हर एक सवाल का जवाब मांगेंगे
बच्चे बड़े होने पर हिसाब मांगेंगे
सूरज से नज़रें मिला नहीं सकते
मग़र ये चमकता महताब मांगेंगे
गिलास उठाना सीखे नहीं लेकिन
महफ़िलों में जाकर ये शराब मांगेंगे
काँटों बड़ी हिफ़ाजत से रखना इन्हें
ये चन्द लम्हों के लिए ग़ुलाब मांगेंगे-
चाहे जितनी बार हारो पर सफ़र ज़ारी रखना✌️♥️
दिल से निकली पंक... read more
अपने चाहने वाले के जाने का ग़म क्या ख़ाक करता
मैंने अपनी सबसे अच्छी शायरी लिखकर मिटाई है-
पता नहीं कौन सी परेशानी या कोई मजबूरियाँ हैं
एक शहर में रहते हुए दो मुल्क़ जितनी दूरियाँ हैं-
तुम लोगों की बात करते हो
.
हमसे तो पुरानी चप्पल भी फेंकी नहीं जाती-
इतने लम्हें को बिखराकर
कभी यूँ चन्द न होने देता
अगर मेरे हाथ में होता तो
योरकोट बन्द न होने देता-
उसके हाथों में खनकते हुए
कड़े से मोहब्बत हो गई
जब उड़ने की बारी आई तो
पिंजड़े से मोहब्बत हो गई
हर शख़्श शुरू में आम लगा मग़र
जब वो बिछड़ा तो...
उसके बिछड़ने से मोहब्बत हो गई-
हमें ही मालूम है के कैसी तबीयत हमारी है
हमने उसके झूठे वादे पर इक उम्र गुज़ारी है
कितने खेल खेलेंगे लोग इसे साथ लेकर
पैसा ही आजकल चलता-फिरता मदारी है
सुना है लोग उसे ख़ूब पसन्द करते हैं
उसके हाथों में नौकरी जो सरकारी है
कैसे लिखूँ दिल की महँगाई में शेर 'सिद्धार्थ'
जज़्बातों की भी छाई हुई यहाँ बेरोज़गारी है-
मेरी शख़्सियत में शख़्स कोई दूसरा न लगे
मैं उससे सच भी कहूँ और उसे बुरा न लगे
हर हाल में कटना होगा फ़ल को ही यहाँ
कब हुआ ऐसा के दोस्ती में कोई छुरा न लगे
तेरी झलक पा कर मुक़म्मल होता है आसमाँ में
बिना तेरे महताब ये कभी यहाँ पूरा न लगे
जब-जब तेरा नाम इसमें आ जाता है 'सिद्धार्थ'
फिर मेरा कोई भी शेर कभी अधूरा न लगे-
अपनी दोस्ती का भी मसअला जाएगा
एक दिन तू मुझे छोड़कर चला जाएगा
जिसको बना रखा है मेहमान तू अपना
वही तुझे कभी-न-कभी जला जाएगा
कोई नहीं हमेशा किसी का यहाँ पर
वक़्त आने पर सबको बदला जाएगा
इतना मत लिखाकर शायरी 'सिद्धार्थ'
तू किसी रोज नहीं तो पगला जाएगा-
आँखों में मुमताज़ का चेहरा छिपाकर रखा था
शरीर कैद था मग़र दिल बाहर लगाकर रखा था
लोग देखने आए हैं उस जगह को जहाँ इक शहंशाह
ताजमहल की ओर अपनी नज़रें बिछाकर रखा था-