है ये पुरानी चलन, जो चलातें हैं लोग
सब कराता है मुक़द्दर, फस जातें हैं लोग
इस जहाँ में आकर, निभाकर, सीखाकर
आदमी चला जाता, बच जाते हैं लोग-
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प्रयागवाला बिहारी🇮🇳
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कर्म ही धर्म है 🕉
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ख्वाबों को कर हांसिल, कहीं और रख दिया
चाहतों को कर शामिल, कहीं और रख दिया
एक तेरा इन्तेज़ार भी, क्या अज़ब मैंने किया
लोगों से छुपा कर दिल, कहीं और रख दिया-
घर लौट जाने की किसको चाह नहीं होती
पर हर किसी की एक जैसी राह नहीं होती
हमारी उम्र से मत मापिए तजुर्बे हमारे
क्योंकि हादसों को उम्र की परवाह नहीं होती-
इश्क़ में मस्त हो के हम किसी को चांद कह गए
जिस के थे दीवाने तारे, उसी को चांद कह गए
असर फिर होश का गया छाई मदहोशी इस कदर
ग़मों को भूल हम सारे, खुशी को चांद कह गए
उसका दिल दुखाना अलग उसका मुस्कराना अलग
उससे रूठ कर भी हम उसी को चांद कह गए-
देखता रह गया था मुस्कराते हुए
मुड़ कर भी ना देखा वो जाते हुए
बहाने लबों से नहीं उठ पा रहें हैं
कोई घर लौट आया पछताते हुए-
आ कलम तुझे सहारा दूँ
तेरा मुकाम तुझे दुबारा दूँ
तू झूमने लगे काग़ज़ों पर
ऐसे ख्यालों का पिटारा दूँ
दंग रह जाए सब देखनेवाले
तू रंग बिखेरे मैं इशारा दूँ-
पवन के साथ हो गगन के ओर चल
सपनों के पंख से धरा को छोड़ चल
चिंतन के कोष में होगी कविता कई
है वो जहां कही चल उसे खोल चल
समय की चोट से साहस है जो गया
करेगा और क्या अब उसे खोज चल
सुनेगी भीड़ भी वे भी ध्यान से कभी
जो तेरा मन कहे अभी तू बोल चल-
अभी कई बातें कहनी थी कुछ वक़्त साथ बिताना था
मेरी तमन्नाएं अपनी थी पर तुम्हें कहीं और जाना था
बंदिशों में थके हारे हम कुछ करतें तो क्या करतें
आखिर दर्द छुपाने का बहाना बस एक मुस्कराना था-
झूठे कवि, लिखें झूठी कविता, झूठी कविता बने झूठे गीत, झूठे गीतों के झूठे धुन और झूठे धुन पर नाचते तुम.
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बात-बेबात की बात हुई यहाँ-वहाँ,
दूर मशहूर हुई, जाने पहुँची कहाँ-कहाँ।
बात-बेबात पे चटकारे सबने लिए,
और मदहोश हुए, फिर रहे जहाँ-तहाँ।-