Rajessh Singh  
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Joined 18 April 2018


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7 HOURS AGO

मुझको पसंद नहीं वहां लेकर आ गयी
ये जिंदगी मुझको कहां लेकर आ गयी
दर्द और ग़म का अपने किसको दोष दें
खुद की बदनसीबी कहां लेकर आ गयी

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8 SEP AT 23:38

अबके मौसम में बहार आने से रही 
मय के प्यालों में खुमार आने से रही

उनकी आंखों के जैसा नशा कोई नहीं
समझ वाले में ये एतिबार आने से रही
(एतिबार- विश्वास, भरोसा)

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7 SEP AT 23:24

नहीं मुझको कोई शिकायत नहीं है
मेरा वजूद ही किसी लायक नहीं है
लिख सके यहां जो अपनी कहानी
खून के अन्दर वहीं नायक नहीं है

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6 SEP AT 23:33

बुरे वक्त में दिल मेरा तोड़ के मत जा
मुझको मेरे हाल पर छोड़ के मत जा
अरे इसी वक्त जरूरत है मुझको तेरी
इसी वक्त अपना मुंह मोड़ के मत जा

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5 SEP AT 23:07

जैसे एक जैसे दिखते लोग
अलग-अलग होते हैं, वैसे ही शहर भी
हर शहर की अपनी फिजा होती है
सो इसकी भी है
हर शहर के अपने भगवान होते हैं
सो इस शहर के भी हैं
हर शहर के पास होती है सड़क गली कूचे
सो इस के पास भी है
हर शहर की तरह यह भी
दिन भर दौड़ भागकर
रात को थककर पसर जाता है
हर नया आदमी शहर के लिए
अजनबी होता है, फिर धीरे-धीरे
शहर उसे अपना लेता है
अभी मैं इस शहर के लिए अजनबी हूं

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4 SEP AT 23:09

मुहब्बत में ज़रुरी है दिलों में बात हो जाये
बात करते हुए चाहे सुबह से रात हो जाये
यही ख्वाहिश लिए हम तो तैयार है कब से
तुम्हारी ओर से बस इक शुरुआत हो जाये

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3 SEP AT 23:08

इंतजार के अलावा और भला क्या किया हमने
इंतजार किया और फिर इंतजार ही किया हमने 

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2 SEP AT 22:55

सच न तुम झुठला सकते हो न‌ हम
न तुम मुझको भुला सकते हो न हम

जहां तक मंजूर था साथ हम साथ चले
अब कदम न तुम बढ़ा सकते हो न हम

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1 SEP AT 23:14

बचपन में अपने गांव में
एक दिन आंगन में उतरी धूप
चुरा कर रख ली थी जेब में
आज वही धीरे धीरे खर्च रहा हूं
उदास चेहरे से भी हंस रहा हूं

आते आते साथ ले आया था
एक मिट्टी का गुल्लक
जिसमें भरी थी करीने से उम्मीदें

एक झोला जिसमें भरा था
लैया चना गुड़ और मां का प्रेम

इनकी तरफ जब भी देखता हूं
सपनों के इस शहर को
और मजबूती से पकड़ लेता हूं

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31 AUG AT 23:32

दिन ले आता है हजारों सवाल करती आंखें 
रात अच्छी है अंधेरे में कुछ दिखता नहीं है 

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