ज़िन्दगी की तेज़ दौड़ में सब कुछ रह गया हो जैसे पीछेबाकी सब हैं जमीं से ऊपरऔर सिर्फ़ मैं रह गया नीचेमेरा ही अक्स रहता नहीं साथ मेरेऔर सबने बना लिए हैं घर ऊंचेहाथ में जो भी आए फिसलता रहता है मैं सोचता रहा खाली मुट्ठी को भींचेहर शख्स यहां दामन छुड़ाना चाहता हैप्यार के धागे रहें हो जैसे कच्चेबुनियाद तो कब की गिर चुकी थीमैं बस पकड़ा रहा सिर्फ़ खाली ढांचे'विवेक सुखीजा' -
ज़िन्दगी की तेज़ दौड़ में सब कुछ रह गया हो जैसे पीछेबाकी सब हैं जमीं से ऊपरऔर सिर्फ़ मैं रह गया नीचेमेरा ही अक्स रहता नहीं साथ मेरेऔर सबने बना लिए हैं घर ऊंचेहाथ में जो भी आए फिसलता रहता है मैं सोचता रहा खाली मुट्ठी को भींचेहर शख्स यहां दामन छुड़ाना चाहता हैप्यार के धागे रहें हो जैसे कच्चेबुनियाद तो कब की गिर चुकी थीमैं बस पकड़ा रहा सिर्फ़ खाली ढांचे'विवेक सुखीजा'
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'विवेक सुखीजा' -
'विवेक सुखीजा'
यादों के अलाव जल रहे हैं....बाकी का नीचे ~ -
यादों के अलाव जल रहे हैं....बाकी का नीचे ~
यही सोचकर दिल कदम नहीं उठाता कि मेरा वक्त तो अब जा चुका है ज़माने की रफ्तार देखकर मन धीरे धीरे अपनी ही शक्तियों को भुला चुका हैशब्दों को चाहिए होता देने के लिए गुलाब औरशख्सियत पहले ही गहराई से कांटे ला चुका हैलिखा मैंने भी वही जो उसने लिखा है फर्क इतना सा की वो मंजिल पा चुका हैआज दुनिया उसको पहचानती है मुझे नहींकोई तो है जो अपने ही शब्द खा चुका हैमन सुनाता रहा रोज़ दूसरों को सत्य की कहानी क्योंकि अपना ज़मीर तो वो कब का सुला चुका है'विवेक सुखीजा' -
यही सोचकर दिल कदम नहीं उठाता कि मेरा वक्त तो अब जा चुका है ज़माने की रफ्तार देखकर मन धीरे धीरे अपनी ही शक्तियों को भुला चुका हैशब्दों को चाहिए होता देने के लिए गुलाब औरशख्सियत पहले ही गहराई से कांटे ला चुका हैलिखा मैंने भी वही जो उसने लिखा है फर्क इतना सा की वो मंजिल पा चुका हैआज दुनिया उसको पहचानती है मुझे नहींकोई तो है जो अपने ही शब्द खा चुका हैमन सुनाता रहा रोज़ दूसरों को सत्य की कहानी क्योंकि अपना ज़मीर तो वो कब का सुला चुका है'विवेक सुखीजा'
बात जिस पर होनी चाहिए मैंने उसको दबा कर रखा हैहोश रहते होश न खो जाएं ज़िन्दगी को मैंने समझा कर रखा हैज़माना साथ देगा ज़रूर तेराआहिस्ता से दिल को यह बता कर रखा हैहर सितारे को देखकर सोचता हूंआसमां में मैने भी अपना नाम लिखा कर रखा हैहर मुलाकात में यही महसूस होता हैकिसी की तो नज़र ने अपना बना कर रखा हैजानता हूं मेरी किसी को ज़रूरत नहीं मैंने फिर भी परवाह का हाथ आगे बढ़ा कर रहा है'विवेक सुखीजा' -
बात जिस पर होनी चाहिए मैंने उसको दबा कर रखा हैहोश रहते होश न खो जाएं ज़िन्दगी को मैंने समझा कर रखा हैज़माना साथ देगा ज़रूर तेराआहिस्ता से दिल को यह बता कर रखा हैहर सितारे को देखकर सोचता हूंआसमां में मैने भी अपना नाम लिखा कर रखा हैहर मुलाकात में यही महसूस होता हैकिसी की तो नज़र ने अपना बना कर रखा हैजानता हूं मेरी किसी को ज़रूरत नहीं मैंने फिर भी परवाह का हाथ आगे बढ़ा कर रहा है'विवेक सुखीजा'
ज़िन्दगी खुद एक दुआ है ए मन डर किस बात का कहानी पहुंच जाएगी मंजिल तक किस्सा है मुलाकात काबनूंगा शून्य या फिर कोई संख्या सोच को स्थिर मत रखफिर उभरेगा कोई न कोई अवसर जीवन की शुरवात कासफ़र है तो आजमाइश भी होगी ज़रूर तेरे हौसलों की रूह से मिलेगा या जिस्म से तय कर मामला हालात कायादों के कांटों से ज्यादा छेड़छाड़ मत कर बेवजह तूपिएगा मय तो फिर बनेगा ज़रूर मौसम बरसात काजब मालूम है कि कीमत इंसान की होती है चीजों की नहीं फिर क्यों पूछता रहता सबसे बता तू कौन सी जात का माना सीख लिया दूरियों में रहना मगर भूल न जानाज़िन्दगी में कभी आता था मज़ा तुझको साथ का 'विवेक सुखीजा' -
