Rashmi Sanjay Srivastava   (रश्मि लहर)
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Joined 17 September 2020


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Joined 17 September 2020
23 APR AT 11:53

स्तब्ध हूॅं! घटनाऍं होती हैं, चर्चा होती है, पर, जिनके घर के लोग जाते हैं, उनकी अंतहीन पीड़ा कोई नहीं बाॅंट पाता है। हिंसा का कारण कोई भी हो, झेलते परिजन हैं बस! सच में बहुत दुःख होता है! असह्य पीड़ा हो रही है! क्या यही सोचकर वे लोग गये होंगे? परिजनों ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि यह उनके 'अपनों'' की अंतिम यात्रा होगी! निर्दोष मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि!

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13 MAR AT 16:56

स्मृतियों की पगडंडी पर
लुढ़कती हुई
ऑंसुओं की बूंदों के संग
रिश्तों से छूटे
अवाक् रंगों के साथ
एकाकी होली
मुबारक हो!

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बहनें!
एक दूसरे से अलग होते हुए भी
एक-दूसरे की जान होती हैं।
एक दूसरे की कमियों को टटोलती रहती हैं
"तुम बचपन से ऐसी ही थीं"' कहकर हवा में
ठहाके छोड़ती रहती हैं!
एक-दूसरे की 'दादी'-'नानी' बनकर उन्हें
परफेक्ट बनाने में जुटी रहती हैं!
दिनभर एक-दूसरे को याद करके उलझती हैं
और
बातों-बातों में उदास होती रहती हैं!
नज़र उतारने से लेकर
ऊॅंच-नीच समझाने में भी पीछे नहीं हटती हैं।
सच में...
बहनें भी न
चाहे जितना प्यार करें एक-दूसरे को
पर कभी जताती नहीं हैं!
ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे के लिए
जान देने में भी हिचकिचाती नहीं हैं!

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28 JAN AT 23:53

समय
बहुत कुछ बदल देता है
धीरे-धीरे !

भर जाते हैं
घाव
मिल जाता है
हड़बड़ी को भी
एक उचित ठहराव !

धीरे-धीरे
टिकने लगती हैं निगाहें
अतीत के किसी दृश्य पर!

और
धीरे-धीरे
मजबूरियाॅं और
समझौते
चिड़चिड़ा उठते हैं
किसी अंतहीन...
अकुलाए सत्य पर

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26 JAN AT 14:58

गणतंत्र दिवस
की
हार्दिक शुभकामना!

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22 JAN AT 20:50


कभी-कभी रंग बदलकर
बह पड़ता है
जीवन की ऑंखों से
खारा जल
जो छोड़ता जाता है
समय के कपोल पर
धुंधले निशान!
और यकायक थम जाता है
एकाकी वर्तमान!
अनायास हो जाता है
सपनों की भूमि पर
सुधियों का जल-भराव
और अतीत की काई पर फिसल पड़ते हैं
रिश्तों के कई चिटके मकान
जिनके कारण बदल चुके होते हैं
ज़िन्दगी के मायने!

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21 JAN AT 11:17


ये
वो
हम!
त्रस्त
व्यस्त
अकेले
वृद्ध
डबडबाती ऑंखों को
सॅंभालने के अभ्यस्त!

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21 JAN AT 11:12


उनके मन की वेदना
घर की टाॅंड़ पर धरे
अतिरिक्त सामान की तरह
इग्नोर होती रहती है।

लाचारों के जीवन में
वार्षिक त्योहार
नहीं आता!

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18 JAN AT 17:44

इश्क़
खारे जल सा
थरथराता रहा
छुवन की ऑंखों में
और तुम!
मेरी बेबसी की
कॅंपकपाहट में
हमेशा के लिए
सिमट गये!

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18 JAN AT 17:39

प्रतीक्षा की फुनगी पकड़े
अनुभूतियों के दुशाले में छिपी
तुम्हारी स्मृति
नवजात शिशु की सरल किलकारी की तरह
उमंगित कर जाती है
सम्पूर्ण दिवस को!
मैं चकित हूॅं
तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खोकर।

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