रात ख़्वाबों तुम थे , यूँ नज़दीक-तर
हुई सुबह और बेदार से हो फिर मिले ..-
manu
(manu..)
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जिंदगी प्यार के लिए कम पड़ जाती है
पता नहीं लोग रुसवा कैसे हो जातें हैं..
पता नहीं लोग रुसवा कैसे हो जातें हैं..
Joined 12 April 2018
2 MAY AT 22:07
ख़्वाब से क्यूँ टूटते नहीं
रात है कि , बितती नहीं .
और ये घड़ी है
कि मनु , गुज़रती नहीं .
ख़्वाब से क्यूँ ..-
28 APR AT 23:37
चंद अश'आर ये
राहत के तो नहीं मनु ,
सहरा के किसी गुबार से
ये सुलगते रहते हैं .
पढ़-सुन ये
फिर जी उठते हैं ,
बेकस से ये तराने
दर्द बढ़ा देते हैं .
चंद अश'आर ये ..-
28 APR AT 2:56
दो-चार डग को जो कभी रहे थे हम-क़दम
वो आज मनु अपने पैरों के निशाँ पोंछते हैं ..-