तेरा होना ही सब कुछ है मेरे लिए साहिब
सुना है महफिल में तुम्हारी जिक्र भी नहीं मेरा-
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ना जाने कैसे
समेट लेती है अपने बच्चों के लिए
मां
दुनिया मैले आंचल में
वो मां
जिसने दुनिया में देखा ही क्या है
बस एक चौका
और कुछ भी नहीं-
पानी भिगो भी नहीं पाता पत्थर
अगर शांत हो बहे
बह जाते हैं पहाड़, बस्ती, जंगल
जो आवेग मे बहे
जो उद्देश्य हो बड़ा राह दुर्गम हो
ये बात ध्यान रहे-
प्रेम को शायद कभी प्रेम था ही नहीं प्रेम से
वो तो अनंत काल से मोहित है प्रतीक्षा पर ही-
कभी मंजिल से पहले ही हो जाती तलाश खत्म
मन ठहर भी जाता है, मरुभूमि में कभी जंगल में-
समय के क्रूर प्रहार से
समाज के उलाहना के प्रभाव से
मातृत्व से आए बदलाव से
सब तिरोहित न हो जाए
मैं संजो लेना चाहती हूं
वो कोमल भाव
लिख देना चाहती हूं
उन्मुक्त गगन ने विचरने के
आहत उत्कंठाएं
जिसका पुनर्जीवित होना
असंभव है लेकिन विस्मृत होना नहीं
जीवाश्म की तरह सुरक्षित मर्म
मन के पूर्णतया पाषाण
हो जाने के तनिक पहले-
पढ़ते हो मेरे अश'आर और वाह वाह निकली है
जो जिगर चाक किया है तो ये आह निकली है-
बहुत पढ़ लोगे तो समझोगे
विश्व में इतना कुछ
लिखा जा चुका है
जिसे पढ़ लेना भी संभव नहीं
शब्दों की ये समेकित यात्रा
तुम्हे ले जाएगी
अथाह सागर के भीतर की
नीरव तिमिर से
प्रकाश पुंज की ओर
जहां तुम खड़े रहोगे
नि:शब्द-