प्रिय महबूब,
मैं यही ख्वाइश रखता हूं
तू आए तो जिंदगी में बहार आए
खुद को खोकर तुझको पा रहा हूँ मैं
यही सोचकर मेरे दिल को करार आए
मर जाऊंगा एक दिन मैं तुझे यूं चुप देख
गर तू मेरे जनाज़े में आए तो बेशुमार आए-
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♦ι ℓιкє тнє ωαу ι αм ...✍️
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और फिर यूं हमने मुस्कुराना छोड़ दिया
जबसे उसने दिल का लगाना छोड़ दिया
मोहब्बत है अभी उसके दिल में मेरे लिए
यह बात भी तो उसने बताना छोड़ दिया
प्यार से सींचा कभी जिस पौधे को हमने
उसी दरख़्त ने इश्क निभाना छोड़ दिया
अलग कर ही चुकी थी वो खुद को मुझसे
उसके वास्ते हमने भी ज़माना छोड़ दिया-
ना मुकम्मल मोहब्बत पाई है मैने
न ही मोहब्बत कर पाता हूं मैं
जीते जी तो जी न सका दुनिया में
जीते जी अक्सर मर जाता हूं मैं
बड़ी मुश्किल से मोहब्बत में ढाला
खुद को एक दिन फिर मैने
कोई खता हो जाती है अक्सर मुझसे
या अनजाने में कर जाता हूं
मेरे दिल ने मुझको गिरा दिया अपनी
नजरों में आज फिर अनुराग
जैसे अक्सर ज़ख्मों को सिलने में
दिल में दर्द भर जाता हूं मैं-
रात को दिन, दिन को रात समझते हो
गैरों की कही हुई हर बात समझते हो
ये समझना कि मैंने नहीं समझा तुम्हें
तुम कौन सा मेरी हर बात समझते हो-
क्या हुआ जो अब हमारी बात नहीं होती
कौन सा अब तुम्हारे बगैर रात नहीं होती
आंखें रोती है अब हर रात तेरे हिज़्र में
बेमौसम आसमान से बरसात नहीं होती
कोई तसव्वुर में फना हो जाता है यहां
तो किसी की गम से मुलाकात नहीं होती
आंखों ने ग़ुबार है या कोई मौजज़ा है ये
बिना सहर किसी की हयात नहीं होती-
लफ्जों से ही नहीं तुम एहसास समझ लेना
दिल की दीवारों में लिखी बात समझ लेना
जरूरी तो नहीं हर बात लफ्जों से कह दे
मेरे मन के अनकहे अल्फाज समझ लेना
आंखें नाम और लफ़्ज़ खामोश हो जब भी
तुम बस मुझे अपनी बाहों में जकड़ लेना
कभी बादलों में छुपने की जिद में आए तो
इस सूने आसमां को मुट्ठियों में पकड़ लेना
याद आए जब भी कभी तुम्हे मेरी जानां
मिलूंगा खुशी बन तेरे होठों की समझ लेना-
कुर्बत में तेरी हम खुद को भूल गए
तेरी तबस्सुम देख हर गम भूल गए
आए थे हम इजहार-ए-मोहब्बत करने
तेरा चश्म देखकर हर हर्फ भूल गए
बाम - ए - फलक में महताब - सितारे
तेरी सूरत देखकर जगमगाना भूल गए
कभी फुर्सत में अपने सदके उतरना
तेरे चेहरे से हम नज़रें हटाना भूल गए-
मन में जो तेरा ख्याल लाए है
इसमें ख्वाबों के धुंधले साए हैं
तुझे पाकर जिंदगी मुकम्मल है
हर ग़म में तुझे गले लगाए हैं
बादलों को ग़ुमाँ है बारिश पर
बेचारे दरख़्त मुंह लटकाए हैं
एक मुद्दत हुई हमको गए हुए
ये सोचकर हम पलट आए हैं-
गुमान था उन्हें बेजान जमीन पर बैठकर
खुला आसमान देखने का
मेरी मोहब्बत को अपना बनाने के लिए
उसने मुनाज़ात शुरू कर दिए
भरम टूट गए मेरे रकीब के हमारी दरमियान
इश्क–ए–मज़ाज़ी देखकर
मोहब्बत के पाक़ीज़ा रिश्ते ने हमारे रिश्ते की
डोर मजबूत कर दिए-
महसूस होगी हमारी मोहब्बत जब हम नहीं होंगे
रंग सारे होंगे जिंदगी में तेरे मगर हम नहीं होंगे
ज़ख्म यूं तो दिल के घरौंदे में है बेपनाह मगर
तेरी वस्ल में ये अश्क कभी भी कम नहीं होंगे
काश यकीन अपनी मोहब्बत का दिला पाता मै
तुझसे बिछड़कर सिर्फ यादें होंगी हम नहीं होंगे
तुझे जिंदगी की तमाम खुशियां हासिल हों
दुआ है जिंदगी के सफर में कभी ग़म नहीं होंगे
हमसे बिछड़कर खुश तो रहेगी तू जिंदगी भर
अगर तुझसे बिछड़े तो दुनिया में हम नहीं होंगे
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