मुन्ना बड़ा हो रहा था,
पर जीजी तो आज भी कईयों से छोटी थी!
मुन्ने को समझ नहीं आता था,
माँ बचपन के बिना कैसे पली-बढ़ी थी?-
ख्वाब में तेरा आना-जाना लगा हुआ है।
हमको तो एक मर्ज़ पुराना लगा हुआ है।
सोच वो लड़की क्यों तेरे पीछे लगी हुई है...
जिसके पीछे सारा ज़माना लगा हुआ है।।
✍️राधा_राठौर♂-
वो जो आँसू पी नहीं पाई होगी लड़की
वो जमीं पे गिरा , तो दरिया बना होगा
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"हां लड़की हूं पर बोझ नहीं ये तुम कब समझोगे "
मार डालते हो मुझे पैदा होते ही तुम
या लड़की के जन्म पर मातम मनाते हो
आखिर गलती क्या है हमारी ये भी ना बताते हो
बस लड़की हो कह कर चुप कराते हो
छोटी सी उम्र से ही घर का काम सिखाते हो
तुम्हे दूसरे घर जाना है तू पराई धन हैं
बार बार ये एहसास दिलाते हो
थोड़ी बहुत बस डिग्री दिला देते हो
फिर दहेज देकर शादी करा देते हो
ये सब ठीक नहीं हैं साहेब
"हां लड़की हूं पर बोझ नहीं ये तुम कब समझोगे "
हमे भी अच्छे से पढ़ा दो ना
हम भी पढ़ लिख कर नाम रौशन करवाएंगे
दहेज़ जैसी प्रथा भी दुनिया से हटाएंगे
अब बहुत हुआ ये भेदभाव हम लड़कियां नहीं सह पाएंगे
देखना उन सब के बावजूद हम लड़कियां परचम लहराएंगे
"हां लड़की हूं पर बोझ नहीं ये तुम कब समझोगे "-
कोई लड़की पास से गुजरे तो
तुम उसका डर नहीं साहस बन जाओ
कोई उसका जिस्म नोचे तो
तुम हवस नहीं उसका लिबास बन जाओ-
खूबसूरती...... वरदान या अभिशाप
ये सोचने की बात है!
खूबसूरती वरदान है या अभिशाप है।।
एक बाप को अपनी बेटी की खूबसूरती को घर में छुपाना पड़ता है।
इस जमाने की बुरी नजर से अपने लाडली बेटी को बचाना पड़ता है।।
अपने घर की बहन बेटियों को जमाने की बुरी नजर से बचा लेते हैं हम!
पर अफसोस दूसरों की बहन बेटियों को खुद की गंदी नजर से नहीं बचा पाते!!
रात में अकेली खूबसूरत लड़की को देखकर सीटी मारते हैं।
बदन को नोचकर किसी दरिंदे की तरह जिंदा जला देते हैं।।
खूबसूरती तो खुदा का दिया हुआ अनुपम वरदान थी,
पर हम लोगों की सोच की वजह से अभिशाप बन चुकी है।।
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हर महीने की है ये कहानी,
हर लड़की की ये कहानी
एक लड़की कि जुबानी,
ऐसा दर्द जो सहना है,
बदले में चुप रहना है,
जो दर्द वो सहती हैं,
फिर भी किसी से ना कहती हैं....
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वो सारी तर्कशीलता,
बुद्धिमत्ता,
आज़ादी और चंचलता ,
जो एक बेबाक लड़की की
खुली जुल्फों में बेफिक्री से घूमती हैं...
चुटकी भर सिंदूर पड़ते ही कस के बाँध दी जातीं है
एक बेबस, लाचार, बेवकूफ़ सी औऱत के जूड़े में...-
कशमकश में है ज़िंदगी,ये कैसा रीत निभाना होगा!
ख़ुद की ज़िंदगी, किसी और को सौंपना होगा!!
होकर माँ बाप से अलग, हस के आँसू पीना होगा!
जल के विरह के आग में, हर तपिश को सहना होगा!!
मन से अलग, निर्जीव आभूषण को बदन पे सजाना होगा!
किसी अंजान के सीने से लगके, सिसकना होगा!!
उठ के हर स्वार्थ से ऊपर, रिश्ता सारा निभाना होगा!
प्रसव का पीड़ा सह के, ममता को ह्रदय से लगाना होगा!!
जहां पली बढ़ी, बचपन बीता, वो दामन छोर के जाना होगा!
कशमकश में है ज़िंदगी, ये कैसा रीत निभाना होगा!!-
जाग जाता है, एक नन्ही-सी आहट से वो गरीब..!
ऐ खुदा! उसके घर में लड़की तो है, पर दरवाजा नहीं।।-