समन्दर है या है कोई जलपरी
या है कुदरत की जादूगरी
कभी तू दिखे, कभी तू छिपे
कल्पना की हो जैसे उड़नतश्तरी
सागर से भी है नमकीन तू
आसमाँ से दिखती है रंगीन तू
सूरज,चाँद, सितारों से क्यूँ
करती रहती है तू मसखरी
स्वर्ग की है क्या तू अप्सरा
मुख से ये घूँघट हटा तू जरा
देखूँ तुझे तो आये सुकूँ
छलकादे नैनों से कादम्बरी
किया है तूने दीवाना मुझे
चाहता हूँ बस मैं पाना तुझे
लबों से लबों को मिलाले जरा
जज्बातों की आ करें तस्करी
बता तू ढूँढू तुझे मैं कहाँ
कभी तू यहाँ तो कभी तू वहाँ
ठहर जा और बस जा हृदय में मेरे
कब तक करेगी यूँ यायावरी-
किनारे पर बैठे आबशारों को देखा।
कल मैनें हुस्न के मछुआरों को देखा।।
और उस जलपरी के कमर का तिल याद है।
आगे देखा न गया तो चाँद तारों को देखा।।-
अधरों की तुम्हारे मैं लिपि अनकही
नयन कटारे हूँ मैं मादकता की नमी
थाम भ्रमर का हाथ, इत उत फिरूँ
सामने आऊँ ग़र, तुम पुकारो कभी
मैं धनक में कहाँ तुम्हारे रंग में खिली
लिखूं तुम्हारी आँखें चुरा ओस की नमी
पात पात पर मिले मुझे प्रणय निवेदन
छुपाती ही फिरूँ अब यौवन शबनमी
कभी गुम सी इरा मैं सभी को लगी
कोई छूने को मचले कहकर उर्वशी
बस तुम्हारा हृदय हार्दिक प्रिय मुझे
न रजत न स्वर्ण मुझको भाए कभी
तुम दीवाने, तुम हो प्रेमी, मैं प्रेमांजली
अर्पित जिनके पुष्प, वही कवितांजलि
मूक अभिनय तुम रचाते, मेरे मन पर
भागती फिरुं लेके अपनी मैं स्वरांजलि
बन मदिरा लगी हूँ मैं हठ के अधर से
जाती वहीं भागती हूँ जिसके कहर से
क्षुधा हिचकियाँ, तृष्णा यादें हैं तुम्हारी
हर पल जोहती बाट मैं कितने पहर से-
लोक साहित्य में सुनी थी
"मत्स्यांगनाओं" की कहानियाँ
दंत कथाओं में उल्लेख था
"जल परियों" का
और "टेल्स ऑफ़ अरेबियन नाइट्स" में
थी "मर्मेड" की अभिलाषाएं
(शेष अनुशीर्षक में)-
वो जलपरी सी
किसी अद्भुत अचंभे से कम नहीं
जब भी नज़र आए दिल पे बिजलियां गिराए जाए !
She's like a mermaid
Nothing less than a wonderful wonder
Whenever seen, lightning strikes the heart !-
काले काले बदरा थे
घनघोर घटा छाई थी
भीगे भीगे मौसम में
वो मुझसे मिलने आई थी
होंठ पर लाली,काली साड़ी
वो बिजली बनके आई थी
भीगी जुल्फें,भीगे होंठ
भीगा सारा बदन था
देख के उसके यौवन को
खिल उठा सारा चमन था
निकली वो गलियों में
जैसे जलपरी नहाई थी
भीगे भीगे मौसम में
वो मुझसे मिलने आई थी-
मैं रिश्तो में उलझ कर यूं ही सागर किनारे बैठे पत्थर फेंक रहा थी,मेरे बाल बिखरे हुए थे आंखों से आंसू बह रहे थे चेहरा उदास और काला लिबास-पत्थर फेंके ही जा रही थी और पानी मैं जाते ही थम की आवाज और एक तरफ उस पत्थर से पानी में होने वाले हलचल और दूजे तरफ सागर की लहरे एक घेरा बनाकर दूर से पास आ रही थी।
तभी अचानक एक बहुत ही खूबसूरत जादू की छड़ी पकड़े हुए और पैर मछली की तरह मगर बहुत ही चमकदार जलपरी आई और मुझे यह शक्ति दी कि मैं समय को रोककर भूत भविष्य में जा सकती हूं।
फिर क्या था खुशी में आंखें चमकती हुई अपने भूतकाल में गई और जो रिश्ते उलझे थे उनसे माफी मांग कर और माफी देकर वो रिश्ते सुलझा आई
मन में अलौकिक खुशी की अनुभूति कर रही थी और भविष्य में जब जाकर देखा तो हमारे रिश्ते ख़ुशी से खिलखिला रहे थे, और जिंदगी में प्यार की मिठास दिख रही थी मैं वापिस वर्तमान मैं वापस आई तो देखा जलपरी जा चुकी थी, मैं अपने घोड़े को लेकर घर की ओर निकल पड़ी थी।
मेरे जीवन में हुई चमत्कार पर मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था पर यह सत्य है कि मुझे अपनी भूत और भविष्य को देखने का मौका मिला। मेरे आंखों से आज भी यह दृश्य देखती हूं तो खुशी के आंसू बहते हैं जिसके लिए मैं जलपरी को दिल से धन्यवाद देती हूँ-
मेरे मन की सीप में
छुपे हैं कितने पीड़ा के मोती
फिर भी जलपरी बन
मैं लहरों पर इतराती....-
श्रापित अप्सरा
सदियों से आंसू बहाये
नदी में निर्वस्त्र
जल परी बन रह रही थी
ऋषि के सामने जल से
निर्वस्त्र निकल कर
लुभाने की....
सजा थी
क्षमा याचना से
पिघले ऋषि बोले
कवि
जब तुम्हें लिखेगा
तुम श्राप से मुक्त हो
स्वरुप में आ जाओगी
कवि ने
अनिघ्य सुंदर.....
जल परी की कल्पना की
अप्सरा मुक्त हुई
श्राप से........
कृतज्ञ हुई .....
सुर्य के पार्श्व में
बैठे कवि को हाथ हिलाकर
और कवि ने ईश्वर को
धन्यवाद दिया
कल्पना साकार करने के लिए-
कि तुझ पर एक कविता लिखनी है,
उसे तुरंत लिख कर स्टेटस अपडेट नहीं करना है,
उसे सालों लिखना है,
उसके हर अलफ़ाज़ में तुझे लिखना है,
हवाओं में बातें नहीं करनी,
तेरी पसन्द और ना पसन्द को लिखना है,
उसमे ज़िन्दगी के सारे ख़्वाब लिखना है,
सिर्फ हमारी क़ामयाबी नहीं लिखनी,
कुछ नाकामियां भी लिखनी है,
किसी भी झूठ से परे,
तुझ पर एक कविता लिखनी है।
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