Sumanya Sharma   (©सुमन्या 💕)
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Joined 15 September 2017


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Joined 15 September 2017
3 APR 2020 AT 18:40

अब वैसी बात नहीं होती...

हजारों दफा मिलने पर भी
एक मुकम्मल मुलाकात नहीं होती

जो एक बार छूट जाता है
वो बार बार छूटता रहता है...

एक बीत चुका रिश्ता और दो टूटे लोग
एक साथ बस झूठे ठहाके लगा सकते हैं

उनके बीच अब वो पुरानी सी हंसी दोबारा नहीं आ पाती....

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31 AUG 2018 AT 19:48

नाग हज़ारों लिपट जाते हैं बदन से ,
सर्पों के शहर में पेड़ संदल का,ना होना ही बेहतर. . .

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13 AUG 2018 AT 2:04

........सफर.....

अब मुझे पसंद नही है कहीं सफर पर जाना. . . .

इन तेज भागती गाड़ियों के भीतर बैठ तेज भागते नजारों को देख मेरे मन में एक टीस उठती है. . .
मुझे याद आने लगते हैं वो लोग जो मेरी जिंदगी में अचानक ही आ गये थे फिर लौट जाने के लिये. . .

खै़र वो आये तो अपनी मर्ज़ी से और गये भी अपनी ही मर्ज़ी से...
पर जाते-जाते ले गये अपने साथ मेरे जीवन का एक हिस्सा,
और छोड़ गये मेरे अस्तित्व पर अपने वजूद की एक अमिट छाप. .

जिन्हें चाह कर भी रोक ना पायी मैं . . .

बस बेबस बुत सी देखती रही अपने आँखों से ओझल होते हुए !!

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9 AUG 2018 AT 0:44

जानां ,
हाँ! मैं जानती हूँ
तुम मौजूद नहीं हो आसपास मेरे
पर तुम्हारा न होना ही
तुमसे ज्यादा.. बहुत ज्यादा..तुम्हारा होना है !
मेरे रुखसार पे जो लिखीं थी ना
कुछ नज्में उस रोज , तुमने अपने लबों से,
अभी उन नज्मों को पढ़ा मैंने अपने बन्द आखों से . .
हाँ! जबकि तुम नहीं हो
तुम्हारी उँगलियों के लम्स से मेरे पेशानी पर लिखी
गजलें भी दोहरा लेती हूँ
बार-बार हर्फ-दर-हर्फ उतार लेती हूँ
मैं तुम्हें अपने ख्यालों में हूबहू जैसे तुम हो वैसे ही. . .
पर जाने क्यूँ पलकें बंद रहतीं हैं
मैं करती नहीं हूँ, कसम से !!!
ख़ुद-ब-ख़ुद हो जातीं हैं कमबख्त!
ठीक भी है शायद ..
तुम्हें महसूस करने के लिये
बन्द आँखों से बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता शायद!

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1 AUG 2018 AT 12:04

जरा होश हुआ करता है
जरा से तुम हुआ करते हो. . .

फिर मेरे ख्यालों के नक्शों में सब कुछ
धुंधला सा लगने लगता है
हाँ मैं लगा लेती हूँ अपना चश्मा भी
फिर भी कुछ है जो दिखता कम हैं,महसूस ज्यादा होता है

एक अलसाया सा दर्द, हल्की सी टीस
और गुनगुना सा सुकून, बिखरा रहता है आसपास

फिर बड़ा दिलकश होता धीरे धीरे इस मदहोशी में डूब जाना . . .

"क्या तुमने कभी अपने पैरों पे धूप नाचते देखा है जानां ?"

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30 JUL 2018 AT 17:25

देख कर शर्मिंदा है गिरगिट भी फ़न इंसान का ,
नादान खुद को शाह-ए-शातिर समझता था. . .

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27 JUL 2018 AT 14:11

गुरू ही ब्रह्मा , गुरु ही विष्णु , गुरू में सारे जग समाये,
श्रीराम अधूरे वशिष्ठ बिन , कृष्ण संदीपन बिन बौराये. . .

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8 JUL 2018 AT 10:53

हमें मोहब्बत का कुछ ऐसा फलसफा मिला
कभी हम रहे नाराज़ तो कभी वो खफा मिला

जाने कैसे मिल जाती है बेपनाह मोहब्बत
हमें तो यार ही कम्बख़्त बेवफा मिला

था इश्क़ या की सौदा हम समझ ना पाये
रही हिज्र में कमी मगर वस्ल में नफ़ा मिला

बेइंतहा मोहब्बत की आस लिये बैठे थे जिनसे
वो फरेबी झूठ के नकाब में ही हर दफ़ा मिला

सोहबत को उसकी कुर्बान कर दी दुनिया
हासिल हुई ना खुशियाँ "मन" को जफ़ा मिला

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21 JUN 2018 AT 16:22

वो सारी तर्कशीलता,
बुद्धिमत्ता,
आज़ादी और चंचलता ,
जो एक बेबाक लड़की की
खुली जुल्फों में बेफिक्री से घूमती हैं...

चुटकी भर सिंदूर पड़ते ही कस के बाँध दी जातीं है
एक बेबस, लाचार, बेवकूफ़ सी औऱत के जूड़े में...

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10 JUN 2018 AT 17:15

सुना है मुकम्मल ना होना ही इश्क़ का दस्तूर है
ग़र तड़प जो हो कान्हा सी तो राधा बनना भी मंजूर है

माना की गुलज़ार हैं ये बाजार हुस्न के चर्चों से
मगर कूचा-ए-दिल में तो इश्क़ आज भी मशहूर है

हाँ दर्द तो है बेतहाशा इन इश्क़ की गलियों में
पर फक़त महबूब के दीदार से हर उदासी दूर है

लड़ तो जायें उनका वस्ल पाने को जमाने से
पर अपने बने रकीब उन्हें हमारी करीबी नामंजूर है

हर शब नींद इंतज़ार करती मेरे सिरहाने आकर
इन बेसुध आँखों पे छाया रहता इश्क़ का सुरूर है

हर्फ़ दर हर्फ़ उतारते हैं टूटे ख़्वाबों को नज़्मों में
ज़हन में घूमता इस कदर उनकी यादों का फ़ितूर है

हाँ लाज़मी है होनी मात इस बेइंतहा मोहब्बत की
जुनून-ए-उल्फत ऐसी की "मन" को शिकस्त पे भी गुरूर है

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