Vivek Sukheja   (संगमरमर से ख़्वाब)
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कृपया करके फॉलो और अनफॉलो का खेल मत करिए वरना ब्लॉक कर दियो जाओगे। 🙏
Joined 30 April 2017


कृपया करके फॉलो और अनफॉलो का खेल मत करिए वरना ब्लॉक कर दियो जाओगे। 🙏
Joined 30 April 2017
30 APR AT 15:03

ज़िन्दगी की तेज़ दौड़ में
सब कुछ रह गया हो जैसे पीछे

बाकी सब हैं जमीं से ऊपर
और सिर्फ़ मैं रह गया नीचे

मेरा ही अक्स रहता नहीं साथ मेरे
और सबने बना लिए हैं घर ऊंचे

हाथ में जो भी आए फिसलता रहता है
मैं सोचता रहा खाली मुट्ठी को भींचे

हर शख्स यहां दामन छुड़ाना चाहता है
प्यार के धागे रहें हो जैसे कच्चे

बुनियाद तो कब की गिर चुकी थी
मैं बस पकड़ा रहा सिर्फ़ खाली ढांचे

'विवेक सुखीजा'

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28 APR AT 19:31

'विवेक सुखीजा'

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24 APR AT 20:11

यादों के अलाव जल रहे हैं....






बाकी का नीचे ~

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21 APR AT 12:31

यही सोचकर दिल कदम नहीं उठाता
कि मेरा वक्त तो अब जा चुका है

ज़माने की रफ्तार देखकर मन धीरे धीरे
अपनी ही शक्तियों को भुला चुका है

शब्दों को चाहिए होता देने के लिए गुलाब और
शख्सियत पहले ही गहराई से कांटे ला चुका है

लिखा मैंने भी वही जो उसने लिखा है
फर्क इतना सा की वो मंजिल पा चुका है

आज दुनिया उसको पहचानती है मुझे नहीं
कोई तो है जो अपने ही शब्द खा चुका है

मन सुनाता रहा रोज़ दूसरों को सत्य की कहानी
क्योंकि अपना ज़मीर तो वो कब का सुला चुका है

'विवेक सुखीजा'

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18 APR AT 14:08

बात जिस पर होनी चाहिए
मैंने उसको दबा कर रखा है

होश रहते होश न खो जाएं
ज़िन्दगी को मैंने समझा कर रखा है

ज़माना साथ देगा ज़रूर तेरा
आहिस्ता से दिल को यह बता कर रखा है

हर सितारे को देखकर सोचता हूं
आसमां में मैने भी अपना नाम लिखा कर रखा है

हर मुलाकात में यही महसूस होता है
किसी की तो नज़र ने अपना बना कर रखा है

जानता हूं मेरी किसी को ज़रूरत नहीं
मैंने फिर भी परवाह का हाथ आगे बढ़ा कर रहा है

'विवेक सुखीजा'

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16 APR AT 17:10

ज़िन्दगी खुद एक दुआ है ए मन डर किस बात का
कहानी पहुंच जाएगी मंजिल तक किस्सा है मुलाकात का

बनूंगा शून्य या फिर कोई संख्या सोच को स्थिर मत रख
फिर उभरेगा कोई न कोई अवसर जीवन की शुरवात का

सफ़र है तो आजमाइश भी होगी ज़रूर तेरे हौसलों की
रूह से मिलेगा या जिस्म से तय कर मामला हालात का

यादों के कांटों से ज्यादा छेड़छाड़ मत कर बेवजह तू
पिएगा मय तो फिर बनेगा ज़रूर मौसम बरसात का

जब मालूम है कि कीमत इंसान की होती है चीजों की नहीं
फिर क्यों पूछता रहता सबसे बता तू कौन सी जात का

माना सीख लिया दूरियों में रहना मगर भूल न जाना
ज़िन्दगी में कभी आता था मज़ा तुझको साथ का

'विवेक सुखीजा'

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16 APR AT 17:04



होता रहता है ज़िन्दगी में इस तरह भी
किससे भागते फिरते रहते हो

तुम्हारी ही तो कहानी किसी और की नहीं
क्यों बारिश लिए साथ फिरते हो

तुमने ही शुरुवात की और तुम ही अंत करोगे
टुकड़ों में क्यों फिरते रहते हो

मन को जाने दो मौसम के साथ
ज़रा से उड़ने के लिए हवा में फिरते हो

जिस्म है मिट्टी का यहीं बिखर जाएगा
ना जाने किस सोच में फिरते हो

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13 APR AT 18:43

सोचना क्या विचारों को लय करने में
अंदर के संगीत को आज्ञा दो निर्णय करने में

डरता भी रहेगा और अपराध भी करता रहेगा
अभ्यास करेगा तभी होगा जीवन को अभय करने में

समय के पन्नों पर दुबारा वही मत लिख
रक्त को बहने दो स्मृतियों को हृदय करने में

छूने का अवसर मिल जाए तो अवसर मत गंवाना
पुण्य आत्माओं और शक्तियों की जय करने में

जानकर भी अनजान बनते यह किरदार
अक्सर देर हो जाती पास की दूरियों को तय करने में

सबने मना किया मगर किसी की नहीं सुनी
रिश्तों की बलि चढ़ाता रहा संशय करने में

'विवेक सुखीजा'

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9 APR AT 13:19

कम नहीं है मेरे लिए जो भी है और ज़रा सा है
एक नज़र से खाली तो दूसरी नज़र से दामन भरा सा है

रोशनी में हंसता और अपना ज़ोर दिखाता
अंधेरों में अपना ही साया देखकर डरा सा है

चमकीले कपड़ों से करता तू इंसान की पहचान मगर
मुश्किलों में चलता अक्सर खोटा सिक्का ही जो खरा सा है

भरकर अश्क हथेली में उसका वो रुप बदल देता
कभी बन जाता वो पर्वत तो कभी धरा सा है

देने के लिए छाया वो धूप और हवा से मिलता रहा मगर
कुछ बूंदें पाने की प्रतीक्षा में वृक्ष आज भी हरा सा है

'विवेक सुखीजा'

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5 APR AT 12:25

'विवेक सुखीजा'

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