Dhirendra Singh  
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Joined 21 August 2018


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23 SEP AT 7:33

शुभ नवरात्रि
आध्यात्म यात्री
मार्ग में तेजस्विता
कितने हो ग्राही।

धीरेन्द्र सिंह

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23 SEP AT 7:30

वक़्त अच्छा है यही
छोड़ो ना अब बतकही
स्पंदनों की जुगलबंदी
और हम हो खोए कहीं।

धीरेन्द्र सिंह

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23 SEP AT 7:26

माँ के आगमन पर
विश्व उन्नति की प्रक्रिया
माँ सब है स्वीकारती
धन्यवाद कहो या शुक्रिया।

धीरेन्द्र सिंह

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23 SEP AT 7:23

छोड़ना पड़ता है एक दिन
जो अपना है निज सपना है
पुनर्जन्म होता है फिर से
कर्म आधारित यूं जगना है।

धीरेन्द्र सिंह

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23 SEP AT 7:19

शांत रह कर कर्म करो
अपना भी निज धर्म करो
जीवन यही नहीं है अंतिम
गहन ज्ञान सत्कर्म करो।

धीरेन्द्र सिंह

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21 SEP AT 23:31

तुमसे बिछड़ना जैसे
मन का बिगड़ना वैसे
तार एक रह गया छूट
मन का तड़पना कैसे।

धीरेन्द्र सिंह

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21 SEP AT 23:26

जब जगह स्वतंत्र मिले
पुलक चहुं तंत्र खिले
आस सांस सुधि लिया
मनभावन तब मंत्र मिले।

धीरेन्द्र सिंह

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21 SEP AT 23:19

गुमसुम रहकर
ताके है रहबर
संदेसा नित गए
उनकी ना खबर।

धीरेन्द्र सिंह

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21 SEP AT 23:17

एक अधूरी दास्तां
चाहत को आंकता
गज़ब का पैबंद है
तृषित मन को हांकता।

धीरेन्द्र सिंह

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21 SEP AT 23:11

बस गए दहन में, मन हुआ सुगंधित
अनायास यूं अचानक हृदय स्पंदित
नेह अर्पण बना समर्पण भी राज है
भावनाएं बहक चली राह हुए दम्भित

धीरेन्द्र सिंह

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