बेटे के जन्म पर
माँ बाप से ज्यादा अफ़सोस तुमने मनाया है
बेटे के जन्म पर ढोल
बेटी के जन्म पर थाली भी न बजाया है
माँ तुम भी तो एक बेटी ही
क्या तुम्हें क्षण भर भी
मेरे बेटी होने पर अफ़सोस आया है
मैंने जमीं पर पैर भी न रखे थे
मेरी शादी की चिंता तुम्हारे सर तन आया था
पैर अभी भी छोटे ही थे
मेरे कंधों का बोझ तुमने ही तो बढ़ाया था
माँ उम्र अभी भी कच्ची थी
अभी तो मैं छोटी बच्ची थी
माँ शादी क्यो तुमने मेरी करवाया है
जिसको है खुद की पहचान नही
तुमने अपरिचित के गले से सजाया है
देखो न माँ भाई बहन के साथ जी भर खेल सकी न
माँ मेरे गोद मे भी अब एक लाल आया है
आज जब उम्र हुई है शादी की
एक बेटी ने मुझे माँ कह कर बुलाया है।-
बाल विवाह
एक दिन अचानक उसको पता चला
कि शादी तो उसकी बचपन में, हो, गई, थी,
अब तो बस उसका विदा होना शेष रहा
सुनकर उसको ये बात बड़ा धक्का लगा,
धरे रह गए अरमान उसके
जब उसको ये पता चला,
पूछने लगी मां बापू से अपने
आपने मेरे साथ ऐसा कब किया,
मैं तो थी बच्ची उस समय
जिस समय तुमने मुझे इस बंधन में बांध दिया
मुझे क्या समझ थी शादी जैसे बंधन कि
जो तुमने मुझको इसके काबिल समझ लिया,
मैं बार बार पूछ रही हूँ बाबू तुमसे
मेरे साथ तुमने ऐसा क्यों किया,
मैं थी छोटी सी बच्ची
अपने गुड़िया गुड्डो का ब्याह कराती थी,
नासमझ बच्ची को तुमने किस बंधन में बांध दिया था
मेरे माँ बाबू तुमने मुझपे ये कैसा अत्याचार किया था,
और सुन लो मेरे माँ-बापू
मैं खुद पर ये अत्याचार ना सहूंगी,
क्षमा करना मुझको आप पर,
आपका ये किया गया रिश्ता मैं स्वीकार ना करूँगी,
माफ कर दो मुझे माँ बापू
पर मैं बाल विवाह स्वीकार ना करूँगी||-
पियाजी म्हाने पिवरे पहुंचा दो राज....!
कद परणी ने कद जणी कोई तो ठा दो राज...,
हुणों भंवर जी म्हाने तो पिवरे रें रस्ता री ओलखण दो,
कि होवे मेहंदी रों रंग , कि जाणु शृंगार जाण दो।
हुणो आलिंजा म्हारा म्हाने बेगी -बेगी पहुंचा दो
म्हारो मनडो तो हुचके भरीयो,आखडली रोवे राता सारी,
म्हारा नैणो रा बाधिला ढोला हुणो अरज इतरी म्हारी।
म्हारे बाबोसा रा कर्जा भारी सा इण कारणे परणाई,
मायड़ ने लागे मिनखा रा बोल भारी जद परणाई।।
थारे बाबोसा रे हांका सु लागे घणा डर सा,
थारी मायड़ रा परखा लागे भारी सा ।
म्हारे बाबोसा तो रुपिडा़ रा लोभी राज,
मायड़ म्हारी बिंदणी री भुखी सा राज।
गंगा ने जमना तो म्हारे अखियां सु बहाई,
गंगा रे जमना सांगे म्हाने भी परणाई।
पालणे झुलती ने आया थारा जीसा ,
म्हारा हाथ में थमा दियों रूपिडो़ सा ।
म्हाने तो परणाई ओ बैठाने थाल,
म्हारी अखियां बोले भरीया डब डब ताल
कि करीया बाबोसा म्हारा एडा़ उल्टा सीधा आटा-साटा ,
म्हारी जिंदगी भर रो रहियो माथे बोल क्युं करीया आटा-साटा?
