अल्हड़ चंचल मस्तमलंग वो, इस दुनिया से बेगानी है,
अनसुलझी एक पहेली जैसी , अनकही कोई कहानी है।।
आनन से अप्सरा झलकती, तन से खिलती कंज समान,
मस्ताना अंदाज़ घायल कर देता, मदहोश करती जिसकी जवानी है।।
रोती छुपकर, हँसती खुलकर, गैरों के ग़म भी अपनाती है,
लड़ती गिरती फ़िर उठकर चलती, उम्र मे छोटी मगर सयानी है।।
नीर सी निर्मल, शिला सी ठोस, अविरल बहती पवन के संग,
वो शक्ति स्वरुपा, रूप ममत्व का, अन्याय में प्रलय निशानी है।
लब जैसे पंखुड़ियों से कोमल, मन जैसे नन्हा बालक है,
ठहराव गहन है प्रेम में जिसके, त्याग में उस जैसा न कोई सानी है।।
छल कपट से परे समाहित, प्रेम का गहरा सागर है उसमें,
आँखों में मासूमियत का अक्स उकेरे, बातों में उसके नादानी है।।
अल्हड़ चंचल मस्तमलंग वो, इस दुनिया से बेगानी है,
अनसुलझी एक पहेली जैसी , अनकही कोई कहानी है।।
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