Rakhi. Vishwakarma   (अव्याकृता)
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Joined 9 October 2019


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16 MAY AT 0:04

अगर स्त्रियां बुद्ध हो जातीं
तो बुद्धि का विकास होता
और समाप्त हो जाता
बुद्ध का अस्तित्व

तब वो चार दीवारी में
यशोधरा की तरह
एक और बुद्ध नहीं पालती
वो होतीं बोधिसत्व

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26 MAR AT 0:53

सबके चेहरे जाने क्यों तुम से मिलने लगे हैं
हर ठोकर से पहले अब हम संभलने लगे हैं
रूक गई थी ज़िन्दगी तेरी बातों में उलझकर
क्या दग़ा खा कर ठीक से हम चलने लगे हैं

✨अव्याकृता ✨



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13 MAR AT 23:16

अच्छा है रूह
तुम बेरंग हो
कोई रंग तुम्हें
बदल ना सका

तुम सा कोई
मुझको थामें
इतनी दूर साथ
चल ही ना सका

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14 FEB AT 14:27

कहते हैं प्यार में सौदा नहीं किया जाता
तो इसलिए मैं प्यार करती रही..करती रही...
ये वो नेकी थी जो दरिया में गिरकर
समंदर में नमक भरती रही ।।

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7 DEC 2024 AT 13:53

सभ्यताएं साक्षी हैं
औरतों ने सहेजना सीखा
मुस्कुराहट हो, दर्द हो या धन-दौलत

लेकिन मर्द ने भी सब सहेजा
नहीं सहेज सका तो
औरत की हंसी,मन और
औरत की भावुकता को
पुरूष की कठोरता
और असंवेदनशीलता ने
निगल ली औरत की
सौम्यता और मधुरता
और वो हो गई
कटु...
और कटु हो गयी
सत्य की तरह ही
सभ्यताएं ...


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27 NOV 2024 AT 1:44

हथौड़े की चोट हर पत्थर नहीं सह पाता
दर्द भी ज़ुबान से नहीं कह पाता
ज़रूरी तो नहीं कि वो ख़ुदा ही बने
जहां में हमेशा तो ख़ुदा भी नहीं रह पाता

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25 NOV 2024 AT 13:58

तुम प्रेम में शिव बनना
जो पार्वती की विरह में भी
केवल उनके रहे ।
मुझे राम की कामना नहीं है,
जिन्होंने छोड़ दिया सीता को
प्रजा कर्तव्य में ..
न कृष्ण की
जो राधा के हो न पाए
और राधेय कहलाए ।

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24 NOV 2024 AT 17:34

सकल सृष्टि, सजग सरोवर जागे इस सुअवसर में
काली निशा को दूर करने आ गया सूरज समर में
निज नीड़ से नीलकंठ भी ताक रहा भानु लाल
काली कोयल की कूक से जग हो गया निहाल
चंद्रमा की चमक चांदनी छुप गई नीले अंबर में
काली निशा को दूर करने आ गया सूरज समर में

मदिर-मदिर मधु भरकर मधुकर चला मधुवन में
प्रसून-पराग लिए प्रफुल्लित उपवन में
पीहू-पीहू पपीहा पुकार रहा व्याकुल अपने पिय को
पी भी तट-तट तलाश रही खोल दृग और हिय को
नव उर्जा का संचार हुआ है सृष्टि के चराचर में
काली निशा को दूर करने आ गया सूरज समर में

- अव्याकृता

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23 NOV 2024 AT 22:11

ढेरों शिकायतें हैं खुद से
अब हाथ मलता हू्ॅं
बता दूं? खैर छोड़ो !
मोम हूॅं थोड़ा और जलता हूॅं

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23 NOV 2024 AT 20:29


टूटते हैं जज़्बे भी सितारों की तरह
फिर टूटकर पूछते हैं मुझसे
क्यों टूटा मैं गुनहगारों की तरह ....

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