प्रेम एक तर्क हीन विषय है इसे
भावनाओं के तराजू पर ही रहने दें ।-
दुनिया की सबसे "मूल्यवान" और "अमूल्य" भाषा होती है
"भावनाओं की भाषा",
इसे तो घोषित कर देना चाहिए "मानवता की भाषा",
इस "भाषा" को समझने का तरीका भी बड़ा है "अद्भुत",
जो "अनपढ़" है पर उसके अंदर "मानवता" है तो
वो "सुन समझ" सकता है इस भाषा को,
पर जो बहुत बड़ा "डिग्री धारी" है,
पर उसके अंदर "मानवता" नहीं है
वो इतने सारे डिग्री के बाद भी
उसे "सुन समझ नहीं सकता"..!!!
(:--स्तुति)-
सफर जो सोचा था तुम्हारे साथ, उसे अकेला ही पूरा किया हर बार,कई बार
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कभी कभी अक्षरों को खुला छोड़ देती हूं
ये खूब समझदार होते हैं
मेरी भावनाओं को खुद ही पढ़ लेते हैं
और खुद ब खुद सज जाते हैं
हाँ!!!! सच्ची!!!!-
जहा पर लोग नहीं समजते है वहा से दूर चले जाना ही योग्य होता है...
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जिंदगी में जिसने हमारे जज्बातों को समझा
उसने ही हमें इस जहाँ में अपना समझा ।
शुक्रिया उनका उन्होंने हमें अपना समझा
हमारें दिल भावनाओं को जिन्होंने समझा ।-
प्राप्ति ही है समाप्ति,
प्रेम में होती न प्राप्ति।
प्रेम समर्पण की तृप्ति,
आरी को भी रक्तरंजित करती।
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