कृष्णाय वासुदेवाय,
हरे परमात्मने।
प्राणतः कलेशनाशय,
गोविन्दाय नमो नमः।-
मुझसे मिलने आये हो, या मेरे अल्फाज़ से ? हाँ ! अलफ़ाज़ घने है, और आप जल्दी में |
जो मै ह... read more
The judiciary has emerged as perhaps the most profoundly compromised institution in the nation. For far too long, it has deflected scrutiny by positioning itself behind the veil of political and administrative corruption. Yet the public is now increasingly aware that the scale and impact of judicial corruption may, in fact, surpass that of both political leadership and bureaucratic administration. Unlike the judiciary, political figures and public servants are, at least theoretically, accountable to the electorate and subject to parliamentary oversight. This raises a critical question: in a democracy, where mechanisms of accountability exist for the executive and legislative branches, who holds the judiciary accountable ?
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आन छूटे द्राण छूटे
आज ये मुझसे मेरी पहचान छूटे।
लिपट गई है मेरी आह से,
अफ़सोस तीखे है मेरी गुमान में।-
चलो सभी खुद की तारीफ में...
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जिस सादगी ने मुझे कही का नही रखा,
वो आज कह रही है कुछ तो गुनाह कर।
~ आयुष्मान खुराना— % &जिंदगी ने बहुत समझदार बना रखा है,
मुझे आज बस जिद्द करने का मन है ।
~ आयुष्मान खुराना— % &दिखाने लगता है वो ख्वाब आसमान के,
जमीं से जब भी मैं मानुस होने लगता हूं।
~आयुष्मान खुराना— % &कुछ नही मिलता
दुनिया में मेहनत के बगैर।
मेरा अपना साया
मुझे धूप में आने के बाद मिला।
~आयुष्मान खुराना— % &ये परिंदो की मासूमियत है वर्ना,
दूसरों के घर में अब आता जाता कौन है।
~आयुष्मान खुराना— % &कितना आसान था बचपन में सुलाना हमें,
नींद आ जाती थी परियों के कहानी सुन कर..
~आयुष्मान खुराना— % &बात बात पर मुस्कुराता है ये आदमी,
किसी छोटे शहर से आया हुआ लगता है।
~आयुष्मान खुराना— % &हँसना चाहूं भी तो हँसने नही देता मुझको,
ऐसा लगता है कोई मुझमें खफा है मुझसे।
~आयुष्मान खुराना— % &रात भर चलती रहती है उंगलियां मोबाइल पर,
किताब सीने पर रख कर सोये हुए एक जमाना हो गया।
~आयुष्मान खुराना— % &-
These days I'm gonna horribly busy.
So I'm truely sorry that I'm goona unavailable for upcoming months.
I will be very thankful for being stay tuned.
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मेरा वो हर ख्वाब झूठा रह गया,
इश्क में हर दाग उसका झूठा रह गया।
मिलते थे जो हर रोज नए अरमां लिए,
लम्हे गुजरे तो वो वक्त भी झूठा रह गया।
स्वर उसके मीठे घोल लगे थे,
मौन श्रुति बस पीता था।
साथ उसका सौगात लगे थे,
शांत सहज बस वो मेरे कांधे सोता था।
नेकी नेकी मेरी उसकी,
साथ किसकी, उसकी न अब मेरी।
वो कही दूर किसी दूजे के ख्वाहिश में,
मैं कही और किसी खुदी की ख्वाहिश में।
सच कहते थे लोग पुराने,
जो भी - जब भी ख्वाहिश देखा,
यहां हर ख्वाहिश झूठा रह गया।-
सोचता हूं फिर किसी का हो जाऊं..
फिर एहसास पुराना, किसी के होने नही देता।-
मैक्स बेबर ने कहा है...
ज्ञान जितना बढ़ा है,
जीवन का रस उतना ही कम हो गया है।-