मैं तो सगळा री घणी प्यारी- प्यारी, किण ने दोउ दोष किस्मत री रेखा न्यारी - न्यारी।
जद जद आवे आ आंखा तीज म्हारे मन में उठे डर,
न जाणु कितरी गिगली परणावे सासरे मेली लाडेसर।
मेलो तो भले मेलो सा बेगा आइजो बाबोसा सावण में लेवण,
मनडा़ म्हाने लागे बस इतरो डर कद हो न जाए ढुंढ फागण में।
(अनुशिर्षक में पढ़ें)-
खिलौने खेलने की उम्र थी, कठपुतली बन डोली में विदा की गई
आसमां में उड़ने की चाह थी ,चारदीवारी में कैद की गई
निर्मल मन सह तन कोमल है साड़ी कैसे पहने वो।
स्लेट बत्ती वाले छोटे हाथों में बड़ी जिम्मेदारी ठहर सी गई
खुदा का कहर भी यूं बरसा की भरी मांग भी उजड़ गई
बाल विवाह की बलि चढ़ी फिर सफेद साड़ी में लिपट गई
मुस्कान उसकी सिमट गई अब,अंधकार में डूब गई
रीति रिवाजों के भंवर में फंसी,अस्तित्व खुद का वो भूल गई-
[बाल विवाह]
उम्र से पहले ही मुझे परिणय सूत्र में बाँध दिया
बाबा ने मुझे बोझ समझ घर से बिदा कर दिया
मेरे नयन में सुरमा नहीं आँसुओं की धार सजी
मेरे माथे पर बिंदी से पहले प्रश्नचिन्ह लगा दिया
गुड्डे-गुड्डी के खेल जैसे मैं गुड़िया रानी बनाई गई
फिर खेल का अंत मुझे डोली में बिठा दिया गया
मुझे जाते देख किसी को तनिक भी तरस न आई
गरीबी और लाचारी ने मेरे सपनों को कुचल दिया
मेरे नाजुक कंधे पर जिम्मेदारी की बोझ रखी गई
हाथों में कलम के बजाय झाड़ू बेलन थमा दिया
नासमझ थी मैं पर रश्मों-रिवाज के तले दबती गई
क्यों उम्र से पहले ही मुझे "औरत" बना दिया गया?
- महिमा.. ✍-
यूं मेरी कच्ची उम्र में डोली उठाकर
मेरे सपनों की अर्थी मत निकालों
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उस नटखट से बचपन का अपनों ने ही गला घोट दिया अपनों ने ही हाथ पकड़ कर गैरो के घर छोड़ दिया
कभी अपनों की याद में कभी अटखलियों को याद कर रो लेता है वो बचपन
अक्सर अपनो के हाथ बिकता है मासूम नटखट बचपन👯
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बहुत खामोश हूँ मैं, मुझे ज़रा खामोश ही रहने दो,
मंजिल की डगर पे तन्हा ही सही, मुझे चलने दो।
शक़ मत करिए काबिलियत पे मेरी बिना मुझे जाने,
ख़्वाहिश है मेरी आसमां छूने की, आसमां छूने दो।
मैं भी कर ना दूँ आपका सर गर्व से ऊंचा तो कहना,
लड़को से कम नही हूँ,मुझे उनके साथ तो चलने दो।
माना कि मैं पराया धन हूँ,पर अंश तो आपका ही हूँ,
मुझे अपने रंग में बस कुछ साल तो और रंगने दो।
बोझ नही हूँ मैं,जो आपको उतारना है अपने सर से,
अभी तो मैं छोटी हूँ बाबा, मुझे थोड़ा और पढ़ने दो।-
"बाल-विवाह"
"माँ" तू भी तो एक माँ है कैसे तू ये मान गई
छोटी उम्र में शादी हो मेरी मुझे जीते जी क्यों मार गई
देखें थे मैने भी सपनों के राजकुमार , सुनी थी परियो की कहानी हजार
ये क्या हो गया माँ मेरे साथ , सपने मेरे सारे हो गए अब तो बेकार
अभी तो चलना सीख रही थी फिर ये जंजीरे क्यों माँ
जिंदगी मुझे भी तो बस यही मिली थी फिर ये बेदर्दी मुझसे क्यों माँ
चलो जो भी हो मेरा क्या है कहते है जिंदगी बहुत छोटी होती है में जी लूंगी इस बार
ध्यान रखना अपना और बाबा का समय मिले तो मिलने आ जाना कभी कभार
मेरी बेटी होगी कभी तो उसे ऐसे ना विदा करूंगी
पिंजरे खोल कर उसे उसके सपनों की उड़ान भरने को कहूंगी
यूं सबकी तरह में ना करूंगी अपने कर्तव्यों का निर्वाह
मेरा तो हो गया पर उसका कभी नहीं होने दूंगी "बाल-विवाह"-