Arun Chaubey   (अरुण चौबे ‘प्रखर’)
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Joined 6 June 2017


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22 HOURS AGO

महकी शामों वाला मौसम आया है,
फिर से आमों वाला मौसम आया है।
ख़ुशबू फैली नई-नई हैं बाग़ों में,
एक आम के क़िस्म कई हैं बाग़ों में,
सब्ज़ा, हापुस, चौसा और दशहरी भी -
इन सब नामों वाला मौसम आया है;
फिर से आमों वाला मौसम आया है।
बेशक आम फलों का राजा कहलाए,
लेकिन आसानी से सबको मिल जाए,
सौ रुपए में मिल जाता है तीन किलो -
सस्ते दामों वाला मौसम आया है;
फिर से आमों वाला मौसम आया है।


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15 JUN AT 16:32

वो घर की खिड़कियाँ, दरवाज़े, रौशनदान होता है,
जो खुशियाँ घर में लाये रोज़ वो मेहमान होता है;
मकाँ को घर बनाती माँ उसी के साथ ही मिलकर -
है माँ घर तो पिता उसमें रखा सामान होता है।

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24 JUL 2024 AT 21:14

बहुत कुछ कहना हो तो मैं किसी से कुछ नहीं कहता,
अकेले रहना हो तो मैं किसी से कुछ नहीं कहता;
तपोवन में कहीं बहती किसी निर्मल नदी जैसा -
मुझे भी बहना हो तो मैं किसी से कुछ नहीं कहता।

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15 JUL 2024 AT 0:00

सुना है दूर सरहद से कोई पैग़ाम आया है,
किसी के दिल का था टुकड़ा वतन के काम आया है।



किसी के हाथ की मेंहदी को धो डाला निगाहों ने,
किसी बेजान को जकड़ा किसी अपने की बाहों ने,
जो लिपटा है कफ़न से लड़ के वो संग्राम आया है;
किसी के दिल का था टुकड़ा वतन के काम आया है।

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16 JUN 2024 AT 14:47

पिता हर गूढ़ भाषा का सरल अनुवाद होता है,
पिता जीवन की त्रुटियों का मधुर प्रतिवाद होता है;
परिस्थितियाँ विषम कितनी भी हों संतान से अपने-
पिता हो मौन तो भी कर रहा संवाद होता है।

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14 FEB 2024 AT 14:41

हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!
हम सभी अज्ञानियों को ज्ञान दे दो!

वाटिका का पथ जो भूले वह भ्रमर हैं,
हम पतन की ओर प्रतिक्षण अग्रसर हैं;
पथ दिखाकर नव हमें उत्थान दे दो!
हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!

नित सुरों से हो रहा है युद्ध लगता,
वेदना से कण्ठ भी अवरुद्ध लगता;
गा सकें हम ऐसा कोई गान दे दो!
हमको वीणावादिनी वरदान दे दो!

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13 FEB 2024 AT 23:47

कूल से सरिता के मिलती नाव है,
चित्त के सान्निध्य में ठहराव है;
यह किसी से कुछ नहीं है माँगता,
प्रेम तो केवल समर्पण भाव है।

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20 JAN 2024 AT 23:34

मिथ्या जगत है सत्य का दर्पण हैं राम जी,
पाषाण को भी प्रेम का अर्पण हैं राम जी;
मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं पुरुषों में हैं उत्तम -
कर्तव्य के प्रति पूर्ण समर्पण हैं राम जी।

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19 NOV 2023 AT 19:14

हो कोई भी मुझसे हो पाती नहीं,
चापलूसी मुझसे हो पाती नहीं;
है बदल पाना मुझे मुश्किल बहुत-
जी-हुज़ूरी मुझसे हो पाती नहीं।

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10 NOV 2023 AT 0:38

लगाकर हाथ मिट्टी को कई सामान गढ़ता है,
हुनर के मामले में नित नए प्रतिमान गढ़ता है;
उजाला बाँटता सबको अँधेरा भूलकर अपना-
छुपाकर दर्द वो अपने सदा मुस्कान गढ़ता है।

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