Sameer Saurabh Pokhriyal   (Sameer)
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Joined 4 April 2018


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Joined 4 April 2018

पहचान किसी की करना आसान नहीं है
इंसान के लिबास में इंसान नहीं है

हो गया जरूरी पूछना अब नाम सभी का
दर पर आया हर बंदा मेहमान नहीं है

रोड़ भी हो सकती है या खेल का मैदान
जहाँ लाश बिछती केवल शमशान नहीं है

गवाही ये कहती है बेईमान है ईमान
हैवानियत शर्मिंदा पर हैवान नहीं है

ये कैसी बर्बरता है और कैसा है इंसाफ़
कभी-कभी लगता है भगवान नहीं है

पहचान किसी की करना आसान नहीं है
इंसान के लिबास में इंसान नहीं है

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27 MAR AT 22:46

अगला जनम
बस झूठा दिलासा है...
सुनो! हम बिछड़ गए हैं...
चिरकाल के लिए....

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24 MAR AT 15:15

कौन है यहाँ?
मुझे किसने आवाज़ दी?
बता दो उसे... मैं अब इस पते पर नहीं रहता!
बस कभी कभार जब सब अधूरा और झूठा लगने लगता है तो चला आता हूँ यहाँ....
ना.. ऐसा भी नहीं है कि यहाँ आकर पूर्णता प्राप्त हो जाती है, पूर्णता तो अब वहीं मिलेगी... ख़ैर यहाँ आने का मकसद होता है कि खुद को थोड़ी तसल्ली मिल जाती है कि चलो मैं अकेला नहीं हूँ.. कुछ और भी हैं ..
"भटकते हुए देवता"..
अच्छा चलता हूँ, फिर मुलाक़ात होगी... भटकते हुए..!!

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25 FEB AT 16:33

ना आसान जिंदगी, ना ही ताज चाहता हूँ
मैं ज़िन्दगी को अपने, अब पास चाहता हूँ
ना शांत सी नदी, ना ही बाढ़ चाहता हूँ
ठहराव चाहता हूँ, पहाड़ चाहता हूँ
कहानियाँ बहुत हुयीं, मैं किस्सा चाहता हूँ
लौटकर मैं जाऊँ तो मेरा हिस्सा चाहता हूँ
हाँ जानता हूँ मुझको, हासिल नहीं हुआ तू
एक आस चाहता हूँ, एक काश चाहता हूँ
बेवजह सा बजता एक साज चाहता हूँ
मैं आज ही में अपना, अब आज चाहता हूँ

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15 JAN AT 13:05

जाने कैसी होगी वो जगह जहाँ शाम नहीं होती..
शायद अब वहीं रहता है, जो हर शाम हाल पूछता था

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29 DEC 2024 AT 0:14

मुझे बस पढ़ना हो तो मिरा लिखा पढ़ना
समझना वो, जो मैं लिख नहीं पाया

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18 OCT 2024 AT 14:34

अब क्या पूछते हो कि कितना आहत हुआ
मौन प्रमाण है कि सीमाएं लांघी जा चुकीं हैं

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24 AUG 2024 AT 22:54

मुझको आवारा कहते हो! कुछ तो शरम करो
घर से बाहर जाने वाली औलादों पर नज़र रखो

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3 AUG 2024 AT 0:50

सुबह के 11:00 बजे हैं, सोमवार का दिन है और मैं ऑफिस में keyboard पर पत्थर तोड़ रहा हूँ खट खट खट खट खट खट..
तभी पास में पड़े फ़ोन की घंटी सुनाई दी
मैंने बिना screen देखे फ़ोन को हाथ में लिया और तुरंत....
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26 JUL 2024 AT 1:35

कई मरहमों के बाद ज़ख्म भर तो गया
निशाँ ताउम्र के सही.. बंदा घर तो गया

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