कठिन डगर चली
साधक विकट ढली
कच्ची उम्र बड़ी हुई
तपी वो कुंदन सी
सरगम आज खोई
सुरों की दुनिया रोई
मधुर कोकिलाकंठी
गुंजित वंदन सी ।
लता एक सदियों में ,
गूंज रही वादियों में ,
टूटा सांसों का स्पंदन
वेदना क्रंदन सी ।
हृदय सुमन अर्पण
अश्रुजल से तर्पण
भावना में भरे मधु
सुरभि चंदन सी ।।
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चित्र,संगीत और कविता
रंग, स्पर्श और भाव
जीवन की सार्थकता
मौन का उत्सव
सुकून की धुन
है वो स्वर और गुंजित देवी
जो संज्ञा रूपी विशेषण हैं खुद में
आहट भी झंकृत करती-
जम़ी वो धन्य हुई
जन्मस्थान रहा इंदौर
स्वरागिनी लता के छुअन से
अनछुआ था तब का दौर
तेरह बरस की आयु थी बस
ज़िम्मेवारियों से हुई थी बेबस
लाचारी में अभिनय भी किया
मगर फीका नहीं था स्वर का रस
चलना था वक्त के थपेड़ो संग
बड़े महंगे थे खाने के कौर
स्वरागिनी लता के छुअन से
तब अनछुआ रहा था दौर
मिला एक दिन यूँ अचानक
सपने में देखा था जो 'महल'
"आएगा आनेवाला" गाकर
खिला दिया मन में कमल
बदल गया नज़रिया दुनिया का
बदलने लगे सब अपने तौर
सुर की सरस्वती ने गाए
बदल दिया था अब दौर
-अव्याकृता
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पं.भीमसेन जोशी जी ने कहा था...अवतार समाप्ति के बाद पृथ्वीलोक पर भगवान अपनी बाँसुरी भूल गए....और वह है लता मंगेशकर💐👏🏻
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जाना था हमसे दूर, बहाने बना लिये
अब तुमने कितनी दूर, ठिकाने बना लिये
जाना था ...
रुख़सत के वक़्त तुमने जो आँसू हमें दिये
उन आँसुओं से हमने, फ़साने बना लिये
अब तुमने कितनी दूर, ठिकाने बना लिये
जाना था ...-