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दो पल को न सोचूँ जो तुझको मैं तो बेकरारी मेरे दिलोदिमाग में घर कर जाती है...
ये रूहानी इश्क भी क्या कमाल की चीज है ऐ मेरे दोस्त जिसे न कभी देखा और न मिला उसकी एक ख़्वाब की झलक भी बेहद खूबसूरत असर कर जाती है...-
दिल ओ दिमाग में,
नफरतों के अबांर हे लगे,
कलम ओ जबान से देखो इनके,
फूल झर रहे।-
दिल तो आखिर दिल है,पर दिमाग ये समझता है
मत कर मोहब्बत उससे बार-बार ये कहता है
दिमाग पर भारी पड़ रहा है दिल आजकल
उसकी ही यादों में जाकर अक्सर ये रहता है-
ज़मीर के किले से मैं बाहर निकल आया हूँ
अब अपने दिलोदिमाग को छलने वाला हूँ-
मैं बेहिसाब बोल सकती हूं,
मेरी जुबां थोड़ा साथ तो दे।
हजारों बातें करनी हैं तुमसे,
मेरी क़िस्मत मेरा साथ तो दे।
परेशान हूं क्या कहूं आजकल,
वक्त और हालत साथ तो दे।
दिल-ओ-दिमाग़ सुन्न पड़ा हैं,
मैं निकलू बाहर आवाज तो दे।
मैं कर भी दू दिल की बातें,
पास बैठ हाथ में हाथ तो दे।
मैं जो भी कहूं यकीन हैं तुझे,
मुझे इतना सा एहसास तो दे।-
बात-बात में, हर बात में...तेरी बात का आ जाना,
अच्छा लगता है यूं तेरा...दिलों-दिमाग पे छा जाना।-
बड़ी गुस्ताख हैं ये आपके ख़्याल,
ज़रा इन्हे भी आप तहजीब सिखा दो;
बगैर इजाज़त दिलो-दिमाग पर
कब्जा ज़मा लेते हैं ।।-
"वो कहती है हमसे कि
हमें यूं रोज याद ना करो
हम कहते हैं कि पहले हमारे
दिलोदिमाग आजाद तो करो"-
🌹"दिल और दिमाग"🌹
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कभी दिल से तो कभी दिमाग से वादा ही रहा।
इस दिल और दिमाग के चक्कर में मैं आधा ही रहा।।
दिल कहता रहा वो अपने हैं ज़रा बढ़ जाने दो नजदीकियाँ।
दिमाग की कथनी थी कि वो मुखौटे हैं यूँ ही रहने दो दूरियाँ।।
जब झुक जाएं मन और मस्तक इक साथ, इसे इबादत का नाम दीजिए।
ग़र दिल कहीं और दिमाग कहीं विचरता रहे, इसे ख़ुदा से फ़रेब मान लीजिए।।
दिल कहता है सुना दे सारे राज़ बेतकल्लुफ़ी से और हो जा बेफिक्र।
मग़र दिमाग कहता है क्या किया जाए उन मसलों का जिनमें सुकूँ की झलक तक नहीं।।
दिल और दिमाग की जंग तो पृथ्वी अवतरण से जारी है।
कभी दिल दिमाग पर तो कभी दिमाग दिल पर भारी है।।
है दोनों की प्रकृति यूँ तो कुछ जुदा जुदा सी।
पूरक हैं दोनों एक दूजे के ये देन है ख़ुदा की।।-