा था। टूटा खिलौना टुटे अहसास से कहीं सुहाना था, ख्वाब अधूरे थे पर पूरे होने की उम्मीद तो थी...... खैर अब तो आंसू भी रुसवा कर जाते हैं।

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16 DEC 2022 AT 1:03

धूप की तपिश बिना क्या
छावों में चलना जिंदगी है?
पत्थरों को तोड़ निर्झर का
निकालना जिंदगी है।
सोचती हूं रुक थोड़ा विश्राम कर लूं
पर कोई कह रहा यूं..
दिन रात चलना जिंदगी है।।

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22 AUG 2022 AT 12:36

सामने खड़ा समंदर भी शांत सा लगता है,
मन में बसे तूफ़ान का बवंडर जब उठता है।
आज़ उनसे आख़िरी मुलाकात हुई,
नज़र से नज़र टकराई .........
ज़ुबां ख़ामोश, आंखों से बातें हज़ार हुईं।
साथ तुम्हारा न था मुकद्दर में ...
इक एहसास से आंखों से बरसात हुई।।

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3 MAR 2022 AT 12:45

कभी जिंदगी कितनी उदास है
सालों से बुझी न, ऐसी प्यास है
खारे पानी का समंदर है
न बुझेगी प्यास ऐसा ये मंज़र है
खोयी-खोयी सी रहती है ये
शायद किसी की तलाश है
ये ज़िंदगी है ज़नाब
यहाँ हम मुसाफ़िर है
खुद की ही तलाश है
बस इतनी सी प्यास है।।

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2 JAN 2022 AT 9:03

कहते हैं--
रेगिस्तान भी हरे हो जाते हैं
जब भाई साथ खड़े हो जाते हैं।।

शायद इसीलिए रेगिस्तान इतना सूखा है
क्योंकि आज भाई, भाई की खुशियों का भूखा है।।

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1 NOV 2021 AT 20:32

मैं कश्ती
तुम किनारा हो
मैं भटकी हुई मुसाफ़िर
तुम ध्रुवतारा हो
हर पल मुझे
ठोकरो से बचाये
तुम वो
सहारा
हो!

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14 JAN 2021 AT 11:39

उड़ते पतंग सा है वो
चाहें कितनी बुलंदियाँ
छू ले.....
उसकी डोर मुझसे..
जुड़ी रहती है।।

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