"यह शहर हमें जितना देता है,
बदले में उससे कहीं ज़्यादा हम से ले लेता है..."
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The words poured out of
my nib aren't mere letters.
They carry plethora of emotions,
craving solitude, seeking
comfort in the verses.
dripping from me like
a saturated sunrise.-
वो मंज़र आज भी नज़रों के आगे ठहर जाता है...
जब तूने मुझे अपनी ज़िन्दगी का एहम हिस्सा बनाया था....
जब अपनी नज़रों से मुझे प्यार करना सिखाया था....
वो पल आज भी याद है मुझे
जब तूने पहली दफा अपने हाथो से मेरे बालों को सहलाया था.....
हम दोनों की नज़दीकियों से जब
चाँद भी पहली दफा शरमाया था......
फिर,,,,
आज ये महोब्बत खामोश क्यू हो गयी...
क्या वक़्त के साथ हमारी महोब्बत की भी मौत हो गयी.......
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कल को अगर मैं मर जाऊँ
तो उसे मेरा हाल ज़रूर बताना
अगर वक्त मिला उसे आने का
मेरा चेहरा ज़रूर दिखाना
बताना उसे कैसे जी रही थी मैं
अपने सवालों को लबों पे सी रही थी मैं
तुझसे तू नहीं बस जवाब चाहती थी
वो साथ बीते पलो का हिसाब
चाहती थी ...
कल को अगर मैं मर जाऊँ
तो उसे मेरा हाल ज़रूर बताना-
I knit emotions.
Beautiful and warm.
But they deceive me.
They surge out of my eyes
and reveal themselves.
My heart keeps bumping with my ribs
because my emotions scare me.
But I want to hold them back
from doing any more casualties.
I need to stop knitting emotions
because they make me feel
and make my heart beat.-
ये कैसा राब्ता है दरमियाँ दोनों कि आंखों के
तेरी आंखों के आंसू भी मेरी आंखों से बहते हैं,
یہ کیسا رابطہ ہے درمیان دونوں کی آنکھوں کے،
تیری آنکھوں کے آنسو بھی میری آنکھوں سے بہتے ہیں
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घमंड करू भी तो किस बात का ...🙃
मिट्टी का शरीर है मेरा ....🙍
एक दिन मिट्टी मै ही मिल जाना है ....🙍🙍
ना कुछ लेके आए थे ना कुछ लेके जायेगे ...😀
कुछ दिन के मेहमान है एक दिन चले जाना है 😊
यहां ना कुछ मेरा है और ना मेरा कोई है ...😕😕
तो फिर किस बात का घमंड... 🤔-
खुद की तन्हाई में
जीवन की गहराई में
खुद को न जान पाई मैं
बाद में पछताई मैं
खुद से खुद की लड़ाई में
जीत न पाई मैं
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