वजूद खुद में मौजूद के जैसा न था
जैसा मैं पहले था अब वैसा न था
कुछ छूट गया मैं कुछ साथ आ गया
ये बिछड़ना बिछड़ने के जैसा न था-
"मानवी त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका"
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कभी बात ही कर लेते हाल चाल ही पूछ लेते
चलो माना के गैर हूं मैं पर इतना भी गैर नहीं
यह भी सच है कई बार दिल दुखाया है तुम्हारा
पर तुम याद भी न करो अब इतना भी बैर नहीं-
मैं बीमार भी होता तो ठीक हो जाता
बस वो पूछ लेते कि किस हाल में हो
इतने भर से ही खुशी से मैं नाच लेता
जो जता देते कि तुम मेरे ख्याल में हो-
जाते जाते उसने मुड़कर जो न देखा होता
ये दिल भी बीमार न होता मैं भी चंगा होता-
हमने बातें भी की और फासला बनाये रखा
इस तरह बारिश में हमने खुद को बचाये रखा
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एक चेहरे को कई भावों से रंगते देखा
अपने पराये के कीड़े को मचलते देखा
हर इंसान में यही इक कमजोरी देखी
हर इंसान को मौसम सा बदलते देखा-
वक्त पर वक्त मिल जाये तो फिर कोई बात हो
वक्त गुजरने पर मिलने को मिलना नहीं कहते
धैर्य धरने का भी इक सीमा हो तो कोई बात हो
खुशी जीत की न हो तो उसे जीतना नहीं कहते-
कदम ताल बढ़ चले फिर रुकना क्यूं है
सत्य राह पकड़ चले फिर झुकना क्यूं है
उसकी रहमत ही जब छाई हो सर पर
हर परेशानी के लिए फिर बुकना क्यूं है-
ऐसा भी नहीं है के कोई ग़म नहीं मुझको
ऐसा भी नहीं है के जरा खुश भी नहीं हूं
ऐसा भी नहीं है के सब कुछ पा लिया मैंने
ऐसा भी नहीं है के तनिक अतृप्त नहीं हूं-
अश्क आंखों में है हरसूं फिजायें नम है
फिर पानी बरसा फिर तुम्हारी याद आयी
थोड़ा सुकून है तो थोड़ा ज़्यादा ग़म है
कागज़ी शमशीर की फिर रवानी याद आयी-