आत्मा मेरी कठघरे में खड़ी है आज,
आरोप संवेदनाओं की हत्याओं का है।-
दूसरों के लिए मन में जो छवि बनाते हो,
शब्दों के जो बाण दूसरों पर चलाते हो,
करते हो जैसे दूसरों के साथ व्यवहार,
वैसा ही सब खुद के बारे में भी सोच कर देखना एक बार।
खुद को भी रखना दूसरों की स्थिति में, तो तुम्हें बात का दूसरा पहलू समझ आएगा,
किसी का दिल दुखाने से पहले,
सोचना:
क्या यही सब तुम्हारे साथ भी हो
तो क्या तुम्हें भाएगा?
समृद्धि का यही है कहना,
साईनाथ हम सब में संवेदना
का भाग जगाए रखना।-
जब तुम मिलोगे,अंतर की व्याकुल जलती अग्नि को,
स्वर्णिम शीतलता से नहलाते, हृदय गूढ़ कपाट खोल,
अश्रु की अविरल निर्झरिणी में स्वतः हम बहने लगेंगे।
जब तुम मिलोगे, नभ की मृदुल प्रसन्नता में उन्मुक्त,
धरती की निसर्ग-सौरभ में, पवन के करुण स्पर्श में,
जीवन का समस्त अभिप्राय मूक हर्षनाद बन गूँजेगा।
जब तुम मिलोगे,संवेदना के अम्लान उपवन की सैर में,
जहाँ प्रत्येक कुसुम अधीर, प्रेम कथा कहने को तत्पर,
नर्म पर्ण ओस-बिंदु संग मधुर सन्देश अनवरत रचेगा।
जब तुम मिलोगे,सृष्टि के गहन अर्थ स्वयं उजागर होंगे,
अंतर्मन में रम्य ज्योति जगेगी,पूर्णता में लय को पाएँगे,
तुममें, बस तुममें, एकरूप होकर समाहित हो जाएँगे।
जब तुम मिलोगे, कुसुमगंध बन,वायु के चंचल झोंकों में,
स्वप्निल धरा के एकांत को चुपके से उत्कट चूमते हुए,
सिहरन भरे सौंदर्य में सृष्टि को संपूर्ण रागमय कर दोगे।
जब तुम मिलोगे, नवनील नभ के म्लान अंचल में बिखरे,
क्षणभंगुर तारा बन, मधुर क्षितिज पर झिलमिलाते हुए,
अनंत के सौंदर्य में मन को प्रफुल्ल चिरमुदित कर दोगे।
संपूर्ण रचना अनुशीर्षक पढ़े 👇-
""मौन""
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निस्तब्धता..........
गहन संवेदनाओं के
जाल में उलझा मन
अभिव्यक्ति से मुंह मोड़
एक लंबी चुप्पी को
होंठों पर ओढ़ लेता है,
और अपनी ही कशमकश में
विचारों के समंदर में
डूबता उतरता है ,
तब ये मौन....
कुछ भला सा लगता है।
संभावनाओं की खोज में
मन के अथाह जल में
यहां वहां भटकता है,
ढूंढता है वो सांत्वना भरे
शब्दों की सीपी जो
उसके सुलगते हृदय को
शांत कर उम्मीद के मोती से
आंखों में जीने की एक
नई चमक भर दे , पर
असफलता हाथ लगने पर
मन टीस से भरता है ,
तब ये निर्विकार मौन ...
कुछ भला सा लगता है।
....... निशि..🍁🍁
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इस से असंवेदनशील और क्या हो सकता है..
वो गरीब अपनी मजबूरियों में ऐसा दबा है की
न वो महंगी टिकट ले सका और न इन अनपढ़
अफसरों द्वारा की गई अपमान को पलट कर
जवाब दे सका।
शर्म आती है ऐसी शिक्षा व्यवस्था पर जो
संवेदना को महसूस करना न सीखा पायी।
🥺🙏🙏— % &-
"आंसू" प्रमाण है हमारी "वेदना" और
"संवेदना" दोनों के "पानी" हो जाने का...!!!!
(:--स्तुति)-
अपनी मानसिक संवेदनाओं को लिखना,
आपको मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।
लिखते रहें, स्वस्थ रहें।
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