Mahi   (महिमा यादव)
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Joined 13 April 2019


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Joined 13 April 2019
22 JAN AT 13:46

शीर्षक - मर्यादा पुरुषोत्तम राम

पावन भूमि अयोध्या नगरी में
मर्यादा पुरुषोत्तम राम पधारे।

सरयू के निर्मल पवित्र जल से
प्रभु जी के हम चरण पखारे ।।

हिंदू-मुस्लिम के भेद से ऊपर
मानवता का एक राष्ट्र बनाये।।

जंग लड़ रहे सियासत में जो
उन्हें हम शांति का पाठ पढ़ाये।।

धर्म ,सत्य और न्याय है अग्रिम
मिलकर आज हम सभी बताये।।

आस्था और श्रद्धा की जननी
मन मंदिर में ईश्वर को बसाये ।।

श्रीरामचंद्र की जन्मभूमि पर
ब्रह्म सहित सब देवगण आये।।

कलयुग में हुआ देव-आगमन
अँजुरी भर-भर पुष्प बरसाये।।

हम सब भारतवासी मिलकर
आओ स्वागत में दिये जलाये।।

श्रीराम जी प्राण प्रतिष्ठा में
भक्तजन झूमे,नाचे और गाये।।

- महिमा यादव

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29 MAR 2021 AT 9:40


आम्र तरुवर बौर छाए पके स्वर्णिम फसल लहराए
कोकिल प्रभात कूक लगाए, रंग-बिरंग विहग गाए

तटिनि कल-कल बहती जाए धूप धानी चुनर लाए
लाल-गुलाल भाल गाल कवि हृदय सरस कर जाए

श्वेत वस्त्र इंद्रधनुषी होए ,गहरे रंग तन-मन भिगोए
ताल-मृदंग-संग राग बनाए संस्कृति स्मरण हो जाए

हिंद अनूठी कलाकृति पर्व ,धर्म-धर्म का मेल कराए
पुष्प पलाश इत्र महकाए हर्षित ऋतु जब प्रीत पाए

कृष्ण कथा वृंद बताए तिमिर विषाद मेघ छँट जाए
सौंदर्य पूर्ण वसंत आए धरा पर नव स्फुर्ति छा जाए

-महिमा

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7 FEB 2021 AT 22:26

काँटों से ऊपर उठकर , इक पुष्प खिल गया
प्रत्येक उपवन में , विविध रंगों में मिल गया

अपने सौरभ से चहुंओर इक पहचान पाया
जन-जन द्वारा वह खूबसूरत गुलाब कहलाया

किसी की कविता किसी की शायरी में आया
किसी की रेख़्ता तो किसी के गज़ल में छाया

कहीं किताबों में दबा तो कहीं यादों में बसा
कितने हाथों में जाकर वह मसल दिया गया

प्रेमियों के हाथ में पहुँचकर वह निखर गया
प्रेयसी के गजले में जाकर देखो सज गया

एकलौते पुष्प ने आज कितने हृदय को बाँधा
जीवन के अर्थ बताये विविध रंगों में दिख गया

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4 FEB 2021 AT 20:58

प्रत्येक क्षण मैं तोड़ी जाती
संकीर्णता का होती शिकार
दकियानुसी सोच कबतक?
क्यों परिवर्तित नहीं विचार?

स्वार्थ साधक बनकर मानव
स्व तुच्छता का देता प्रमाण
आत्ममंथन जग पर हो जब
कहूँ मैं निरर्थक पशु समान

एकांत अंतस की धरा पर
एक विश्वास टिका है अभी
ज्ञान मात्र है अमूल्य साधन
परिवर्तन की है यही कमान

मुझमें ही मैं वास कर रही
मुझमें ही मेरा साथ है....
मेरे अंदर भी बस मैं ही मैं
और मैं ही मुझमें बाकी हूँ
- महिमा












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23 JAN 2021 AT 21:34


खिले पुष्पों सी ईश्वर की बनावट हो आप
कोई ग़ज़ल, कविता की लिखावट हो आप
लिखूँ जो कभी शब्दों के समंदर में डुबकर
बेरंग जीवन में जैसे कोई सजावट हो आप

❤❤
अवतरण दिवस की अनंत
शुभकामनाएं प्यारी दोस्त!
आपके जन्मदिन के शुभ अवसर पर
ईश्वर से प्रार्थना है आपको सुख-समृद्धि
और यश की प्राप्ति हो..
आपका लेखन कौशल गति धारण करे।
सदैव सफलता के मार्ग पर अग्रसर हों..

