आंसू भी खिल जाते कोमल सुगंधित
न सूख पाएंगे जब तक हैं स्पंदित
आंसू विरह में टपके हैं आह लपेटे
चाह में खिल जाते बीच पुष्प मंचित।
धीरेन्द्र सिंह-
कभी वक्त से पूछा है
उसका भी कुछ छूटा है
रहे भागता बदलता निरंतर
इसने ही लगता लूटा है।
धीरेन्द्र सिंह-
श्वासों में भर विश्वास
एहसासों का बाहुपाश
निर्भय आतुर है समर्पण
हृदय-हृदय मधु बरसात।
धीरेन्द्र सिंह-
साझा कर लेते हैं
ताजा कर लेते हैं
स्मृतियां बीते दिन की
आजा हँस लेते हैं।
धीरेन्द्र सिंह-
खुशियां खुद मिल जाती हैं
दर्मियां बंट भी जाती हैं
याद आते रहे इस तरह वह
नर्मियाँ डंटकर गाती हैं।
धीरेन्द्र सिंह-
कुछ पल जो दिल के करीब थे
तब पल-पल वह भी गरीब थे
लुटाते थे भावनाएं अंजलि भरकर
एकदूसरे से मांगते थे सलीब थे।
धीरेन्द्र सिंह-
अस्तित्व है सम्मिश्रण नर और न्यारी
दोनों रचें दुनिया भर अपनी-अपने क्यारी
शिव-पार्वती, कृष्ण-राधा या सीताराम
विलक्षणता युग्म में है चले दुनिया सारी।
धीरेन्द्र सिंह-
इश्क़ में इतर लोग घुस रहें
इत्र इश्क का तितर-बितर कर रहें
इश्क़ छुपकर ही करना सही
इश्क खतरा है कई रोज मर रहें।
धीरेन्द्र सिंह-