Madhumayi   (©मधुमयी)
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Joined 21 February 2019


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Joined 21 February 2019
31 AUG AT 12:33

"ये भी एक तल्ख़ सच है कि
नहीं होते सभी औरतों के हिस्से में
साहिर से शायर... इमरोज़ से प्रेमी
और....सज़्ज़ाद से दोस्त.....

शायद इसीलिए मर जाती है
अधिकतर औरतों की कविता
और चाँद-सूरज को दामन में समेटकर भी
नहीं बन पाती है हर औरत अमृता!"

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7 JUL AT 8:49

तुम्हारा जाना स्वीकार्य नहीं
ऐसे कौन जाता है भला....🥺

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2 JUL AT 21:09

"तुम प्रेमी थे....
पर तुम वैरी रहे प्रेम के
क्योंकि तुम्हें निभाना तो आया ही नहीं
तुम्हारी असुरक्षा...
तुम्हारे खोने के भय ने
तुम्हें हर उस चीज़ ,
हर उस लम्हे..और
हर उस इंसान से दूर कर दिया
जो सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे रहे
जो आज भी सिर्फ़ तुम्हारे हैं
इतने ज़्यादा... कि...
तुम्हारे बाद वे कहीं और के रहे ही नहीं.."

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21 JUN AT 21:27

"कितने निर्जन जंगल बीहड़
लिए फिरूँ मैं मन के भीतर,
मौन भरा कोलाहल लेकर
जाने कब से भटक रही हूं ।

मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।

दुःख की गठरी मन से भेंटे
उर जी का जंजाल समेटे ,
करती हूँ आश्चर्य स्वयं पर
खुद ही खुद को खटक रही हूँ ।

मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।

बिखरा आंचल उलझे कुंतल
आहत जीवन हुआ मरुस्थल,
मृत्य पुकारे प्रतिपल फिर भी
खुद ही खुद को रोक रही हूँ ।

मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।"

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20 JUN AT 17:22

क्यों नहीं टूटते प्रेम करने के ...और..
प्रेम में छले जाने पर टूटकर बिखरने के
परम्परागत मानक
प्रेम गणित विषय के समीकरणों सा नहीं है
कि प्रत्येक देश, काल और परिस्थिति में
एक ही नियम लागू होगा...

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17 JUN AT 18:00

"माना कि..हम विदेह नहीं
किंतु देह की स्वीकार्यता क्या इतनी अधिक है
कि मन को अनदेखा कर दिया जाए.."

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11 JUN AT 13:26

तम की अभागन प्रणयिनी
निर्वात की चिरसंगिनी
सागर की परित्यक्ता लहर
एकाकिनी कब से पड़ी

मैं छंद की टूटी लड़ी ......

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20 MAY AT 22:15

"अमलतास के फूल..
इनमें कोई सुगंध नहीं
प्रेमियों के तोहफ़े में कोई जगह नहीं
प्रेमिकाओं के जूड़े में कभी नहीं खोंसे गए
कवि की कोमल कल्पनाओं का हिस्सा नहीं बने
मृत्युशैय्या पर भी कोई स्थान नहीं
लेकिन जब खिले तो जी भर के खिले
जेठ की दोपहरी भी विचलित न कर सकी
बिखरे तो समेट लिया धरती को अपने बाहुपाश में
.
.
तुम्हारे लिए मेरा प्रेम अमलतास जैसा ही है..।"


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16 MAY AT 20:37

अभिशप्त औरतें...
(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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12 MAY AT 18:59

"और...जहाँ मैं हूँ ...
वहां सांस तो आती है पर जिंदगी कफ़न में लिपटी है
यहां मौत के लिए नहीं ज़रूरत रस्सी और फांसी के फंदे की
समय और भाग्य के हाथों छले जाने के बाद भी
ज़िंदा रहने की ज़िद खुद में एक धीमी मौत है

वहां सीने में ठोंकी गई हैं कुछ कीलें भाग्य के नाम पर
जिनसे रिसती पीड़ा न रोने की सौगंध सी है
होंठों पर मुस्कान में लिपटी इस तरह चिपकी है
कि कुरेदोगे तो खून रिसेगा मगर पीड़ा के बोल नहीं

जहां मैं हूँ
वहां ज़िंदगी तो है..पर ज़िंदगी का मोल नहीं...।"
- मधुमयी

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