Dhirendra Singh  
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Joined 21 August 2018


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15 HOURS AGO



पुकारा नहीं था



संभल खिल गया।

धीरेन्द्र सिंह

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15 HOURS AGO

दिल में इश्क़ भरा है
तो बांटो इसे छलकाओ
भर-भरकर क्या हासिल
प्रेम अगन तो जलाओ।

धीरेन्द्र सिंह

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15 HOURS AGO

एक दौर ऐसा भी था
एक कौर तरसा भी था
मानवता के रूप कई है
एक तौर डरता भी था।

धीरेन्द्र सिंह

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16 HOURS AGO

पुनर्जन्म
आत्मा
नहीं
खात्मा।

धीरेन्द्र सिंह

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16 HOURS AGO

परछाई का पीछा करते
भरपाई किस कर्म का करते
व्यक्तित्वहीन होती परछाई
तनहाई किस धर्म का रचते।

धीरेन्द्र सिंह

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16 HOURS AGO

इश्क़ का गुलाब
चाह का शवाब
हसरतों की खुश्बू
रोम-रोम आफताब।

धीरेन्द्र सिंह

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YESTERDAY AT 4:53

मेरी पुरानी कविता
अनुभूतियों की भव्यता
पढ़नेवाले झूम उठे सब
रचना की यही सभ्यता।

धीरेन्द्र सिंह

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YESTERDAY AT 4:50

दामन खाली है मेरा
पर चारों ओर है घेरा
एक कसक दरियाफ्त करे
कभी नसीब भी दे सवेरा।

धीरेन्द्र सिंह

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YESTERDAY AT 4:45

जब शाम हुई
तब धाम छुई
एक अभिलाषा वही
दीप जलती रुई।

धीरेन्द्र सिंह

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YESTERDAY AT 4:39

दिल की धड़कन भी
खुशियां भी तड़पन भी
एहसास सांस विश्वास पास
ऋतुयों की बनठन भी।

धीरेन्द्र सिंह

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