ये मेरे इश्क की शराफत हैं जो मेरे होंठों पर नज़र अाती हैं,
जो शराफत ना होती,
तुम्हारें होंठों पर नज़र आती ||-
लिख दिए जिस दिन...
तेरे हिस्से,
तेरी बेवफ़ाई के किस्से...
उस दिन यक़ीनन,
तेरी शराफ़त के जनाज़े उठेंगे...-
हम अपनी शराफ़त में जरा झुक क्या गए ,
आपने तो हमें गिरा हुआ समझ लिया !!
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हक मैने ही दिया था तुम्हे सवाल पूछने का,
पर तुम तो वकालत पर उतर आए!
नादानीयां समझ के माफ कर रहें थे तुम्हें,
लेकिन तुम तो मेरे शराफत पर उतर आए!-
यूँ तो,
चर्चे तमाम हैं लोगों में मेरी बदमिज़ाजी के,
पर मियाँ महफ़िलें शरीफ़ों से रौशन होती भी कहाँ हैं?-
ईश्क मुझसे वो अपना कुछ इस करीने से छिपाते रहे,
नज़्म बना के ताउम्र वो मुझे ही लिखते रहे..
पूछ लेते जो कभी हम के ये नज़्म कैसी है...
जिक्र किसी और का करके कहानी मेरी ही सुनाते रहे...-
अपनी ज़ात पर कभी गुमान मत करना
किसी के सर को कभी पायदान मत करना।
गिराए जो तुझे मयार से शराफ़त के
कभी इतना बुलन्द भी मकान मत करना।
तू छोड़ दे क़ुरान, छोड़ दे नमाज़ों को
बस अपनी रूह को तू बेईमान मत करना।
जो दिल से छीन ले मख़्लूख़ की मुहब्बत को
पाठ ऐसे , हिफ़ज़ ऐसे क़ुरान मत करना।
पसीने - ख़ून से सींचा है चमन को तेरे
तू वालदैन के दिल को वीरान मत करना।
तुझे इंसान ही हक़ीर नज़र आने लगें
ऊँची इतनी कभी अपनी उड़ान मत करना।-
शराफ़त की अहमियत ना रहीं साहिब,
"मक्कारी" मन में नहीं खून में बसने लगी हैं-
उभर गई शराफत के दर्जे मे उभारों को निहारती नजरे,
पंचायत ने फिर से सरके हुए घूंघट पर जुर्माना लगाया है!-