सदियों से घुलती रहीं
नदियां समंदरों में
खारे समंदर ना मीठे हुए
ना नदियों की प्यास बुझी।-
चाय का कप होगा, संगम की शाम होगी..
हम आएंगे आपके शहर में, वो शाम यादगार होगी..❤️-
मैं
क्या कहूँ,
हूँ कैसे जीती
श्मशान
की बनी
मैं चिता
जो चाहते,
वहीं जलाते हैं
फिर अस्थि
भस्म बहाते हैं
झूठे अश्कों
संग बहा देना।।
गर आऊँ..!-
खामोश यूँ के कुछ लफ्ज़ नहीं लिखने को,वगरना क्या बात है .....कुछ बात तो नहीं,
लिखेंगे दिल खोलकर मोहब्बत की ग़ज़लें,बशर्ते तुम साथ हो....तुम साथ तो नहीं।❣-
हो गया हूँ आबाद,
फिर से बर्बाद करोगी क्या ...
बन गया हूँ प्रयागराज ,
फिर से इलाहाबाद करोगी क्या ....-
पवित्रता से भरा हुआ है कुंभ नगरी में संगम
अब बस यहीं रम सा गया है मेरा मन-
जुबां पर राग रहता है, दिलों में बाग रहता है
कभी मिलों भी तुम उससे जो 'प्रयाग' रहता है
एक बार आओ शहर में तुम तब ये जानोगे
जीवनभर इस शहर से कैसा अनुराग रहता है
सरों का ताज बनके भी वो एक राज रहतीं हैं
कोई कल कह रहा था वो 'प्रयागराज' रहतीं हैं
उनकी मासूमियत से भी मेरा दिल है घबराता
अक़्सर मासूम लोगों में, सुना हूँ गाज रहती है-
वो कन्याकुमारी का समंदर
मैं कशमीर की बर्फ बारी
संगम हो भी तो कैसे ?-
तू संगम तट सी चौरस प्रिये
मैं दारागंज सा संकरा हूं
तू सिविल लाइंस सी शांत है
मैं भीड़-भाड़ का कटरा हूं-