खूब वाकिफ हैं हम भी इन मुहब्बत की रिवायतों से
कभी हम भी किसी को नज़रें बचा कर निहारा करते थे.-
मुहब्बत के दुश्मनों तुम तलवारों की धार ... read more
ये जो हल्का हल्का मुस्करा रही हो
क्या मुझको करीब बुला रही हो
ये जो झटक कर जुल्फें लहरा रही हो
क्यूं मेरी धड़कनें बढ़ा रही हो
खुद ही देख कर नजरें चुरा रही हो
क्या मुझको तुम सता रही हो
ये पाजेब जो छनका रही हो
क्यूं मुझको तुम पागल बना रही हो
खुली आँखों से सपने देख रहा हूं
अब तुम दिन में भी याद आ रही हो.-
तुम जो ये कहते हो "नहीं है कोई परिभाषा प्रेम की"
फिर उसे देख कर मेरी आँखों का नम हो जाना प्रेम नहीं है क्या ?-
गया था एक मुद्दत बाद आज फिर गली में उसकी
सहम सा गया है दिल अब उसका खाली दरीचा देख कर.-
दिल में छुपा रखा शायद उसने कोई राज गहरा था
गले लगा कर रोई थी बहुत वो छोड़ जाने से पहले.-
जाग उठी फिर सब हसरतें जवानी सा मंजर हो गया
बहता था जो आँखों से सैलाब सूख कर बंजर हो गया
देखा है जब से तुम्हें हिचकोले खा रही हैं खबाहिशें
टूटा सा था जो दिल मेरा फिर एक बार सिकंदर हो गया
मेरी आँखों में दिखा वो महज धुंधला सा चेहरा है मेरे अतीत का
सच मानो उसको दिल से निकाले हुए तो एक जमाना हो गया
जो हो इजाजत तो भर लूं मेरी मुहब्बत अब तुम्हें बाहों में
यूं छुप-छुप कर देखते हुए तो अब एक अरसा हो गया...-
वो पहाड़, वो पंछी, वो दरख्त,
वो नदियों की गीली रेत गवां बैठा
शहर की और जो भागा
वो गांव के लहलहाते हुए खेत गवां बैठा
गवां दी वो बेपरवाईयां, वो अठखेलियां
वो लड़कपन की सब नादानियाँ
उन दिनों जेब खाली थी मगर मैं अमीर था
मैं वो खाली जेब गवां बैठा.-
कर ले कैद आँखों में या गले से लगा ले मुझको
मैं बुझता हुआ सा चिराग कल अमावस हो जाऊंगा.-
तुम जो साथ थीं तो रंग थे, बहारें थीं, ये मेले थे
अब तुम नहीं तो नींदें भी नहीं, सकूं नहीं, कुछ भी तो नहीं.-