औरतें...
"जब कुछ न हो सके तो उन्हें खींचकर गले लगा लो
कसमसाते जिस्म पर सरसराती उंगलियों की क़वायद
और दफ़'अतन लरज़ते लबों से एक लंबी चुप लगा दो
तब तक के लिए...जब तक कि..
ऑक्सीटोसिन अपना काम शुरू न कर दे
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औरतों को बेवकूफ़ बनाना दुनिया का सबसे आसान काम है..।"-
"कितने निर्जन जंगल बीहड़
लिए फिरूँ मैं मन के भीतर,
मौन भरा कोलाहल लेकर
जाने कब से भटक रही हूं ।
मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।
दुःख की गठरी मन से भेंटे
उर जी का जंजाल समेटे ,
करती हूँ आश्चर्य स्वयं पर
खुद ही खुद को खटक रही हूँ ।
मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।
बिखरा आंचल उलझे कुंतल
आहत जीवन हुआ मरुस्थल,
मृत्य पुकारे प्रतिपल फिर भी
खुद ही खुद को रोक रही हूँ ।
मैं कुछ लिख दूं सोच रही हूँ ।।"-
क्यों नहीं टूटते प्रेम करने के ...और..
प्रेम में छले जाने पर टूटकर बिखरने के
परम्परागत मानक
प्रेम गणित विषय के समीकरणों सा नहीं है
कि प्रत्येक देश, काल और परिस्थिति में
एक ही नियम लागू होगा...-
"माना कि..हम विदेह नहीं
किंतु देह की स्वीकार्यता क्या इतनी अधिक है
कि मन को अनदेखा कर दिया जाए.."-
तम की अभागन प्रणयिनी
निर्वात की चिरसंगिनी
सागर की परित्यक्ता लहर
एकाकिनी कब से पड़ी
मैं छंद की टूटी लड़ी ......
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"मैं नहीं जान पाई...कि
क्या होता है स्पर्श का सुख
स्पर्श..जो देह को न सहलाकर मन सहलाए
क्या होता है वो साथ
जो साथ रहकर भी एकांत को बाधित न करे
भाग्य के थपेड़ों से आक्रांत और शिथिल
मन के लिए कहां होता है सुरक्षित आश्रय
कहां होता है वो साथी..जो घर जैसा हो.."
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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"अमलतास के फूल..
इनमें कोई सुगंध नहीं
प्रेमियों के तोहफ़े में कोई जगह नहीं
प्रेमिकाओं के जूड़े में कभी नहीं खोंसे गए
कवि की कोमल कल्पनाओं का हिस्सा नहीं बने
मृत्युशैय्या पर भी कोई स्थान नहीं
लेकिन जब खिले तो जी भर के खिले
जेठ की दोपहरी भी विचलित न कर सकी
बिखरे तो समेट लिया धरती को अपने बाहुपाश में
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तुम्हारे लिए मेरा प्रेम अमलतास जैसा ही है..।"
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"और...जहाँ मैं हूँ ...
वहां सांस तो आती है पर जिंदगी कफ़न में लिपटी है
यहां मौत के लिए नहीं ज़रूरत रस्सी और फांसी के फंदे की
समय और भाग्य के हाथों छले जाने के बाद भी
ज़िंदा रहने की ज़िद खुद में एक धीमी मौत है
वहां सीने में ठोंकी गई हैं कुछ कीलें भाग्य के नाम पर
जिनसे रिसती पीड़ा न रोने की सौगंध सी है
होंठों पर मुस्कान में लिपटी इस तरह चिपकी है
कि कुरेदोगे तो खून रिसेगा मगर पीड़ा के बोल नहीं
जहां मैं हूँ
वहां ज़िंदगी तो है..पर ज़िंदगी का मोल नहीं...।"
- मधुमयी-
"द्वंद कहाँ तक पाला जाए
युद्ध कहाँ तक टाला जाए
तू भी राणा का वंशज है
फेंक ! जहाँ तक भाला जाए"
-वाहिद अली वाहिद-