क्यों ढूंढते हो तुम मेरे "विशेषण" ,
मेरा " संज्ञा " होना क्या मुझे "पूर्ण "नहीं बनाता ?
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एक अकेली नाव भंवर में
पथ ढूंढे जीवन का प्रहरी
घड़ी पहर का सन्नाटा है
घड़ी पहर की सांझ दुपहरी
सुख की भोर कभी तो होगी
संशय से मुख मोड़े रहना
तिनके सा विश्वास अटल है
तिल तिल कर बस जोड़े रहना।
प्रीति
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सोचना क्या विचारों को लय करने में
अंदर के संगीत को आज्ञा दो निर्णय करने में
डरता भी रहेगा और अपराध भी करता रहेगा
अभ्यास करेगा तभी होगा जीवन को अभय करने में
समय के पन्नों पर दुबारा वही मत लिख
रक्त को बहने दो स्मृतियों को हृदय करने में
छूने का अवसर मिल जाए तो अवसर मत गंवाना
पुण्य आत्माओं और शक्तियों की जय करने में
जानकर भी अनजान बनते यह किरदार
अक्सर देर हो जाती पास की दूरियों को तय करने में
सबने मना किया मगर किसी की नहीं सुनी
रिश्तों की बलि चढ़ाता रहा संशय करने में
'विवेक सुखीजा'-
विश्वासाची तिथे एकही खोली नव्हती
तसा तो कोसळणारच होता.
संशयाचे वारे निमित्त मात्र ठरले...
ते दोघे ज्यास संसार समजत होते,
तो केवळ पत्त्यांचा बंगला होता.-
"संशयात्मा विनश्यति"
अर्थात् संशय से युक्त व्यक्ति अवश्य नष्ट हो जाता है।
कृष्ण ने कहा है-तीन अधर्मी हैं
१)अज्ञानी
२)अश्रद्धालु
३)संशयात्मा
किन्तु संशयात्मा अधिक पापी माना गया है।-
प्रेम और मैं?
यह संभव है कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं। और यह भी संभव है कि तुम्हारे सवाल पूछने पर कि क्या मैं तुमसे प्रेम करती हूं, मैं हंसकर "प्रेम और मैं" कहकर तुम्हारे सवाल को टाल दूंगी। मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति भावनाओं के विशाल सागर हिलोरें लेते हैं। परंतु सत्य तो यह है कि मुझे संशय है कि क्या मेरे मन में जो भावनाएं हैं वो प्रेम की परिभाषा के अनुरूप हैं भी या नहीं। मुझे भय है कि अगर तुम मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लोगे तो तुम्हें मेरी वास्तविकता का पता चल जाएगा। तुम्हें पता चल जाएगा कि मैं तुम्हारे या किसी के भी प्रेम के लायक नहीं हूं। और तब तुम भी औरों की तरह मेरे हृदय के एक भाग को लेकर चले जाओगे और मुझ में एक और शून्य छोड़ जाओगे। अपने इस डर को सच होते देखने से बेहतर मुझे "प्रेम और मैं" कहकर सवाल टालना उचित लगता है। हालांकि, मैं सदैव जीवित रखूंगी अपने प्रेम को अपनी कविताओं और कहानियों में। और यह तुम्हारे लिए नहीं, परन्तु स्वयं के लिए।
— आशना-
मैंने पुकारा था तुम्हारा नाम वादी में एक दिन.... तुम तक मेरी आवाज़ पहुँच जाये तो इत्तिला करना.... डर है कहीं गुम न हो जाए कनहरी की पहाड़ियों या सिल्वार के घने जंगलों में मेरी आवाज़ यूँ ही ...
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