ऐ इंसान क्या खोया क्या पाया है
ईमान नहीं गर तुमपे तो सब जाया है
© सुहैल अनवर-
ये सफर था जों जिंदगी तय कर आया था वो
मुसाफिर की उसे एक दिन जाना हैं वापिस किसी
को नहीं पता कि अंत कहां होंगा ....-
क्या खोया क्या पाया
ये पूंछू बारी-बारी में..
हर दिन दो-दो आँसू डांलू
यादों की फुलवारी में...
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Khud ko bhul kar tujhe sochne lagi hu...
Sab kuch kho kar na jane kya pane chali hu...-
Kya khoya kya paaya..
Iss sawal ne sbko hai rulaya...
Iskwaar ne to bheja tha sbko khaali haath..
Par iss hisaab ki dour me peeche reh gya apno ka sath..-
क्या खोया क्या पाया हमने,
इस जीवन की आपा धापी में,
जब सोचा हमने कुछ क्षण रुक कर,
जब खूब कमाया,
तब ढेर सारे रिश्तों को पाया,
जब सब गवाया,
तब पाए हुए रिश्तों ने अपना मुखौटा हटाया,
और एक पल में हमसे अपना हाथ छुड़ाया,
और फिर पैसों और रिश्तों का
आपस का साथ समझ में आया,
तब यह ज्ञात हुआ हमे की,
पैसों को खोकर जो रहा साथ में,
वही है असली कमाई ज़िन्दगी में,
उनको ना खोना कभी तुम
जीवन की आपा धापी में....!
- देवेंद्र मिश्रा-
जो मैंने खोया वह कभी मेरा था ही नहीं !
पर जो उसने खोया वो सिर्फ उसका था !!-
موبائل سا ایک کھلونا جب سے ہاتھ میں آیا
نیند اڑ گئ آنکھوں سے اک شب سو نہیں پایا
مستقبل کی فکر چھوڑ کر مست رہا کرتا تھا
چیٹ چاٹ ہی کر کے میں نے سارا وقت بتایا
ایک لڑکی سے عشق ہو گیا لیکن وہ نکلی لڑکا
تب کہیں جاکر یہ پتا لگا کہ کیا کھویا کیا پایا-