एक दिन मेरा ये संघर्ष भी
छू लेगा मेरे सपनों की ऊँचाइयाँ
दबे जज़्बात और छुपे कुछ राज
ही लिखतें हैं मेरे अस्त्तिव की गहराइयाँ
मुझे मुझसे बेहतर कोई समझ न पाया है
शायद कोई इन तूफानों में उलझ न पाया है
मग़र मैं उलझी हूँ और खुद को सुलझाया भी है
फिर एक स्थिर अस्तिव को बनाया भी है
बना के खुद को मज़बूत दूर की हैं खुद की कमियाँ
मेरे यही कुछ राज लिखते हैं मेरे अस्तिव की गहराइयाँ
आगे क़दम बढ़ाया है अब मुड़कर पीछे न देखूँगी
आएगी कितनी भी मुसीबत हँसकर सब झेलूँगी
एक दिन मुक़द्दर को भी झुकना पड़ जाएगा
जब ये मेरा जनून हद पार करने लग जाएगा
बना के काबिल खुद को छोड़नी है अपने इस जीवन कुछ परछाइयां
मेरे यही कुछ जज़्बात लिखते हैं मेरे अस्तित्व की गहराइयाँ
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