कौन "मूर्ख" कहता है की हमारे देश ने तरक्की नहीं की,
या "हुकुमत" ने कुछ "महामारी" के लिए "तैयारी" नहीं की,
पिछले साल हम "मोमबत्ती, दिया, टॉर्च" जला रहे थे,
इस बार "चिताएं" जला रहे,
इस से बड़ी क्या हो सकती है "तरक्की"..!!!
:--स्तुति-
मुझे मेरी तरक्की पर विश्वास हो गया
राम बनने से पहले ही वनवास हो गया-
यहां उसका बेटा शहर में तरक्की कर रहा था ...
वहीं गांव में मां के घुटनों और कमर का दर्द बढ़ रहा था...
बूढ़ी मां जब झुकी कमर से पहुंची अपने बेटे के बंगलों में...
रोकना ना बुढ़िया को यहां आप, बहू ने बोला उसके लल्ले से...
यह सुनकर बूढ़ी मां के घुटनों का दर्द ठीक हो गया,
चुपचाप मुस्कुराते हुए निकल पड़ी बुढ़िया बेटे के घर से...
आधे रास्ते पहुंचकर उसने फिर मुड़कर देखा ,
बचपन की तरह पीछे उसके दौड़ रहा है बेटा उसका,
शायद उसने यही था सोचा !
कठोर कर खुद को फिर चलने लगी आगे ,
आंसू भी उसकी आंखों से निकल कर जोर से भागे...
लड़खड़ा कर कदम ने भी बीच रास्ते में गिरा दिया...
जिनकी इबादत से पाया था इतना होनहार बेटा ,
शायद उसी खुदा ने तरस खाकर उसे अपने गले से लगा लिया....-
अपनों के दरमियाँ दीवारें पक्की हो गई।
कुछ इस क़दर इंसानों की तरक्की हो गई।।-
कभी तवे से उतरती हुई रोटी खिलाती माँ
आज ठंडी रोटी के लिए भी इंतजार करती है,
कैसे तरक्की की है तुमने मियां!
जिसने कभी तुम्हे भूखा ना सोने दिया,
वो आज आंसू पी जी रही है!
हर फरमाइश पर नए कपड़े दिलाए जिसने,
आज बिना इस्त्री की शर्ट पहने घूम रहा है,
कैसी तरक्की की है तुमने मियां!
जिसने तुम्हे फटे कपड़े कभी ने पहनने दिए,
वो गंदे कपड़ों में जी रहा है!
बदसलूकी कर रहे हो जिनके साथ इतनी,
आज भी तुम्हारे लिए दुआ मांगते है,
शायद यही तरक्की की है तुमने मियां
की आज भी एक घर पीछे खड़ा है!-
ज़िन्दगी के संघर्ष समझ नहीं आते
पर उसके मायने होते हैं,
ज़ब कभी हम अपने बीते कठिन दिनों को देखते हैँ,
उस वक़्त ही यह समझ आता हैं की उनके कारण ही हम आज यहाँ तक पहुंच सके हैं,
तब हम अपने संघर्षो को सलाम करते हैं,
चुनौतियाँ केवल तोड़ती नहीं हैं,
हमें मजबूत भी बनाती हैं...-
मेरी 'तरक्क़ी' कर्जे में डुबी है, लगता है
कई सालों से मेरी 'मेहनत' नहीं बिकी।-
तरक़्क़ी की चढ़ान में ओ मुसाफ़िर,
इन सीढ़ियों को भूले तो पछताओगे..
उतरना तो वैसे एक दिन सबको है,
बस ये ना रहीं तो चोट शायद ही सह पाओगे।-