αηυяααg мιsняα   (𝑲𝒂𝒗𝒊𝒓𝒂𝒂𝒋 𝑨.𝑲..)
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Joined 7 January 2019


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[Chapter - 1]

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[Chapter -0]

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ये ज़िन्दगी किसी शाम की तरह ढल रही है
बेचैनी ही बेचैनी अब ज़हन से निकल रही है

प्यास कम नहीं हो रही अब हमारे दरमियां
तेरे सुर्ख़ होठों से जैसे शबनम पिघल रही है

आज भी तेरी मौजूदगी मेरे दिल में है कहीं
और तू रेत सी इन मुट्ठियों से फिसल रही है

कहीं अंधेरा छा रहा है रोशन से दिलों में
कहीं बेजान दिलों में नूर सी निकल रही है

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वो नहीं मिली थी तो मैं खुश था
उससे मिलकर भी तो मैं खुश था

वह मेरे ख्वाबों को तोड़ने में लगी थी
मैं उसके ख्वाब पूरे करने में खुश था

किसी को मंजिल मिली आसानी से
कोई था जो सफर पर ही खुश था

अश्कों से सींचा था मैंने जिसको
उस दरख़्त की सलामती से खुश था

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उसे लगता है कि उससे बिछड़कर मुझको कुछ नही हुआ
ये भी सच है कि उसके पीछे मेरे साथ क्या कुछ नहीं हुआ
वो गांव, वो गली, वो चौखट,वो घर सब तो छोड़ दिया मैने
और वो कहते हैं कि जो भी हुआ वो तो कुछ नहीं हुआ

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भरी दुनिया में किसी को अपना नही समझते हो
यकीनन तुम किसी को भी कुछ नही समझते हो

खामोशी की जुबान तो दूर की बात है अनुराग
तुम तो आखों की भी जुबान नहीं समझते हो

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अश्क अब खामोश हैं आवाज तू मुझको लगा दे
रो रहा है दिल तेरी खातिर गले मुझको लगा ले

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एहसास लिखे हैं पढ़ लेना

कुछ बात छुपी है दिल में
ये हर्फ मिलाकर पढ़ लेना

कोई खास बसा है मन में
दिल से लगाकर पढ़ लेना

दिल की बात है दिल में
जज़्बात ये मेरे पढ़ लेना

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आंखों में ख्वाबों के हैरत सजाए कहां जा रहे हैं
ये परिंदे दरख़्तों से उड़कर कहां जा रहे हैं

वो सहरा अभी तो होगा बेशक ही हरा भरा
वहां भी तो आएगी कभी खिजां जहां जा रहे हैं

उसी गुलाब के कांटो ने जख्मी किया मुझे
जिसे प्यार से हम अपने घर में लगा रहे हैं


तेरे खंजर के दिए जख्म तो भर चुके हैं
तेरे होठों के लिए जख्म अब तक भी हरे हैं

यह कौन तेरी बाहों के आगोश में आ रहा है
ये किसे अपनी जिंदगी से मस‘अले हो रहे हैं

हम तेरे साथ भी खुश थे तेरे बगैर भी खुश हैं
पांव के ठोकरों को गले लगा बढ़ते जा रहे हैं

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अब इन चरागों की लौ आखों में चुभती है
अजब ईजा में अब हम ये दिन काट रहे हैं

अजीब दुख है कि गम लबालब है दिल में
और गैरों में हम खैरात ए इश्क बांट रहे हैं

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