ज़रा सुर्ख़ ज़रा भींगी सुकुमार मोहब्बत,
सबसे महफूज़ रखी बेशुमार मोहब्बत!!
नज़र आती नही थी दुनिया ये खूबसूरत,
ये नज़र चाहती थी तेरा दीदार मोहब्बत!!
अरमां हुए जो कभी ख़ाक ए सुपूर्द मेरे,
समेट के रखा समझकर बेज़ार मोहब्बत!!
तेरे रुख़्सार पर आँखों का पानी न टपका,
यहाँ सिसकियों में घुटती लाचार मोहब्बत!!
दर्द को मुस्कान का जामा मैंने पहनाया,
टटोल के नब्ज़ कहते है बीमार मोहब्बत!!
उल्फ़त के बदले मिलती है गफ़लत यहाँ,
समझा इतना फ़रेब का बाज़ार मोहब्बत!!
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