ऐसा है परिवेश यहाँ अब, सत्य श्रवण पर अकड़ जाते है,
राम की मर्यादा पूछो तो, राम भक्त ही भड़क जाते है,
व्याकुल हर सीत्कार की जिनको, गूंज लगे बस एक कोलाहल,
उनको गाजो बाजों में, भगवान सुनाई देते है,
रस्ते पर का एक भिखारी, उसमें राम नहीं दिखते जिन्हे,
उनको मंदिर के पत्थर में, श्रीराम दिखाई देते है,
उसने मूरत को पत्थर बोला,
वो है शायद राम विरोधी, या फिर शायद धर्म विरोधी,
या फिर मन को धर्म अधारा किया किसी ने कर्म हटाकर,
उस मन में बसे आकार का है, साकार विरोधी,
उसने मूरत को पत्थर बोला,
शायद राम यही चाहेंगे, आखिर वो मर्यादा पुरुषोत्तम,
मर्यादा से परहेज नहीं, न पूजा से है,
पर उससे है जो है केवल एक दिखावा,
या फिर मन का एक छलावा, तो,
इतना सब कुछ बोल गया वो,
अब क्या होगा, आग लगेगी जहाँ फुकेगा,
हुआ है ये अपमान राम का, लोग जलेंगे घर भी जलेगा,
पर इस अग्नि की लौ से शायद, राम जलेंगे या शायद न,
पर कहते है वो परमेश्वर, अधिकार उन्हीं को कण कण का,
इस राजनीति की रामायण में, जितने भी इंसान जलेंगे,
या जितने घर बार जलेंगे, धर्म जलेगा मर्म जलेंगे,
क्या उस कण में राम न होंगे, या शायद हाँ,
इतनी छुद्र सी बात कही तो, निष्प्रयोज्य झगड़ जाते है,
राम की मर्यादा पूछो तो, रामभक्त ही भड़क जाते है....।।
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