ज़िया तेरे हुस्न की जो ख़फ़ा हुई मुझसे
तारीक की मेहरबानियाँ बढ़ने लगी मुझपे
जुगनु मेरे आँगन से इनाद रखने लगे क्यों
क्या गुनाह किया जो दिल आदिल हारा तुझपे-
Note:// यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाएँ मेरे काल्पनिक विचार है और पूर्ण रूप... read more
इतनी भी संजीदगी से ना पढ़ा करो मुझे
दर्द को अक्सर दर्द से मोहब्बत हो जाती है-
एक हम ही ख़फ़ा रहते हैं दिन रात तुझसे मिले दर्द से
बाकी तो सब यहाँ तेरे सौंपे हुए दर्द की तारीफ़ करते हैं-
तुम करो पैरवी अपने इश्क़ की मैंने शिद्दत से मोहब्बत की है वकालत नहीं
गुनाह मैं रखकर तुझे बरी करता हूँ जा फिर ना मिलेगी ऐसी अदालत कहीं
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मौत से मुलाक़ात तय है किसी को मिट्टी नसीब होगी किसी को आग
ये ज़मीं भी तेरी आसमाँ भी दिया तुझको अब तू जितना चाहे भाग-
निगाहें फेरकर मुझसे,मुझे तुम क्यों सताते हो
ख़फ़ा मुझसे हुए हो क्यों, वजह ना तुम बताते हो
मुझे इतना है बस कहना,के तेरे बिन नहीं रहना
मैं अक्सर टूट जाता हूँ,के जब तुम रूठ जाते हो
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जरा ए-वक्त तू जल्दी गुजर और रात होने दे
मेरे ख़्वाबों की महफ़िल की हसीं शुरूआत होने दे
मोहब्बत आयेगी मिलने हवाएँ साज़ होने दे
मधुर संगीत की मद्धम कोई आवाज़ होने दे
के उनकी शान में देखो कमी ना कोई रह जाये
सितारों की मेरे दर पर खुली बरसात होने दे
परी सी बन के वो निकले तो फीका चाँद लगता है
चरागों की जवानी में गज़ब की आँच होने दे
के लब यूँ सुर्ख़ है उनके गुलों की है वो शहज़ादी
गुलाबों को अभी गहरा हया से लाल होने दे
ख़बर ये आईने को दो के जब वो सामने आये
चटक कर टूट ना जाये ना अपने होश खोने दे
उन्हें मैं देख लू जी भर के जी भरता नहीं फिर भी
ठहर जाओ यही पूरे मेरे कुछ ख़्वाब होने दो
सुबह को इत्तिला कर दो वो हमसे ना मुख़ातिब हो
मेरी हर रात पर फिर से चलो इक रात होने दो
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मैं तेरे जाने का आखिर गम करू क्यों
तू खुश है तो फिर आँखे नम करू क्यों
चाहत बस तेरी खुशी की ही तो थी मुझे
तू बता अब तेरे लिए दुआ कम करू क्यों-
नज़र मिला कर कह दो हम से इश्क़ नहीं था गलती थी
इक अरसे तक मेरी शामें तेरी बाँहो में ढलती थी
फिर रातों से सुबह तक क्या यूँ ही बातें चलती थी
नज़र मिला कर कह दो ना ये इश्क़ नहीं था गलती थी-
हम भी लिखते इश्क़ मगर अब मेरे कदमों तले मोहब्बत का रास्ता नहीं
चलो जाने भी दो खैर अब हमारा मोहब्बत से रहा कोई वास्ता नहीं
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