लंबी लंबी गाड़ियों में बैठ आराम ढूंढती है ज़िन्दगी,
पर पापा के स्कूटर की सीट सा सिंहासन कहाँ मिलता है!
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घड़ी की सुईयों का
शाम के पाँच बताना
ऊधर स्कूटर के हॉर्न से
पिताजी के वापस आने का
पता लग जाना
एक दौर ये भी था
जब एक हॉर्न से ही
हमारे महफूज़ होने का
एहसास हो जाता था।-
लड़कियाँ सिर्फ स्कूटर का ही नहीं
प्रेम का भी इंडिकेटर नहीं देती-
पूरी दुनिया की सैर करवा लाते थे बिठा कर ...
मेरे पापा का स्कूटर किसी हवाई जहाज़ से कम न था।-
कभी आलू से सोना
कभी स्कूटर से बस बनाते हैं
क्या सच में साइंटिस्ट हैं ये लोग
या यूंही जादूगरी दिखाते हैं-
याद आता है अब भी पापा का वो लाल स्कूटर..
गली गली घूमा फिरते थे हम बैठकर उस पर..
अब वो स्कूटर तो नहीं है, कार आ गई है घर पर..
पर वो सुकून वो खुशी नहीं मिलती कार में बैठकर ।।
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बूंदे जो सड़क पर बहकने लगी
औरत से औरत निकलने लगी
बेमौसम की बारिश तोहफा लगे
उमस ज़िन्दगी की पिघलने लगी
स्कूटर से तेज मन दौड़ने लगा
हवाएं भी भींग महकने लगी
ऐसी शाम भी मिले बमुश्किल
आरज़ू हवन सी दहकने लगी
मनमीत की पुकार बन हवा हुंकार
बूंदे तन को छू कर दहलने लगी
भींगे मौसम में भींग गया मन
बन बावरी चाह फुदकने लगी।
धीरेन्द्र सिंह-
बड़ी चंचल थी वो जिंदगी भी, यार सच सच बताना
Tuition में पास बैठी लड़की के पाँव जानबूझ कर छूने में मजा आता था ना
आज महंगी से महंगी गाड़ी हैं तेरे पास, पर सच सच बताना
जब वो स्कूटर के पीछे कमर पकड़ कर चलती थी, तो दिल मचल मचल जाता था ना
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आज टूटने से परिवार को बचा नहीं पाती हैं बड़ी गाड़ियाँ
कभी एक स्कूटर ही पूरे परिवार को जोड़ कर रखता था-