दरारें थीं दीवारों में, चू रही थी छत, टूट रही थी खिड़की नहीं लिखी,
परदेस में बेटे को, माँ ने ख़त में, कोई भी ख़बर सच्ची नहीं लिखी!-
तुम्हारे हमारे दरम्यां
बंद दरवाजों की चाभियां गुमा दिए हमने-
हर तरफ
नफ़रतो और मोहब्बतो की
अमीर और ग़रीब की
धर्म और मजहब की
अपनों और गैरो की
हर तरफ दीवारें ही दीवारें हैं-
सुनाई देती हैं आहटें, दीवारों में धडक़न सी,
बयां करती हैं दरारें, सीने में कोई तड़पन सी,
बिखरी ख़ामोशी सी रहती है,
ज़िन्दगी में टूटे दर्पण सी,
बजती है मेरे घर में,
तन्हाईयाँ ख़ाली बर्तन सी..!
-
एक उदास सा शख्श है,
तन्हा दीवारें हैं...!
खिड़कियां भी ख़ामोश हैं,
इंतज़ार अब भी ज़िंदा है!-
एक शख़्स बनाता है दीवारों में घर।
औलादें बना देती हैं घरों में दीवारें।-
रिश्तो में नफरत की दरारें
तो मिटती है
दिलों में मोहब्बत की दीवारें
तो मिलती है-
तेरी यादें रूलाती हैं, जो मेरे घर मे ठहरी है बड़ी तक़लीफ़ देती हैं, लगी जो चोट गहरी है
के है इन बंद कमरों में मुझे आराम बस इतना
मैं जितना चीखू चिल्लाऊ, दीवारें गूंगी बहरी हैं-
बात मज़हब की सिर्फ इंसा करे, परिंदा तो मासूम होता है,
न जानता दीवारें दिल की, सरहदों पर क्यों खून होता है!
जमीं ढूंढने जब भी निकला, हर इंसान अपने हिस्से का,
इंसानियत छुप जाती है कहीं, बाकी बस जुनून होता है !
-
अन्तर्मन में कई दीवारें तो मिलनी है,
पथरीले संघर्षों में पांव भी छिलनी है..
जीवन पथ पर नियत तुम बढ़े चलो,
ये काली रात कभी न कभी ढलनी है..
धैर्य न छोड़ ये संबल बढ़ता जाता है,
हैं तपन तुझमें तो मशाल ये जलनी है..
फल की चिंता छोड़ लक्ष्य को तू साध,
होगा अभेद प्रण तीर निशाने चलनी है..
भय से भी भयभीत जो हुआ न कभी,
गाथा उसकी स्वर्ण अक्षर में मिलनी है..
-