ज़िन्दगी खुद एक दुआ है ए मन डर किस बात का कहानी पहुंच जाएगी मंजिल तक किस्सा है मुलाकात काबनूंगा शून्य या फिर कोई संख्या सोच को स्थिर मत रखफिर उभरेगा कोई न कोई अवसर जीवन की शुरवात कासफ़र है तो आजमाइश भी होगी ज़रूर तेरे हौसलों की रूह से मिलेगा या जिस्म से तय कर मामला हालात कायादों के कांटों से ज्यादा छेड़छाड़ मत कर बेवजह तूपिएगा मय तो फिर बनेगा ज़रूर मौसम बरसात काजब मालूम है कि कीमत इंसान की होती है चीजों की नहीं फिर क्यों पूछता रहता सबसे बता तू कौन सी जात का माना सीख लिया दूरियों में रहना मगर भूल न जानाज़िन्दगी में कभी आता था मज़ा तुझको साथ का 'विवेक सुखीजा'
होता रहता है ज़िन्दगी में इस तरह भीकिससे भागते फिरते रहते होतुम्हारी ही तो कहानी किसी और की नहींक्यों बारिश लिए साथ फिरते होतुमने ही शुरुवात की और तुम ही अंत करोगेटुकड़ों में क्यों फिरते रहते हो मन को जाने दो मौसम के साथज़रा से उड़ने के लिए हवा में फिरते होजिस्म है मिट्टी का यहीं बिखर जाएगा ना जाने किस सोच में फिरते हो -
होता रहता है ज़िन्दगी में इस तरह भीकिससे भागते फिरते रहते होतुम्हारी ही तो कहानी किसी और की नहींक्यों बारिश लिए साथ फिरते होतुमने ही शुरुवात की और तुम ही अंत करोगेटुकड़ों में क्यों फिरते रहते हो मन को जाने दो मौसम के साथज़रा से उड़ने के लिए हवा में फिरते होजिस्म है मिट्टी का यहीं बिखर जाएगा ना जाने किस सोच में फिरते हो
सोचना क्या विचारों को लय करने मेंअंदर के संगीत को आज्ञा दो निर्णय करने मेंडरता भी रहेगा और अपराध भी करता रहेगाअभ्यास करेगा तभी होगा जीवन को अभय करने मेंसमय के पन्नों पर दुबारा वही मत लिखरक्त को बहने दो स्मृतियों को हृदय करने मेंछूने का अवसर मिल जाए तो अवसर मत गंवानापुण्य आत्माओं और शक्तियों की जय करने मेंजानकर भी अनजान बनते यह किरदारअक्सर देर हो जाती पास की दूरियों को तय करने मेंसबने मना किया मगर किसी की नहीं सुनीरिश्तों की बलि चढ़ाता रहा संशय करने में'विवेक सुखीजा' -
सोचना क्या विचारों को लय करने मेंअंदर के संगीत को आज्ञा दो निर्णय करने मेंडरता भी रहेगा और अपराध भी करता रहेगाअभ्यास करेगा तभी होगा जीवन को अभय करने मेंसमय के पन्नों पर दुबारा वही मत लिखरक्त को बहने दो स्मृतियों को हृदय करने मेंछूने का अवसर मिल जाए तो अवसर मत गंवानापुण्य आत्माओं और शक्तियों की जय करने मेंजानकर भी अनजान बनते यह किरदारअक्सर देर हो जाती पास की दूरियों को तय करने मेंसबने मना किया मगर किसी की नहीं सुनीरिश्तों की बलि चढ़ाता रहा संशय करने में'विवेक सुखीजा'
कम नहीं है मेरे लिए जो भी है और ज़रा सा हैएक नज़र से खाली तो दूसरी नज़र से दामन भरा सा हैरोशनी में हंसता और अपना ज़ोर दिखाता अंधेरों में अपना ही साया देखकर डरा सा हैचमकीले कपड़ों से करता तू इंसान की पहचान मगरमुश्किलों में चलता अक्सर खोटा सिक्का ही जो खरा सा हैभरकर अश्क हथेली में उसका वो रुप बदल देता कभी बन जाता वो पर्वत तो कभी धरा सा हैदेने के लिए छाया वो धूप और हवा से मिलता रहा मगरकुछ बूंदें पाने की प्रतीक्षा में वृक्ष आज भी हरा सा है'विवेक सुखीजा' -
कम नहीं है मेरे लिए जो भी है और ज़रा सा हैएक नज़र से खाली तो दूसरी नज़र से दामन भरा सा हैरोशनी में हंसता और अपना ज़ोर दिखाता अंधेरों में अपना ही साया देखकर डरा सा हैचमकीले कपड़ों से करता तू इंसान की पहचान मगरमुश्किलों में चलता अक्सर खोटा सिक्का ही जो खरा सा हैभरकर अश्क हथेली में उसका वो रुप बदल देता कभी बन जाता वो पर्वत तो कभी धरा सा हैदेने के लिए छाया वो धूप और हवा से मिलता रहा मगरकुछ बूंदें पाने की प्रतीक्षा में वृक्ष आज भी हरा सा है'विवेक सुखीजा'