“मुझे छोड़ दोगी क्या?”
“कहाँ?”
“बुढ़ापे तक?”-
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियां मिल जाएंगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मेरी उमर की डोर गहो तुम!
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
वर्ष हजारों हुए राम के , अब तक शेव नहीं आई है!
कृष्णचंद्र की किसी मूर्ति में, तुमने मूंछ कहीं पाई है?
वर्ष चौहत्तर के होकर भी, नेहरू कल तक तने हुए थे,
साठ साल के लालबहादुर, देखा गुटका बने हुए थे।
मैं तो इन सबसे छोटा हूँ, क्यों मुझको बूढ़ा बतलातीं?
तुम करतीं परिहास, मगर मेरी छाती तो बैठी जाती।-
उनके रोने के लिये जब घर में जगह नहीं होती
बगीचे में रखी वो कुर्सियाँ भी पुश्तैनी हो जाती हैं..-
उम्र की उस स्थिति में आ गया हूँ
कि बुढापे में किसी बच्चे सा हो गया हूँ
चाहता हूँ कि कोई संभाले मुझे बच्चे की तरह
पर किसी के पास वक़्त नही,व्यर्थ जो हो गया हूँ
छोटा हो गया हूँ इतना कि घुटनों पर चलता हूँ
बड़ा हूँ इतना कि कदमों पर चला नही जाता
जिंदगी ने मुझे कितना लाचार बना दिया
अब निवाला भी उठाकर खाया नही जाता
पर ये मेरी पीड़ा का कारण नही,
दुख इतना सा है कि,,,,,
एक उम्र गुजार दी मैंने जिनका जीवन सवारने में,
आज मेरी उस औलाद से मेरा बुढ़ापा उठाया नही जाता-
चेहरे पे अब झुर्रियां पड़ने लगी हैं पिता के
शायद घर की दीवारों में दरारें आने लगी हैं।-
एक टहनी पड़ी है सड़क पर
शायद कोई घर फिर से टूटा है।
ये धूप बड़ी है कड़क सर पर
शायद बुढ़ापा उनका रूठा है।-
रंग आंखों में, उम्र भर रहे है,...
जवान खङा ये आदमी,मिरा बुढापा है।-
आज ज़िन्दगी ने मुझसे पूछा कि
"क्या तुम मुझे बुढ़ापे तक ले जा सकोगे ?"
मैं ख़ामोश रह गया-
बचपन रहता है मस्त
जवानी रहती है व्यस्त
बुढ़ापे से सभी त्रस्त
फिर जीवन होता है अस्त
हो जा तू भी अभ्यस्त
जबरदस्ती जी ले इसे
या बना ले जबरदस्त-
बुढ़ापे की खिड़की से
वो जवानी को ताकते हैं,
अपने बेटे की पतलून से
वो अपनी कमर नापते है,
आज भी बीवी के मायके चले जाने पर
कभी कभी पड़ोस की भाभी के घर झांकते है,
पर कॉलोनी के बच्चों के साथ दौड़ लगाने पर
बेईमानी ये करते है, और बच्चे हाँफते रह जाते हैं।-