जुगनूओं का चिरागों से कोई बैर नहीं है
मुहब्बत में लेकिन जुगनुओं की खैर नहीं है
जल जाना फना होना लुट जाना जुदा होना
हश्र-ए-मुहब्बत है यही इसके पैर नहीं है-
"मानवी त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका"
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कुछ दर्द ऐसे भी हैं जो बताये नहीं जाते
कुछ गीत ऐसे भी हैं जो गाये नहीं जाते
कुछ बातें सिर्फ आंखों से कहीं जाती है
कुछ लफ्ज़ होंठों से बतलाये नहीं जाते-
अब जब भी मिलोगे सिर्फ़ इतना पूछूंगा
दूर जाकर भी दिल से दूर क्यूं नहीं जाते
तुमको तो याद आना है आना तो है नहीं
दिलो-दिमाग से तेरे फितूर क्यूं नहीं जाते-
चलते चलते दुनिया से
इक दिन जब सबको जाना है
फिर तूं-तूं मैं-मैं तेरा मेरा
ये शोर क्यूं जग में मचाना है
दरिया के बड़े तैरैया हो
नाविक हो बड़े खेवैया हो
कागद की नाव चलेगी कब तक
पानी बरसे गल जाना है-
हमने उठायी आंख तो उसने झुकाई आंख
इस तरह इक दूसरे से हमने चुराई आंख
जाने कितनी आंखें थीं हमारी आंखों पर
आंखें न मिला करके हमने बचायी आंख-
हो जाती है दूर दुश्वारी भी कभी कभी
बिन दवा ठीक बीमारी भी कभी कभी
अरसे बाद मुस्कराहट चेहरे पर आई है
ख़ुदा सुन लेता है हमारी भी कभी कभी-
वो मुझको भूलने की कोशिश कर रहा है
यानी मैं उसको अभी भी याद आ रहा हूं
इक सवाल जो रह गया था उससे पूछना
वहीं सवाल न पूछकर अब पछता रहा हूं-
थोड़ा थोड़ा सोचा तुझको रोजाना अपने ख़्वाबों में
हर सूरत में तेरी सूरत देखी पोस्टर और किताबों में
एक शगल है तन्हाई में तेरी यादों से बातें करना
और खोजना तुझको अपने सवालों और जबाबों में-
अब इतने भी करीब न आओ मेरे
जख्म भर जायेंगे तो जियेंगे कैसे
इन आंखों को नशे में डूबा रहने दो
होश में आ गये तो फिर पियेंगे कैसे-