कुछ खाली तो कुछ भरा सा हूं,जितना भी हूं उतना खरा सा हूं।
तकलीफों में अक्सर याद किया करते हैं लोग,
कभी दरिया में बहता पानी तो कभी बहती हवाओं सा हूं।
-rajdhar dubey-
थी परेशानियां पर उनसे हम अनजान ही रहे
रात आई फ़िर उनके ख्वाबों के तराने निकले
मेरी मजबूरियों से खु़दा भी बेपरवाह रहे
आँख हमारी रोई नहीं कि हमारे ही सारे गुनाह निकले
दरिया में बह के भी आँसू बेरंग ही रहे
पलकों से उतरकर भी मोती हमारे ही अंग निकले
वो हमसफ़र होके भी किनारे ही रहे
मोहब्बत के समंदर में सफर करने हम अकेले ही निकले
वो बाहों में सो के भी बेज़ार ही रहे
हम आँखों में डूबे तो बेवफाई से तार तार निकले
झुलसती गर्मी में वो अपने आशियाने ही रहे
चाहत की तपिश में अपनी काया झुलसाने हम ही निकले-
_मुस्कान_
तू कोशिश तो कर ए-गालिब
जिंदगी जरूर संभल जायेगी
दर्द-ए-दरिया मे गोता लगाकर देख
कीमत-ए-मुस्कान भी समझ आएगी-
हम तो प्रेम झरने के दीवाने थे
ये इश्क़ दरिया में किसने ला पटका?-
बनना था मुझे तेरे खुश होने का ज़रिया,बन के रह गयी हूँ मैं अपने ही अश्कों का दरिया।
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Achha hota,,
In dariya ki trah rasta badal liya hota....
Kinaare ki talash me,,
Leharo ki trah thokare to nhi milati...
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सारा दरिया हम पर ही है, ज़ख्म भी सब नासाज़ बहुत है,
पर हर ज़ख्म भुलाने को बस, तेरी एक आवाज़ बहुत है।।-
मेरी गहराइयों को न मापो, क्योंकि में कोई दरिया नहीं सूरज की किरण हूँ।
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जाने क्यूँ डूब जाना चाहता हूँ हर बार इनमे;
एक दरिया है, या पूरा समन्दर है तेरी आँखे-