Sameer Saurabh Pokhriyal   (Sameer)
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Joined 4 April 2018


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23 AUG AT 21:37

कैसे कब था हुआ राब्ता भूल गया
मुझसे क्या था तेरा वास्ता भूल गया
खुश हूँ तुझको मिली तेरी मंज़िल सनम
मैं तो मंज़िल का जाँ रास्ता भूल गया

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11 AUG AT 11:20

प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा
तो वैराग्य बन गया...

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मसला ये नहीं है कि वो नहीं लौटेगा
मुद्दा ये है कि मुझे इंतज़ार क्यों है

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पहचान किसी की करना आसान नहीं है
इंसान के लिबास में इंसान नहीं है

हो गया जरूरी पूछना अब नाम सभी का
दर पर आया हर बंदा मेहमान नहीं है

रोड़ भी हो सकती है या खेल का मैदान
जहाँ लाश बिछती केवल शमशान नहीं है

गवाही ये कहती है बेईमान है ईमान
हैवानियत शर्मिंदा पर हैवान नहीं है

ये कैसी बर्बरता है और कैसा है इंसाफ़
कभी-कभी लगता है भगवान नहीं है

पहचान किसी की करना आसान नहीं है
इंसान के लिबास में इंसान नहीं है

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24 MAR AT 15:15

कौन है यहाँ?
मुझे किसने आवाज़ दी?
बता दो उसे... मैं अब इस पते पर नहीं रहता!
बस कभी कभार जब सब अधूरा और झूठा लगने लगता है तो चला आता हूँ यहाँ....
ना.. ऐसा भी नहीं है कि यहाँ आकर पूर्णता प्राप्त हो जाती है, पूर्णता तो अब वहीं मिलेगी... ख़ैर यहाँ आने का मकसद होता है कि खुद को थोड़ी तसल्ली मिल जाती है कि चलो मैं अकेला नहीं हूँ.. कुछ और भी हैं ..
"भटकते हुए देवता"..
अच्छा चलता हूँ, फिर मुलाक़ात होगी... भटकते हुए..!!

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25 FEB AT 16:33

ना आसान जिंदगी, ना ही ताज चाहता हूँ
मैं ज़िन्दगी को अपने, अब पास चाहता हूँ
ना शांत सी नदी, ना ही बाढ़ चाहता हूँ
ठहराव चाहता हूँ, पहाड़ चाहता हूँ
कहानियाँ बहुत हुयीं, मैं किस्सा चाहता हूँ
लौटकर मैं जाऊँ तो मेरा हिस्सा चाहता हूँ
हाँ जानता हूँ मुझको, हासिल नहीं हुआ तू
एक आस चाहता हूँ, एक काश चाहता हूँ
बेवजह सा बजता एक साज चाहता हूँ
मैं आज ही में अपना, अब आज चाहता हूँ

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15 JAN AT 13:05

जाने कैसी होगी वो जगह जहाँ शाम नहीं होती..
शायद अब वहीं रहता है, जो हर शाम हाल पूछता था

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29 DEC 2024 AT 0:14

मुझे बस पढ़ना हो तो मिरा लिखा पढ़ना
समझना वो, जो मैं लिख नहीं पाया

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18 OCT 2024 AT 14:34

अब क्या पूछते हो कि कितना आहत हुआ
मौन प्रमाण है कि सीमाएं लांघी जा चुकीं हैं

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24 AUG 2024 AT 22:54

मुझको आवारा कहते हो! कुछ तो शरम करो
घर से बाहर जाने वाली औलादों पर नज़र रखो

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