आरोही त्रिपाठी   (आरोही सोहगौरा)
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Joined 6 September 2019


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Joined 6 September 2019

यहाँ पहचान की जो बस्तियाँ थी
उन्हीं में खेलती कुछ लड़कियाँ थी

इधर से देखती थी ख़्वाब अपना
इसी घर में बहुत सी खिड़कियाँ थी

सहारे जिसके मैंने चलना सीखा
मेरे बाबा कि वो बस उंगलियाँ थी

मुलायम हाथ जैसे कोई टहनी
इसी पर बैठती सब तितलियाँ थी

हमारा गांव में गुज़रा है बचपन
यहीं तालाब में कुछ मछलियाँ थी

कमाने आ गए परदेश हम भी
मगर गांवों में मेरी खेतियाँ थी

लगे हैं जिस्म पर ये ज़ख्म जितने
हमारे दोस्त की ही बरछियाँ थी

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मैं तुम्हें अब छोड़ भी सकती नहीं हूँ
हाँ ये रिश्ता तोड़ भी सकती नहीं हूँ

जिस वरक पर नाम तेरा लिख दिया है
वो वरक मैं मोड़ भी सकती नहीं हूँ

कर दिया बरबाद मैंने इश्क़ में यूँ
हाथ तुझसे जोड़ भी सकती नहीं हूँ

तुमसे वादा कर लिया ज़िंदा रहूँगी
दर्द में सर फोड़ भी सकती नहीं हूँ

मार डाला ख़ुद को मैंने इस तरह से
ख़ुद को अब झिंझोड़ भी सकती नहीं हूँ

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ज़िंदगी का ख़तम सफ़र सुन लो
मौत की मेरे अब ख़बर सुन लो

मुझको तेरी वफ़ा ने मार दिया
ज़हर का है नहीं असर सुन लो

वैसे तो तुम बात भी नहीं सुनते
जाते जाते मेरी मगर सुन लो

साथ देना हमारा तुम हरदम
तुम ही हो मेरे हमसफ़र सुन लो

जाते जाते है ये इल्तिज़ा तुमसे
ख़ैर छोड़ो दर-गुज़र सुन लो

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एक दरिया के दो किनारे हम
क्या तुम्हारे तो क्या हमारे हम

तुम जो होते तो ज़ख्म भर जाते
कैसे दिल की भरें दरारे हम

ज़िस्म बैसाखियों का आदी है
ख़ुद के चलते नहीं सहारे हम

मेरी बातें उसे तकल्लुफ़ दें
ज़िंदगी किस तरह गुज़ारे हम

उसका होना मिठास है समझो
और उसमें हैं यार खारे हम

वो हमारा नहीं रहा जानी
उसको कैसे करें इशारे हम

देखकर मुझको मत दुआ मांगो
एक टूटे हुए सितारे हम

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कैसी ख़बर थी मौत की जो काम कर गई
हिम्मत भी अपनी हार के लड़की वो मर गई

जो लोग घर में रहते थे वो खुश बहुत हुए
साज़िश हमारी खूब थी बच्ची वो डर गई

जो शख़्स अपना खास था वो दूर हो गया
हाथों से अपने देख लो मैं क्या ही कर गई

मुश्किल सफ़र में साथ मेरा छोड़ना नहीं
ये बोल कर वो गोद में मेरे बिखर गई

मेरे ख़ुदा तू खूब है तेरी नवाज़िशें
तूने निभाया साथ तो जाकर निखर गई

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हमारे इश्क़ में पागल फिरे जो
मैं ऐसा ही दिवाना चाहती हूँ,

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जिद भी हमने है आज ये ठानी
न चलेगी तुम्हारी मनमानी

मैं हूँ नाराज़ उन फ़क़ीरों से
जिनको है रंग से परेशानी

पास आओ मैं रंग दूँ गाल तेरे
पास आओ डरो नहीं जानी

अब तो मैं खुद तुम्हे बुलाती हूँ
फिर न कहना कि बात न मानी

आ तुझे लाल रंग रंग दूँ मैं
कल को लाऊँगी रंग मैं धानी

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उड़ते देखा है तुमने तितली को
खुलते पाया है हमने खिड़की को

फूल को फूल कैसे दूँगा मैं
वो भी सादा मिजाज़ लड़की को

क्यों परेशान हो रहे कान्हा
ख़ुद परेशान करते गोपी को

उसका हंसना भी यार जेवर है
शर्म आने लगेगी मोती को

अब दोबारा कहा मिलेगी फिर
उसने बोला कि अबकी नैनी को

मैंने पूछा गले लगाओगी
बोली गुस्से में हां फाँसी को

मैंने बोला कि छोड़ दो गुस्सा
बोली छोडूंगी वो भी जानी को

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मिरा दिल ग़म छुपाना चाहता है
मगर तुमसे बताना चाहता है

मुझे अल्लाह ने बख़्शी है नेमत
वही नेमत ज़माना चाहता है

उठाऊँ हाथ माँगू मैं दुआएँ
ख़बर है क्या दिवाना चाहता है

मुझे कहता है तुमको छोड़ दूँगा
मुझे यूँ आज़माना चाहता है

जिसे हमने सिखाई थी मोहब्बत
वही हमको भुलाना चाहता है

अभी तक लौटकर आया नहीं वो
वो मुझसे दूर जाना चाहता है

जिसे हम दिल कि धड़कन कह रहे थे
वही हमको मिटाना चाहता है

चलो अब चल रहे हैं इस जहाँ से
बदन अपना ठिकाना चाहता है

हथेली काट ली थी जिसकी ख़ातिर
वही अब छोड़ जाना चाहता है

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सिर्फ़ आँखों के इशारे नहीं काफ़ी होंगे,
इश्क़ में इतने ख़सारे नहीं काफ़ी होंगे,

चाँद को है ये ख़बर कुछ तो कमी रहनी है
उनकी ख़ातिर ये सितारे नहीं काफ़ी होंगे,

मानते हैं कि बहुत आग़ है तेरे अंदर
मुझको इतने तो सरारे नहीं काफ़ी होंगे,

चार दिन की ये मोहब्बत तो नहीं है मेरी
और फिर चार हमारे नहीं काफ़ी होंगे,

आँख को शौक़ है देखे वो तुम्हें पहरो तलक
आँख को इतने नज़ारे नहीं काफ़ी होंगे,

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