अपनापन, प्यार, मोहब्बत अपना सब आज तक मैंने जिसपे लुटाया। किसी गैर का बनाया उसके दिल में महल देख, मानो आंधी में बरसों का मेरा बनाया घर बिखर गया। सोचा अब से सिर्फ खुद पर प्यार लुटाऊ, जैसे देखा दर्पण मैंने, अपने दिल का खंडहर देख मैं डर गया। कहता किसी से क्या, मैं बेघर तेरे दिल का, चलते-चलते दर-बदर न जाने कब तेरा शहर आके गुजर गया।