उस मोड़ से शुरू करें क्या
जहां पर कहानी छोड़ कर आए थे
मुस्कुराए थे जहां आखिरी बार
और रवानी छोड़ कर आए थे
यादों की किताब में हम
बस सफ़े पलटते गए
अहसास था वहीं
बस कहानी छोड़ कर आए थे
सूरज तो कब का ढल गया था
मगर शाम थी अब भी रौशन
यादों के दरवाज़े पर उसकी दी हुई
हँसी की निशानी छोड़ कर आए थे
अब भी सुलगते हैं दिल में
ढेरों अरमान राख के नीचे
कुछ चिंगारियां हम
हवा की निगहबानी छोड़ कर आए थे
चाहत की बारिश में होता नहीं
अक्सर रूह से रूह का मिलन
लफ्ज़ों से लफ्ज़ों की हो मुलाकात
इसलिए उम्र और जवानी छोड़ कर आए थे
चलो फिर से लौटें
उन्हीं शामों की छाँव में
जहां थी उम्मीद थी और
जहां जिंदगानी छोड़ कर आए थे
-विवेक सुखीजा-
आप सबके प्यार और आशीर्वाद से एक किताब (तरंगमयी) प्रकाशित की है। उम्मीद है सबको पसंद आएगी। 😊💐🙏
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फल इतना महंगा और ज़हर इतना सस्ता क्यों
मरम्मत करके भी दीवारों की हालत खस्ता क्यों
ज़िन्दगी का वज़न है सिर्फ प्यार, साथ और विश्वास
दिल ने रखा फिर खयालों का इतना भारी बस्ता क्यों
जब मालूम है कि मीठा सेहत के लिए अच्छा नहीं
फिर 'विवेक' दुनिया की मीठी बातों में फँसता क्यों
पता है न यह शरीर और यह रूह सब उधार की है
फिर इतना सारा लेकर कर्ज़े में तू फिर धंसता क्यों
किसी का साथ ही काफ़ी है वक्त बदलने के लिए
खयालों में रखता फिर तू कांटों वाला गुलदस्ता क्यों
मैं तो बांटता दुआएं और मुस्कुराहट लफ्ज़ों से
एक दीवाने की बात पर ज़माना फिर हँसता क्यों
'विवेक सुखीजा'
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सफ़र कोई भी हो तो कहानी बन जाती है
वक्त के साए में कब ज़िन्दगी पुरानी बन जाती है
आँखों में छुपी हैं अब बेचैनियाँ कितनी
कभी हँसी तो कभी पानी बन जाती है
दिल के किस्से अक्सर अनकहे रह जाते हैं
एक आह निकलती है और निशानी बन जाती है
ख़्वाब जो देखे थे तूफ़ान के साथ बिखर गए
तन्हाई जब गहराती है तो वीरानी बन जाती है
प्रेम और परवाह गले लगाते जब भी मुझको
रिश्तों की मुलाक़ात फिर से दीवानी बन जाती है
ज़रा सी गलती क्या की हमनें कि दुनिया सयानी बन जाती है
घर से बाहर निकले भी नहीं और बात आसमानी बन जाती है
'विवेक सुखीजा'-
सांस लेते हैं मगर सिर्फ़ तुम्हारी बाहों से
खुद को ज़िंदा रखा हुआ तुम्हारी निगाहों से
मैं गुलाब न सही तुम्हारी ज़िन्दगी का
मगर हर कांटा उठाएंगे तुम्हारी राहों से
इल्ज़ाम बहुत लगें हैं मेरी मुस्कुराहट के
ज़रा बच कर रहना तुम अफवाहों से
हर बार इसी उम्मीद से मुहब्बत करते हैं
फिर कोई फरिश्ता बचाएगा गुनाहों से
पहले कभी सुन लिया करता ज़माने की
मगर अब खुद को जला कर रखा है सलाहों से
पीछे मुड़कर बेशक देखा नहीं आपने मगर
छूकर जाती है आपकी खुशबू अब भी चौराहों से
'विवेक सुखीजा'
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लफ्ज़ों का सफ़र कहां से कहां तक पहुंचा
जहां तक भी पहुंचा वहां तक नहीं था सोचा
बह गए लफ्ज़ कभी भीगों जज़्बातों में
तो कभी स्वाभिमान का रह गया कद नीचा
उठा ना पाया जब खयालों का भार तो
यादों की खुशबू से मन को खरोंचा
तारीफ खरीदने वाले बहुत थे यहां बाज़ार में
मगर खुद के लगाए गुलाब से ज़मीर को नहीं बेचा
बांटता रहा मुस्कुराहटें सभी दिलों को
और कभी खुद के खिलाफ किया मोर्चा
शिकायतों का ढेर लिखता रहा ज़िन्दगी को
बचे हुए लम्हों का बूंदों से करता रहा खर्चा
शब्दों से यहां बहुत कुछ बदल जाता है
बस अहम को करना पड़ता है ज़रा सा नीचा
पहचान का सफ़र ले आया वापिस जमीं पर और सिखाया
आसमां में उड़ने के लिए दिल को होना चाहिए बच्चा
'विवेक सुखीजा'-
जब रोक नहीं सकता किसी को आने से
तो कैसे रोक लूँ मैं किसी को जाने से
गले लगाकर एहसासों का रंग एक करना पड़ता है
दोस्ती यूँ ही नहीं निभाई जाती सिर्फ़ हाथ मिलाने से
राज़ कितना भी गहरा हो परिवार से बढ़कर नहीं
दिल हमेशा हल्का हो जाता बात बताने से
रास्तों में पड़े पत्थरों को तुझको हटाना ही होगा
मुश्किलें कम नहीं होंगी आँख बंद कर जाने से
दुआएं माँगा कर सबके लिए रात को सोते समय
क्या पता तेरा ही कोई ख़्वाब सच हो जाए सिरहाने से
माना जिम्मेदारियों बहुत हैं ज़िन्दगी में तेरे 'विवेक'
शायद बोझ कुछ कम हो जाए तेरे मुस्कुराने से
'विवेक सुखीजा'-