आदि है शिव।
और अनंत भी है शिव ।
रचयता भी शिव ।
रचना भी शिव ।
निराकार है शिव
और आकार भी है शिव ।
सृष्टि का प्रारंभ है शिव ।
सृष्टि का अंत भी है शिव ।
भोर के प्रकाश में है शिव ।
और रात्रि के अंधकार में भी है शिव ।
ध्वनि में है शिव ।
और मौन में भी है शिव ।
कण कण में है शिव ।
जन जन में है शिव ।
मानव के है शिव ।
और दानव के भी है शिव ।
जीवन के पहली सांस में है शिव ।
और आखरी सांस में भी है शिव ।
काल है शिव ।
और महाकाल भी है शिव ।
आदि योगी है शिव ।
और अघोरी भी है शिव ।
पालनहार है शिव ।
और संहार भी है शिव ।
सुख में है शिव ।
और दुख में भी है शिव ।
आशा है शिव ।
और आस्था भी है शिव ।।
ॐ नमः शिवाय 🙏-
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जब वक़्त खराब आता है,
तब अनुभव होता है कि,
इज़्ज़त और प्यार,
उम्र और अच्छाइयों से नही होती,
बल्कि पैसों और संपत्ति से होती है।
- देवेंद्र मिश्रा-
कौन है अपना इस दुनिया में,
यह सोचता रहता हूँ हर वक़्त।
कितने कुछ सवाल है मेरे,
किस से करूँ मैं व्यक्त।
इंसान की वाणी में है उदारता,
पर कार्यों में दिखता स्वार्थ।
सब लगे है गिरने-गिराने में,
किसी को नहीं है फुर्सत।
अपने फायदे के हिसाब से,
उन्हें रहती है लोगों की ज़रूरत।
साथ छोड़ देते है वह भी,
जिनका बह रहा है शरीर में रक्त।
हे ईश्वर क्या है तेरा यह संसार और तेरी यह लीला,
पूछा रहा है नतमस्तक होकर, तेरा यह भक्त। 🙏
- देवेंद्र मिश्रा-
क्या खोया क्या पाया हमने,
इस जीवन की आपा धापी में,
जब सोचा हमने कुछ क्षण रुक कर,
जब खूब कमाया,
तब ढेर सारे रिश्तों को पाया,
जब सब गवाया,
तब पाए हुए रिश्तों ने अपना मुखौटा हटाया,
और एक पल में हमसे अपना हाथ छुड़ाया,
और फिर पैसों और रिश्तों का
आपस का साथ समझ में आया,
तब यह ज्ञात हुआ हमे की,
पैसों को खोकर जो रहा साथ में,
वही है असली कमाई ज़िन्दगी में,
उनको ना खोना कभी तुम
जीवन की आपा धापी में....!
- देवेंद्र मिश्रा-
मृत्यु का दूसरा नाम राख है,
जो व्यक्ति आज है, कल वही राख है।
मृत्यु का दूसरा नाम मिट्टी है,
जो व्यक्ति आज ज़मीन पर है,
कल वही ज़मीन के अंदर की मिट्टी है।
मृत्यु का दूसरा नाम सत्य है,
जीवन एक झूठ का मुखौटा है,
और मौत उस मुखौटे का परम सत्य है।
- देवेंद्र मिश्रा-
हर समस्या का हल है
यह ज़रूरी नही,
पर समस्या को एक चुनौती के तरह लेना है,
और उसपर हमें सोच-विचार से कार्य करना है,
अंत में ना तो
हार होगी और ना ही जीत,
अंत में जो होगी वह होगी
अनुभव और सीख।
- देवेंद्र मिश्रा-
एक दिन अस्तित्व मिट जाना है,
फिर लौट के दोबारा ना घर को आना है,
आंखें तरस जाएंगी उन्हें देखने के लिए,
पर उन्हें सिर्फ अपनी यादों में देख पाना है,
कितना भी प्यार करले हम उनसे,
कितनी भी कोशिश करले हम,
पर उनको ना बचा पाना है,
जिन्हें जाना है उन्हें तो जाना है,
किस काम की यह धन और दौलत,
किस काम की यह अक्कड़ और यह बैर,
तुम्हे भी वैसे ही जाना है,
जैसे मुझ गरीब को जाना है,
वक़्त के साथ उन्हें फिर भूल जाना है,
जाने क्या है यह ज़िन्दगी और यह रिश्ते यह किसने जाना है।
- देवेंद्र मिश्रा-