दिखाया जा रहा आईना हमको
उन्हें लड़के दिखाये जा रहे है-
22 अक्टूबर🎂🎂
मुहब्बत की अदना सी शायरा हूँ 💕 पर कह... read more
जहाँ सब से ज़रूरी दोस्ती है
फ़क़त वो दोस्ती ही दोस्ती है
इसी कॉलेज में अंकित, अमित की
अली, अनवर से गहरी दोस्ती है
सुनो ये इश्क़ तो अफ़वाह है बस
हमारी और उनकी दोस्ती है
ज़माने भर के ग़म की और मेरी
सुदामा कृष्ण जैसी दोस्ती है
कहा कल ख़्वाब में अल्लाह ने मुझसे
हमारी राम से भी दोस्ती है-
आप पल भर को पास आते हैं
फूल खिलते ही सूख जाते हैं
रो रहे हैं तुम्हारी ख़ातिर हम
लोग रोते नहीं रुलाते हैं-
पास मेरे हर एक पल हो तुम
हो मेरा आज, मेरा कल हो तुम
मीर की बह्र पर लिखी मेरी
यार सबसे हसीं ग़ज़ल हो तुम
जिसके ढहने से डर रही हूँ मैं
हाँ वही प्यार का महल हो तुम
मेरी बर्बाद ज़िन्दगानी में
मुश्किलें हैं हज़ार, हल हो तुम
झील सी हैं "सहर" मेरी आँखें
और उस झील का कॅंवल हो तुम-
हमको प्यार जताना मुश्किल लगता है
उनको प्यार निभाना मुश्किल लगता है
अव्वल अव्वल मिलते हैं दोनों हर दिन
बाद में फ़ोन उठाना मुश्किल लगता है
©ऋचा चौधरी "सहर"-
प्रेमिका की आँखें
वो आईना हैं
जिसमें पुरुष
अपना सबसे सरल रूप
देखता है-
तंज कसते थे तुम्हीं कल तक मेरी औक़ात पर
आज हामी भर रहे हो क्यों मेरी हर बात पर
क्या कहा ? इस काम में मेरी सिफ़ारिश चाहिए
याद है ? भाषण दिया था आपने ख़ैरात पर
चाहते हम भी वही हैं आपके दिल में है जो
आप काबू रख रहे हैं बेसबब जज़्बात पर
लाख ग़लती हो मेरी पर वो मनाता था मुझे
एक तुम हो, रूठ जाते हो ज़रा सी बात पर
ब्रह्मचारी बोलते थे वो कभी ख़ुद को "सहर"
शे'र ढेरों कह रहे हैं अब रंगीली रात पर-
मेरे पहलू में दंगा चल रहा है
न जाने वक़्त कैसा चल रहा है
कहीं तुर्बत में ज़िंदा सो रहा तो
कहीं रस्ते पे मुर्दा चल रहा है
दिया था अम्न का पैग़ाम हमने
हमारे घर ही झगड़ा चल रहा है
मशालें हाथ में लेकर सड़क पर
भला वो कौन अंधा चल रहा है
हुआ करता था इक मंदिर यहाँ पर
सुना है आज धंधा चल रहा है-
वहाँ हर आदमी रोता दिखेगा
जहाँ आतंक का झंडा दिखेगा
कोई डरती हुई औरत दिखेगी
कोई सहमा हुआ बच्चा दिखेगा
किसी के हाथ फिर कटते दिखेंगे
गले में मौत का फंदा दिखेगा
ज़रा सोचो कि क्या बीतेगी उसपर
जिसे अपना वतन जलता दिखेगा
तुम्हें मजबूरियाँ थोड़ी दिखेंगी
तुम्हें बस तंज का मौक़ा दिखेगा
नज़र कैसे मिलाएगा वो ख़ुद से
जिसे इस जंग में जलसा दिखेगा
तुम्हारी आँख पर पट्टी बँधी है
तुम्हें मज़हब के ऊपर क्या दिखेगा
©ऋचा चौधरी "सहर"✍️-
जानती थी मैं कहानी को नया इक मोड़ देंगे
वो नये किरदार की ख़ातिर पुराना छोड़ देंगे
आज दीये कह रहे हैं हम लड़ेंगे आँधियों से
आज शीशे कह रहे हैं पत्थरों को तोड़ देंगे-