इस मज़हबी जमीं पे आख़िर दम तोड़ दूंगी
फिर एक रोज़ मैं तुमसे आसमाँ में मिलूँगी ...-
मयस्सर डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है,
तारीख़ों के जीने से दिसम्बर उतर रहा है!
कुछ चेहरे घटे, चंद यादें, जुड़ी गए वक़्त में,
उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है!
गुनगुनी धूप और ठिठुरी रातें जाड़ों की,
गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना पर्दा गिर रहा है!
ज़ायका लिया नहीं और फिसल रही ज़िन्दगी,
आसमां समेटता वक़्त, बादल बन उड़ रहा है!
.....फिर एक ओर दिसम्बर गुज़र रहा है-
आओ अजीजों हँसते-हँसते मुझे विदा करो ,
प्रभु की रहमत रही तो फिर दुबारा मिलेंगें ...-
एक गुज़ारिश 🙏
जब मैं खुद की जीवन की गति समाप्त
कर दूँ,तो
हे प्रिय,😊
तुम आना नही देखने क्योंकि,
मैं नही चाहती, जो पलके कभी भीगती थी,ओर
उसे पोछने के लिए में रहती थी,हमेशा ओर
जब तू मेरे पास आकर अपने पलके
भीगाए तो उसे पोछने वाला कोई न रहे।
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वो फिर मिलेंगे मुझसे,
वादा तो नही है!!
अपना भी ये ख़्याल,
ज़्यादा तो नही है!!
दिल तोड़ने का उनका,
इरादा तो नही है!!
उनका मिज़ाज यारों,
सादा तो नही है!!
अपनी कसम निभाएं,
नादां तो नही हैं!!
स्वतंत्र,हमको शिक़वा,
आधा भी नही है....
सिद्धार्थ मिश्र-
सारे दोस्त फ़िर से मिलेंगे,
अपने उसी स्कूल के मैदान में..!!
मिलकर फिर गप्पे लडाएंगे,
झूठ फैंकेंगे एक दूसरे की शान में..!!
बुलाएंगे सबको उनकी चीड़ से,
नहीं पुकारेंगे किसी के भी नाम से..!!
जब कोरोना का कोहरा,
हर एक जगह से हट जाएगा..!!
फ़िर मोज मस्ती का पटाखा,
बड़ी ज़ोरो शोरो से फोड़ा जाएगा..!!
सबकी टांग खेंचेंगे,
किसी को भी नहीं छोड़ा जाएगा..!!
एक के हाथ में नमकीन होगी,
तो दूसरे के हाथ में होगा ठंडा..!!
जो नहीं करेगा शरारत,
उसको पड़ेगा बड़े ज़ोर से डंडा..!!
पागलपंती भी करेंगे,
क्योंकि यारी दोस्ती का यही है फंडा..!!-
Tu lak kr le koshish tujhe bholne nhi denge
Tere dil me rah kr tujhe jeene nhi denge
Tauhfon ki kya baat krte ho aye nadan
Jaan lengen bhi to tujhe pata chalne nhi denge
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