अंदाज राहुल   (Andaaz Rahul)
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Joined 23 September 2017


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Joined 23 September 2017

दाग़दार हुआ मैं तो तेरा दामन सुफैद रहा
राजी तेरी रज़ा में मेरा दिल भी मुस्तैद रहा
रिहाई की क़ीमत कुछ फिर यूँ तय की गयी
इक पंछी आज़ाद हुआ इक ता उम्र क़ैद रहा

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टूटा जो दिल मेरा तो चर्चा हर तरफ़ हुआ
मेरा ख़ुदा भी जाने ये किस की तरफ़ हुआ
उसने इक लकीर खिंची दो दिलों के दरमियां
मैं इक तरफ़ हुआ वो इक तरफ़ हुआ

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रूठा है मुझसे तो मुकद्दर तुझसे तेरे ख़्वाब ना रूठें
तुझको भी पागल ना कर दे कोई करके वादे झूठे
ख़ुदा की रहमत जब भी बरसें तो तेरा घर ना छूटें
तेरा दिल ना टूटे बेशक तेरे हिस्से का भी हम ही टूटें

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वो जो ठहरा नहीं मेरी बाहों में वो कैसे अब कहीं और ठहर जाएगा
ना जाने फिर उसके हिज्र का गम अब किसकी रातों में कहर ढाएगा
इंतजार वक्त कटने ना दे सदियों सा सहर तक एक एक पहर जाएगा
वो नई उम्मीद किसी को दे रहा होगा यहाँ कोई नाउम्मीद ही मर जाएगा

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ग़मों की स्याही में ख़्यालात डूब गये
इक आँसू गिरा और जज़्बात डूब गये
कमबख्त ये दरिया किनारा नहीं देता
हर रात की तरह कल रात डूब गये

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भरी महफ़िल में मैंनें हाथ चूमा उसका तो जमाने भर में शोर हो गया
हर आँख का मैं दुश्मन हुआ हर हाथ का इशारा मेरी ओर हो गया
बात बढ़ती दिखी वो भी कहाँ चुप बैठी चुपचाप आकर मेरे लबों को चूम बैठी
के एक मसला अभी सुलझा ना था अंदाज ये नया मसला खड़ा और हो गया

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दग़ा देकर मुझको जो उसकी मुझमें दिलचस्पी घट रही है
मेरी रानी भी किसी शतरंज की बाज़ी की तरह पलट रही है

मेरे पैरों में मेरे वादों की इक भारी जंजीर लिपट रही है
बस इसी की आड़ लेकर वो रफ़्ता रफ़्ता पीछे हट रही है

महरूम इश्क़ से मरहूम यहाँ रातें मुफ़लिसी में सिमट रही है
और उसके हुस्न की अशर्फीयाँ अब कहीं ग़ैरों में बँट रही हैं

मैं उँगली उठा दूँ कहीं अगर तो गिर जाते हैं दुश्मनों के सर
वो मोहब्बत है अंदाज की इसलिए उसकी मजे में कट रही है

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हार जीत और खेल खिलाड़ी जाने तुमने क्या क्या समझा
एक मुझे समझना छोड़ दिया बाकी तुमने सबकुछ समझा
ना खेल कोई ना जंग कोई इसे तुुमने हद से ज्यादा समझा
प्रेम सरल सा भाव है जो इसे तुमने बढ़ा चढ़ा कर समझा

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तेरे आने की उम्मीद नहीं फिर भी तेरी आस लगी है
मुझे जिंदा रखने की कोशिश में हर एक साँस लगी है
गला मेरा तर करने को लोग उठा कर दरिया लाए हैं
अब कौन इन्हें समझाए के इन आँखों को प्यास लगी है

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मेरी क़ब्र पे ये कैसे कैसे तमाशे हो रहे हैं
पत्थरों पे सर पटक के पत्थर रो रहे हैं
जिसे साथ जीना कभी मुनासिब ना था
वही साथ मरने पर उतारू हो रहे हैं

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