Have a wonderful time
and very happiest birthday!
Hope your special day
brings you all that
your heart desires!
❤❤


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12 JAN 2021 AT 16:52

पथ-पथ पर पथिक के,पथ-प्रदर्शक को प्रणाम!
सुख-दुःख में सर्व समान,एकाग्र मन हो आयाम
लक्ष्य पर सदैव अटल,विकटता हो जाए विफल
कुशाग्र बुद्धि का हो ज्ञान,जग में गूँजे मेरा नाम।

स्वामी विवेकानंद जी
की जयंती पर
उन्हें कोटि कोटि नमन..
सभी को युवा दिवस की शुभकामनाएं..

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31 DEC 2020 AT 23:54

इस चराचर भौतिक जगत का काल नियम
न स्थिर हुआ न स्थिर होगा..
जो अद्य आगत है
वह श्व: गमन पथ पर अग्रसर अवश्य होगा..
आवश्यकता मात्र है व्यक्ति को आत्ममंथन करने की
कि प्रति वर्ष में हमनें क्या प्राप्त किया है
और क्या खो दिया है..
यदि सत्य मन से किसी को अलविदा करना चाहते हैं
तो असत्य, असंयम, आलस, अस्वछ्ता ,अनीति,
अकर्म, अपकार आदि को करें
जिससे मनुष्य जीवन सफल बन सके।
नव वर्ष के साथ नव संकल्प के साथ
स्वयं के द्वारा स्वयं की खोज में निकले..
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनोबल का ह्रास न हो।
धैर्य और साहस सदैव बना रहे।
बीते वर्ष के तम को स्व प्रकाश से भरने का प्रयत्न करें।
नीतिगत और प्रेरणादायी विचार मस्तिष्क में सदैव स्मरण रहे।

इन्हीं ऊर्जावान शब्दों के साथ सभी को
नूतन वर्ष की अनंत शुभकामनाएं।।
- माही






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19 DEC 2020 AT 16:01

यदि स्त्री के पैरों की
पायल जंजीर बन जाए
उसकी ध्वनि हमारे
कानों को सुकून नहीं देती
बल्कि देती है सदैव चुभने
वाली पीड़ा और ऐसी पीड़ा
जो हर छनक के साथ
दुगुनी हो जाती है...
जब एक-एक पग उसके
जमीं पर पड़ रहे हों
और बंधन से घुंघरू
भी न टूट रहे हो...
तब विवशता की
शिखा बाँधे उसकी
भावनाओं पर तीव्र
आघात होता है
और ऐसा आघात जो
जन्म-मरण के
कष्ट से भी
कष्टदायी
प्रतीत होती है...

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1 DEC 2020 AT 20:13

इक दीप हाथों में लिए
उम्मीद में मैं खड़ी हूँ

चहुँओर धुँधला सा दिखे
जाने क्यों रो पड़ी हूँ

कौन है जो राह दिखाये
भटके इस पथिक को

मैं बेसहारा फिर इसी
असमंजस में पड़ी हूँ

जल रही है दीप जैसे
एक बाती के सहारे

क्या नदी के भँवर में मैं
नाव से बँधी कड़ी हूँ?

फिर एकटक देख रही
लक्ष्य को अपने भेद रही

हाँ तूफानों के वेग में मैं
पर्वत-सी अटल खड़ी हूँ

- महिमा यादव

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26 NOV 2020 AT 18:51

संविधान पर एक प्रकाश
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बाह्य रूप में नैतिक ,अखण्ड है जिसका विधान
सामाजिकता,मौलिकता,एकता जिसकी पहचान

आंतरिक दुर्दशाओं से भी नहीं रहा कोई अंजान
हाँ विश्व का सबसे विस्तृत है भारत का संविधान

भूखा भूख से मर रहा, इंसान इंसान से लड़ रहा
कहीं जातिवाद बढ़ रहा कहीं धर्मवाद छिड़ रहा

प्रतीत होता इंसानियत का नहीं शेष रहा निशान
हाँ विश्व का सबसे विस्तृत है भारत का संविधान

हत्यारे चोर लुटेरे हैं,बलात्कारियों के देश में डेरे हैं
संसद में भी घमासान है और सरकारें मुख फेरे हैं

ऐसी कमजोर नीतियों से अब नहीं होगा समाधान
हाँ विश्व का सबसे विस्तृत है भारत का संविधान

हम बेटियों में भय होता क्यों न्याय में विलंब होता
सत्ता में भावनाओं की आड़ में पैसे का खेल होता

नागरिकों के अधिकारों में होता रहता है व्यवधान
हाँ विश्व का सबसे विस्तृत है भारत का संविधान

- महिमा




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